बुधवार, 25 मई 2022

श्रीमद्भगवत्पाद शंकराचार्य विरचितं महानुशासनम्


महानुशासनम्   ~                         

यह ग्रँथ भगवान भाष्यकार द्वारा लिखित है। 

इसकी हस्तलिखित प्राचीन प्रतियां पुरी, कामरूप, काशी तथा पूना में प्राप्त हुई है।  


इसमें जगद्गुरु शंकराचार्य के पदपर बैठने वाले संन्यासी की योग्यता का वर्णन किया गया है। 

शंकराचार्य पद पर जन्मना ब्राह्मण , दण्डधारी एक दण्डी संन्यासी ही बैठ सकता है।


                    ।।अथ महानुशासनम्।।


"आम्नाया: कथिता ह्वेते यतीनां च पृथक्-पृथक्।

ते सर्वे चतुराचार्या: नियोगेन यथाक्रमम्।।१।।"


(संन्यासी आचार्यों के गुरु परम्परानुसार पृथक्-पृथक् उपदेश बताए गये है। यह सब चारों आचार्य अपने-अपने धर्मों में लगे।)


"प्रयोक्तव्या: स्वधर्मेषु शासनायास्ततोऽन्यथा।

कुर्वन्तु एव सततमटनं धरिणी तले।।२।।"


(यदि इस महानुशासन के विपरीत चलें तो विद्वानों द्वारा उनपर शासन किया जा सकता है, तथा यह आचार्य निरन्तर पृथ्वी पर भ्रमण करते रहें।)


"विरुद्धाचरण प्राप्तावाचार्याणां समाज्ञया।

लोकान् संशीलयन्त्येव स्वधर्माप्रतिरोधत:।।३।।"


(जब देश में विरुद्ध आचरण होने लगे, तब आचार्यों की आज्ञा से जनता को धर्म की मर्यादा के अनुसार शिक्षा दे।)


"स्व स्व राष्ट्र प्रतिष्ठित्यै संचार: सुविधीयताम्।

मठे तु नियतो वास आचार्यस्य न युज्यते।।४।।'


(अपने-अपने क्षेत्र की प्रतिष्ठा के लिए आचार्य विचरण करते रहें। उनका मठ में नियत रूप से वास उचित नहीं है।)


"वर्णाश्रम सदाचारा अस्माभिर्ये प्रसाधिता:।

रक्षणीयास्तु एवैते स्वे स्वे भागे यथाविधि:।।५।।"


(हमने वर्णाश्रम सदाचार की जो मर्यादा स्थापित की है, उसकी वे अपने-अपने क्षेत्र में विधिपूर्वक रक्षा करें।)


"यतो विनष्टिर्महती धर्मस्यात्र प्रजायते।

मांद्यं सन्त्याज्यमेवात्र दाक्ष्यमेव समाश्रयेत्।।६।।"


(इस युग में धर्म की जब महान् हानि हो रही है, ऐसे में प्रमाद का त्याग कर आचार्यगण चतुराई से काम लें।)


"परस्पर विभागे तु प्रवेशो न कदाचन।

परस्परेण कर्त्तव्या आचर्येण व्यवस्थिति:।।७।।


(एक दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश न करें। आचार्य आपस में मिलकर इसकी व्यवस्था करें।। अर्थात् तीर्थयात्रा के उद्दयेश्य से सर्वत्र जा सकते हैं, परन्तु वहां की जनता से कर न लें)


"मर्यादाया: विनाशेन लुप्तेरन्नियमा: शुभा:।

कलहाङ्गार सम्पत्तिरतस्तां परिवर्जयेत्।।८।।"


(मर्यादा के नष्ट हो जाने पर अच्छे नियम लुप्त हो जाते हैं, कलह रूपी अग्नि प्रज्वलित हो जाती है,  अतः इसे रोकना चाहिए।)


"परिव्राडाचार्य मर्यादां मामकीनां यथाविधि:।

चतु: पीठाधिगां सत्तां प्रयुञ्ज्याच्च पृथक् पृथक्।।९।।"


(मेरे द्वारा बताई हुई श्रेष्ठ मर्यादा को चारों पीठों की सत्ता विधिपूर्वक सदुपयोग करें।)


"शुचिर्जितेन्द्रियो वेद वेदाङ्गादि विशारद:।

योगज्ञ: सर्व शास्त्राणां समदा स्थानमाप्नुयात्।।१०।।"


(शुद्धान्त:करण, जितेन्द्रिय, वेद-वेदाङ्ग का ज्ञाता, समस्त शास्त्रों में कुशल, योगाभ्यासी     ऐसा आचार्य ही मेरे पीठ को प्राप्त करें।)


"उक्त लक्षण सम्पन्न: स्याच्चेन्मत् पीठभाग् भवेत्।

अन्यथा रूढ़ पीठोऽपि निग्रहार्हो मनीषिणाम्।।११।।"


(ऊपर कहे गये लक्षणों से युक्त यति ही मेरे आसन पर बैठ सकता है। इसके विपरीत लक्षणों वाला संन्यासी यदि पीठ पर बैठा हो तो विद्वान उसे हटा दें।)


"न जातु मठमुच्छिन्द्यादधिकारिण्युपस्थिते।

विघ्नानामपि बाहुल्यदेष धर्म: सनातन:।।१२।।"


(विघ्नों की अधिकता होने पर भी अधिकारी आचार्य के रहते मठ को किसी प्रकार की हानि न पहुँचाई जाये, यह सनातन धर्म है।)


"अस्मत् पीठ समारुढ परिव्राडुक्तलक्षण:।

अहमेवेति विज्ञेयो यस्य देव इति श्रुते:।।१३।।"


(उक्त लक्षणों से युक्त यती जो मेरी पीठ पर बैठा हो, "यस्य देवे परा भक्ति: यथा देवे तथा गुरौ"   'जैसे इष्ट देव के प्रति भक्ति है वैसे ही गुरुओं में भी भक्ति है'       इस श्रुति के अनुसार वह मेरा ही स्वरूप है, ऐसा जानो।)


"एक एवाभिषेच्य: स्यादन्ते लक्षणसम्मत:।

तत्तत् पीठे क्रमेणैव न बहु युज्यते क्वचित्।।१४।।"


(पूर्ववर्ती संन्यासी के अभाव में ऊपर कहे हुए लक्षणों से युक्त उन पीठों पर एक ही शंकराचार्य का अभिषेक किया जाये, अधिक का नहीं)


"सुधन्वन: समौत्सुक्य निवृत्यै धर्महेतवे।

देवराजोपचारांश्च यथावदनुपालयेत्।।१५।।"


(सुधन्वा राजा की उत्सुकता की निवृत्ति तथा धर्म के लिए, देवताओं तथा राजा के व्यवहारों का यथोचित पालन करना चाहिए।)


"केवलं धर्ममुद्दिश्य विभवो ब्रह्मचेतसाम्।

विहितश्चोपकाराय पद्मपत्र नयं व्रजेत्।।१६।।"


(ब्रह्मज्ञानी शंकराचार्य का वैभव छत्र, चमर सिंहासनादि केवल धर्म के उद्दयेश्य तथा लोकोपकार के लिए है। इस सम्बंध में आचार्य कमल पत्रवत् जैसे कमलपत्र जल में रहते हुए भी जल का प्रभाव उसपर नहीं पड़ता,      निर्लेप रहे।)


"सुधन्वा हि महाराजस्तदन्ये च नरेश्वरा:।

धर्म परम्परीमेतां पालयन्तु निरन्तरम्।।१७।।"


(महाराज सुधन्वा तथा अन्य राजा धर्म की इस परम्परा का निरन्तर पालन करें।)


"चातुर्वर्ण्यं यथायोग्यं वाङ्मन: काय कर्मभी:।

गुरो: पीठं समर्चेत विभागानुक्रमेण वै।।१८।।"


(चारों वर्ण योग्यता के विभागानुसार मनसा, वाचा, कर्मणा गुरु पीठ का पूजन करें।)


"धरामालम्व्य राजान: प्रजाभ्य: करभागिन:।

कृताधिकारा: आचार्या: धर्मतस्तद्वदेव हि।।१९।।"


(जैसे राजा लोग प्रजा के कर के भागी हैं।  वैसे ही आचार्य भी धर्मानुसार प्रजा से कर लेने के अधिकारी हैं।)


"धर्मो मूलं मनुष्याणां सचाचार्यावलम्बन:।

तस्मादाचार्य सुमणे: शासनं सर्वतोऽधिकम्।।२०।।"


(मनुष्य का मूल धर्म है, और वह धर्म आचार्य के आश्रित है। इसीलिए आचार्य रूपी सुमणि का शासन सबसे अधिक है।)


"तस्मात् सर्व प्रयत्नेन शासनं सर्वसम्मतम्।

आचार्यस्य विशेषेण ह्यौदार्य भरभागिन:।।२१।।"


(अतः विशेष रूप से आचार्य का शासन सर्व सम्मत, उदारतापूर्ण तथा भारवाहन समर्थ विशेष रूप से होना चाहिए।)


"आचार्याक्षिप्त दण्डास्तु कृत्वा पापानि मानव:।

निर्मला स्वर्गमायान्ति सन्त: सुकृतिनो यथा।।२२।।"


(पाप करने वाला मनुष्य आचार्य द्वारा दण्डित होने पर निर्मल सुकृति सन्तों के समान स्वर्ग का भागी होता है।)


"इत्येवं मनुरप्याह गौतमोऽपि विशेषत:।

विशिष्ट शिष्टाचारोऽपि मूलादेव प्रसिद्ध्यति।।२३।।"


(इस प्रकार मनु तथा गौतम ने विशेष रूप से कहा है। विशिष्ट पुरुषों का शिष्टाचार मूल से ही प्रसिद्ध है।)


"तानाचार्योपदेशांश्च राजदण्डांश्च पालयेत्।

तस्मादाचार्य राजानावनवद्यौ न निंदयेत्।।२४।।"


(आचार्यों के उपदेश तथा राजदण्ड का सर्वथा पालन करें। अतः निर्दोष आचार्य तथा राजा की निन्दा न करें।)


"धर्मस्य पद्धति ह्र्वेषा जगत: स्थिति हेतवे।

सर्व वर्णाश्रमाणां हि यथा शास्त्रं विधीयते।।२५।।"


(संसार की रक्षा के लिए धर्म की यही पद्धति है कि शास्त्रानुसार सभी वर्णाश्रमों के लिए विधान करती है।)


"कृते विश्व गुरु ब्रह्मा त्रेतायामृषि सत्तमा:।

द्वापरे व्यास एव स्यात् कलावत्र भवाम्यहम्।।२६।।"


(सत्य युग में जगद्गुरु ब्रह्मा,  त्रेता में ऋषिश्रेष्ठ दत्तात्रेय, द्वापर  में व्यास जी तथा कलियुग में मैं शंकराचार्य गुरु हूँ।)


।।इति श्रीमद्भगवत्पाद शंकराचार्य विरचितं महानुशासनम्।।

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शनिवार, 14 मई 2022

ब्रह्मलीन स्वामी विश्वदेवानंद जी का दशम निर्वाणमहोत्सव


पूज्य पाद ब्रह्मलीन पूर्व निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विश्वदेवानंद जी का निर्वाण महोत्सव श्री यंत्र मंदिर में धूमधाम से मनाया गया वर्तमान आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाण पीठाधीश्वर राजगुरु बीकानेर स्वामी विशोकानंद भारती जी के सा सानिध्य में तथा अध्यक्षता में पूर्व आचार्य श्री का निर्वाण महोत्सव श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया इस अवसर पर 13 अखाड़ों के महामंडलेश्वर महंत श्री महंत एवं पंच परमेश्वर संत सम्मेलन में श्रद्धांजलि के लिए सम्मिलित हुए दिल्ली पंजाब कोलकाता आदि स्थानों से अनेका अनेक भक्तों ने श्रद्धा से महोत्सव में भाग लिया इस अवसर पर निर्वाण पीठाधीश्वर स्वामी विवेकानंद भारती जी महाराज ने कहा कि विश्व गुरु भारत की संस्कृति विश्व कल्याण की भावना से ओतप्रोत रही है। इसलिए हमारे पूज्य गुरुदेव ने संन्यास देते समय स्वामी जी का नाम विश्वदेवानंद रखा था । तदनुसार गुरु और गोविंद की भावना को ध्यान में रखकर  स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज ने अपने जीवन में विश्व भ्रमण विश्व कल्याण के लिए कार्य किया था साथ ही उन्होंने विश्व के कल्याण के लिए विश्व कल्याण संस्थान की स्थापना की । स्वामी जी महाराज की विश्व विश्व कल्याण की भावना से  प्रचार प्रसार से स्वामी विवेकानंद जी महाराज के उद्देश्य स्मरण हो आते हैं।  हमारे काशी के विश्वनाथ संपूर्ण विश्व के कल्याण करने वाले हैं हमारी मां विश्वेश्वरी है हमारे भगवान सूर्यनारायण विश्व के देवता है इसलिए श्री यंत्र मंदिर विश्वकल्याण साधनायतन से सदैव विश्व कल्याण  भावना के संदेश प्रचारित प्रसारित होते रहे हैं साथ ही विशोकानंद भारती जी महाराज ने कहा  कि पहले स्वामी विश्वदेवानंद जी शरीर में निवास करते थे अब वे संपूर्ण शांकरी परंपरा में ब्रह्म स्वरूप होकर के समष्टि के लिए उपयोगी हो रहे हैं।  इस अवसर पर स्वामी जी के वरिष्ठ शिष्य अनंतबोध चैतन्य जी ने लिथुआनिया यूरोप से ही महाराज जी की चरण पादुका का पूजन कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशो पर चलने का संकल्प किया। 
वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि उनका कर्तृत्व वक्तृत्व और नेतृत्व शंकरी परंपरा के अनुकूल था और उनके कार्यकाल में श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी साधु समाज में मुखर रहा है। इस अवसर पर श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा के आचार्य महंत श्री ज्ञानदेव सिंह जी ने कहा कि उनके कार्यों में योग माया का संयोग आशीर्वाद और आलोक अनुभव होता था मैं विशेष समय निकाल कर के उनके सानिध्य का आनंद लेता था वास्तव में वे राजराजेश्वरी के पुत्र  थे भगवती की उपासना का उन्होंने एक नया मार्ग प्रशस्त किया । इस अवसर पर महामंडलेश्वर गिरधर गिरी जी महाराज ने कहा कि हमारे हमारे आचार्य श्री हमें शांकरी परंपरा का एक नया आलोक प्रदान कर गए हैं उनका चलना बोलना व्यवहार करना और अपने अनुयायियों के साथ प्रेम रखना हम सबके लिए एक उदाहरण है इस अवसर पर उदासीन अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद जी महाराज ने कहा कि मैंने अपने जीवन में उनके आध्यात्मिक आलोक को अनुभव किया था उनकी वाणी में उनका अनुभव बोलता था उनकी वाणी में भाष्यकार शंकराचार्य जी का भाष्य बोलता था और उनकी वाणी में सरस्वती समन्वित हो करके वाणी का श्रृंगार करती थी स्वामी जी महाराज हमारे बीच नहीं रहे परंतु उन्होंने मानव कल्याण और विश्व कल्याण के अनेक प्रकल्प हमारे कल्याण के लिए छोड़ गए हैं अब सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके उद्देश्यों को कार्यान्वित करते हुए संस्कारित और शृंगारित किया जाए मैं उनकी पावन स्मृति में श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं । श्रद्धेय महामंडलेश्वर स्वामी विशेश्वरानंद जी महाराज रोहतक वालों  ने कहा कि मैं जो कुछ भी आज हूं गोविंद मठ से लेकर के उनकी कृपा से हूं अध्ययन काल से लेकर मध्य साधना काल में और अंत में उनकी कृपा से वर्तमान आचार्य जी की कृपा प्राप्त कराने में महाराज श्री का संकल्प ही मेरा सहयोगी रहा है। विलक्षण महापुरुष ने लोगों को अध्यात्म से अपनी और आकर्षित करते हुए सेवा शिक्षा संस्कार साधना और सुरक्षा के संस्कार देते हुए उन्होंने सबको अपने जैसे बनाने का मानस रखा था आज श्रेय और प्रेय के रूप में प्रसाद प्रदान करने वाले आचार्य श्री के पावन चरणों में मेरी श्रद्धांजलि भावांजलि। इस अवसर पर सर्दी महामंडलेश्वर स्वामी जय देव आनंद जी महाराज ने योगीराज जी ने कहा कि कुंभ मेला में सभाओं में और अन्य कार्यों में हम अपने महामंडलेश्वर आचार्य श्री से गौरवान्वित होते थे और उनके प्रवचनों से लाभान्वित होते हुए प्रेरणा प्राप्त करते थे मेरी भी उनके पावन चरणों में श्रद्धांजलि भावांजलि समर्पित हैं।  इस अवसर पर स्वामी देवानंद ने कहा कि बरसों से जुड़े रहने के कारण मैंने महाराज श्री का स्वभाव अनुभव किया कि महाराज श्री फौंडेशन के साथ किसी भी व्यक्ति के कल्याण की बात सोचते थे और एक गुरु और पिता के समान संसार से ऊपर उठने का सहयोग करते थे उनकी उदारता उनकी साधुता और उनका पुरुषार्थ सदैव मनुष्य के लिए प्रेरणा का उदाहरण होता था हमने भी उनसे कर्तृत्व वक्तृत्व और नेतृत्व का संस्कार प्राप्त करते हुए अनुकरण किया था आज इस निर्वाण  महोत्सव पर हम उनकी विभूतियों का स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि भावांजलि अर्पित करते हैं पठानकोट से पधारे हुए महंत श्री शिवात्म चैतन्य जी महाराज ने कहा कि गुरुदेव की निजी उपासना और साधना का मैंने शिष्य होकर अनुभव किया उनमें एक गुरु के सच्चे लक्षण प्राप्त होते थे अपनी उदारता से उन्होंने आज हमें भी कुछ बोलने लायक कुछ करने लायक और कुछ समझने लायक बनाया उनका ऋण हम चुका नहीं सकते पर उनकी चरण चिन्हों पर चलने का अनुकरण करने का प्रयास करते हैं उनकी कृपा ही हमें अध्यात्म में समाज सेवा में और समाज सुधार में सफल करेगी इन्हीं शब्दों के साथ महाराज के पावन अस्तित्व में श्रद्धांजलि और भावांजलि इस अवसर पर कोलकाता से पधारे हुए श्रीमान लक्ष्मीकांत तिवारी जी ने महाराज की समाधि पर सभी के साथ पूजन अर्चन और आरती की संतों का दर्शन पूजन आदि के द्वारा सम्मान किया दिल्ली से पधारे हुए श्रीमान नरेश चड्ढा जी और श्रीमान रघुवीर शर्मा जी ने भाव पूर्वक संतों का सम्मान किया इस अवसर पर कोलकाता से पधारे हुए दीपक मिश्रा जी मुकेश शर्मा जी और अशोक तिवारी जी आदि ने महाराज की प्रतिमा का पूजन किया संतों का सम्मान किया सभी भक्तों ने भाव से महाराज श्री को याद किया संत सम्मेलन के बाद संतों का आरती पूजा भेंट आदि के द्वारा इसमें पूजन किया।। अंत में सभी का आभार प्रकट करते हुए आचार्य श्री ने पधारे हुए महामंडलेश्वरों का  महंत पंच परमेश्वर और भक्तों का इस सभा की शोभा को बढ़ाने के लिए और सहयोग के लिए धन्यवाद प्रदान किया।।




शनिवार, 24 जुलाई 2021

What do you mean by guru Purnima



Guru Purnima 2021
Guru Purnima is a Hindu festival which is dedicated to spiritual and academic teachers. This is celebrated traditionally by Hindus and Buddhists for thanking their teachers. This is marked as the ritual concerning the guru, guru Puja. The principle of guru is remembered a thousand times more active on the day of Guru Purnima. The term guru is taken from two words ‘GU’ and ‘RU’. The Sanskrit meaning of the word ‘GU’ means darkness or ignorance. The word RU means remover of the darkness. The one who removes darkness is known as the guru. People believed that Gurus needed to be the most necessary part of their lives. The disciples give Puja to pay respect to their guru.

It falls on the day of the full moon, Purnima which is in the month of Ashadh, June-July. As per the Indian national calendar and Hindu calendar, it falls in July. This year 2021 Guru Purnima is on 24th July. The festival is having more importance for Indian academics and scholars. They are celebrating this day by thanking their teachers as well as remembering their past gurus and scholars. Mainly this festival is celebrated by Buddhists for honoring the lord Buddha who gave his first sermon on this day at Sarnath, U.P. 


The Hindu people celebrate in the honor of the great Vyasa who is one of the greatest gurus in ancient Hinduism. He is a symbol of the guru- shishya tradition. Some people believe that Vyasa was not born on this day, but he started writing Brahma sutras on Ashaddha Sudha Padyami which ends on this day. Recitations are maintained and dedicated on this day. It is also known as Vyasa Purnima. Especially the festival is more common in all spiritual traditions in Hinduism, where it is a gratitude towards their teacher by his or her disciple. Hindu ascetics and monks give Puja to the guru during chetrum which is four months during the rainy season. When they are secluded they stay in one place. Some people give discourses to the public people. The students in Indian classical music follow the guru Shishya Parampara and they celebrate this festival around the world.
Hindu mythology
Krishna Dwaipayana Vyasa who is the author of Mahabharata was born on this day to Parashara and the fisherman’s daughter Satyavati. This day is treated as Vyasa Purnima. Veda Vyasa did the yeoman service for the cause of Vedic studies by taking all the Vedic hymns during their times, which divides them into four parts based on their sacrificial rites. He taught his four disciples named Palla, Vaisampayana, Jaimini, and Sumantu. By dividing and editing that he earned the honorific Vyasa. Mainly he divided the Veda into four: Rig, Yajur, Sama, and Atharva. The Puranas and their histories are to be of the 5th Veda. 
The full moon day in the month of Hindu named Ashad is observed as the auspicious day of Guru Purnima which is celebrated in the memory of great Vyasa. All the Hindu people are indebted to the ancient saint who divided into four Vedas and wrote the 18 Puranas, the Mahabharata, and Srimad Bhagavata. Vyasa also taught Dattatreya who is mentioned as the Guru of gurus.
Significance
On this day all the spiritual people and devotees worship Vyasa mainly in the honor of divine personage and all the disciples give a Puja for their respective Preceptor or the guru Devs. For farmers, this day is having more significance. The setting of much-needed rain as the advent of cool showers gives good fresh life in paddy fields. Also, many believe this day is good for starting their spiritual classes. The spiritual seekers intensify their spiritual Sadhana on this day. 

The period Chaturmas which is of four months begins from this day. In the early past wandering spiritual gurus and their disciples used to settle at a place for studying and discourse in Brahma sutras which is composed by Vyasa and engage them in the Vedantic lessons.

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

स्वामी श्रीशारदानन्दगिरीजी को भावभीनी श्रद्धांजलि



|| दिवङ्गतेभ्यश्श्रीशारदानन्दगिरिस्वामिभ्यश्श्रद्धाञ्जलि:||

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भावैर्यं हृदयं स्मरेन्मधुमयं सौख्यस्मृतिं स्वामिनं

चित्तं नैव जहाति यस्य महिमाप्लावप्रसन्नं रतिं

दिव्यप्रीतियुजामिवाच्युतहरेर्भक्तौ च यो मज्जितो

ब्रह्मत्त्वं स गतोऽद्य मद्गुरुवरश्श्रीशारदानन्दन:||१||


जिन मधुमय, सुखसम्पन्न स्मृति वाले, स्वामी जी को हमारा दिल भावुक होकर स्मरण करता है, जिनकी महिमा में डूबकर प्रसन्न मन जिनकी मोहब्बत को छोड़ना ना चाहे, जिनका प्रेम ही दिव्य होता है ऐसे लोगों की तरह , कभी नष्ट ना होने वाले हरि की भक्ति में ही जो डूब चुके हैं, ऐसे हमारे गुरुवर श्री शारदानंद गिरि जी आज ब्रह्मलीन हो गए।


यच्चैवाद्य महात्मनां बहुविधं सङ्घात्मकं ख्याप्यते

तेष्वेकं च 'निरञ्जनी'ति भवताद्वैराग्यभाजां सुखं

तस्मिन् श्रीलनरोत्तमाद्गुरुवराद्दीक्षां प्रलभ्याप्यसौ

धर्मप्राणमयप्रयाग-परमानन्दाश्रमी राजते||२||


जो आज संन्यस्त महात्माओं के संघ स्वरूप बहुत से अखाड़े हैं उनमें से एक निरंजनी अखाड़ा भी है इसी अखाड़े के अंतर्गत श्रीमान् नरोत्तमानंद गिरि जी महाराज से दीक्षा लेकर, स्वामी शारदानंद गिरी जी ने धर्म के प्राण स्वरूप नगर प्रयागराज में परमानंद आश्रम की स्थापना की।


अध्यात्मैकरुचिश्शुचिर्वररुचिग्रन्थे मुदा संरत:

काशीपण्डितसङ्घलब्धबहुसम्मानश्च सद्भिर्वृतो

देवीवाचमथापि विश्वपटले य: ख्यापयेत्संयमी

त्यक्त्वा संसृतिमद्य विष्णुजगति व्यापद्यतेति श्रुतम्||३||


एकमात्र अध्यात्म में रूचि वाले , अत्यंत पवित्र , वररुचि के ग्रंथ का अध्ययन करने वाले,काशी पंडित परिषद् से बहुत सम्मान प्राप्त करने वाले , सज्जनों से घिरे रहने वाले, संयमी तथा संस्कृत को पूरे संसार में फैलाने वाले, आज इस अलौकिक संसार को छोड़कर भगवान विष्णु के लोक को पधार गए!


हे स्वामिंस्तव धर्मपूर्णपदवी अक्ष्णोर्ममास्ते सदा

हे स्वामिंस्तव कर्मभूमिरिव मे नेत्राग्रगा वर्तते

हे स्वामिंस्तव मर्मजातगुणसद्भावाश्च वित्तानि नो

हे स्वामिंस्तव सत्कथा हि जगता प्रेम्णा हृदा स्मर्यते||४||


हे स्वामी जी आपकी धर्म पूर्ण पदवी सदा मेरी आंखों में बसी है । हे स्वामी जी आपकी समस्त कर्म भूमि मेरी आंखों के आगे नाच रही है। हे स्वामी जी! आपके हृदय में बसने वाले सद्भाव, जिनको हमने ग्रहण किया, वही हमारी जमा-पूंजी हैं। हे स्वामी जी आपके जीवन की सच्चरित्र रूपी कथा इस संपूर्ण संसार के द्वारा हार्दिक भावों से सदा ही स्मरण करी जाएगी।


के धर्माय कतीह जीवनमहो जीवन्ति हात्त्वा गृहं

के वेदाय समर्पिता भुवि जनाश्शास्त्राय गोभ्यस्तथा

हैषामेकमिदं समुत्तरमहं तुभ्यं ददामीति रे

सन्तस्सन्ति यथा दिवङ्गतगुरुश्श्रीशारदानन्दन:||५||


ऐसे कितने हैं, और कौन हैं, जो अपने घर-बार को छोड़कर सिर्फ धर्म के लिए ही जीवन जीते हैं?? ऐसे कितने लोग हैं, और कौन हैं , जो वेद-शास्त्र पढ़ने के लिए जीवन जीते हैं तथा गौ-सेवा के लिए समर्पित हैं??अरे भाई! इन सब बातों का एक ही उत्तर मैं तुम्हें आज देता हूं - वह हमारे संत समाज के लोग हैं! (या इस प्रकार के जो लोग हैं वह भी संत ही हैं) और इन्हीं संतो में एक हैं - श्रीशारदानंद गिरी जी महाराज।


श्रीशारदानन्दगिरिर्महात्मा 

सदैव पूज्यश्चरितव्यरूप:

अनन्तबोधैरवबुध्य सन्तं

हिमांशुगौडैर्व्यरचीह भावै:||


श्रीशारदानंद गिरि जी महाराज, सदैव पूज्य और आचरण करने योग्य है धर्मरूप जिनका, इस प्रकार के महात्मा थे! स्वामीश्रीअनंतबोध चैतन्य जी द्वारा उन संत के विषय में जानकार तथा प्रेरणा पाकर,   हिमांशु गौड़ ने अपने भावों द्वारा यह श्रद्धांजलि स्वामी जी के लिए समर्पित की है।


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हिमांशुर्गौड:

०८:४५ रात्रौ,

३०/०६/२०२१

शुक्रवार, 7 मई 2021

Nirvana Tithi of Pujya Gurudev Brahmalin Swami Vishwadevananda Puri ji




आज हमारे प्रिय गुरुदेव ब्रह्मलीन स्वामी विश्वदेवानंद पुरी जी की पुण्यतिथि (पुण्यतिथि) है, जिन्होंने 7 मई 2013 को शरीर त्याग दिया था।
आप सबसे अच्छे गुरु थे, और मुझे आपके शिष्य होने पर बहुत गर्व है। मुझे विश्वास है कि आपका मार्गदर्शक हाथ हमेशा मेरे कंधे पर रहेगा। मनुष्य नश्वर है लेकिन उनके लिए प्रेम अमर है। हालाँकि आप हम सबके बीच नहीं हैं लेकिन आपकी याद हमारे मन में बसी हुई है।
एक बार आपने कहा था कि हमें साधु का जन्मदिन नहीं मनाना चाहिए, हमें उनकी पुण्यतिथि मनानी चाहिए। जो अपनी समकालीन व्यवस्था के साथ भावी पीढ़ियों के लिए अपने कर्तव्य बोध और प्रयोग के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण उद्देश्यों और मूल्यों की विरासत प्रस्तुत करता है। साधु मर कर भी कुछ देता है। इसलिए साधुओं की पुण्यतिथि को प्रेरणा देने और जीवन को उत्सव की तरह जीने के पर्व के रूप में देखा जाता है। आपके श्री चरणों में मेरा विनम्र प्रणाम।

सर्वतन्त्रस्वतन्त्राय धर्मशास्त्रप्रचारिणे

निर्वाणपीठराजाय वेदान्तगुरवे नमः ।। 1

जो सभी प्रकार के तन्त्रों (नियमादि विधि-निषेधों) से स्वतन्त्र हैं, धर्म और शास्त्र का प्रचार करने वाले, निर्वाण-पीठाधीश्वर, वेदान्त दर्शन का ज्ञान देने वाले गुरु के लिए नमस्कार है।

कर्मनिष्ठं प्रसन्नं तं निजानन्दस्वरुपिणम्

अज्ञानतिमिरध्वंसं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 2

उन कर्मनिष्ठ, सदा प्रसन्न रहने वाले, आत्मानंदी संदर्भ वाले, अज्ञान रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाले, श्रीगुरुदेव महाराज को मैं बार-बार प्रणाम करता हूं।

ज्ञाननिष्ठं धर्मनिष्ठं द्वन्द्वातीतं यतेन्द्रियम्।

प्रणमामि गुरुं शैवं ह्यज्ञताध्वान्तनाशकम्॥3

ज्ञान और धर्म में धारण करने वाले, सभी द्वन्द्वों से परे, इंद्रियों का संयम धारण करने वाले, अज्ञता रूपी तिमिर(अन्धकार) को नष्ट करने वाले, शैव (कल्याणमय) गुरुदेव भगवान को मैं बारंबार प्रणाम करता हूं।

शरण्यं सर्वभक्तानां ब्रह्मानन्दस्वरूपकम् ।

प्रणमामि गुरुं दिव्यं मूढतातिमिरापहम्॥4

सभी भक्तों को शरण देने वाले, ब्रह्मानंद-स्वरूप, मूढ़ता रूपी अंधकार को झाड़ देने वाले, दिव्य गुरुदेव को प्रणाम करता हूं।

श्रेयस्कामं महाभागं मानातीतं यतीश्वरम् ।

वन्देऽहं श्रीगुरुं देवं मोहशोकविनाशकम्॥ 5

(सभी का) श्रेयसी (कल्याण) चाहने वाले, महत्वपूर्ण पद को भजने वाले, मान-अपमान से परे, महात्माओं में श्रेष्ठ, मोह, शोक आदि का विनाश करने वाले, देवस्वरूप गुरु जी को बारंबार प्रणाम है।

जपध्याने रतं नित्यं भयक्रोधादिवर्जितम् ।

मायाजालविनिर्मुक्तं प्रणमामि मुहुर्मुहु:॥ 6

जप और ध्यान में रहने वाले, भय,क्रोध आदि से वर्जित,माया के जाल से मुक्त, गुरुदेव को मैं प्रणाम करता हूं।

लोभमोहपरित्यक्तमाशापाशविवर्जितम् ।

अज्ञानध्वंसने दक्षं प्रणमामि महागुरुम्॥ 7

लोभ व मोह को त्याग दिया है, ऐसे, आशा के पाश (बन्धन) से मुक्त, अज्ञान को नष्ट करने में गंभीर दक्ष, महागुरु जी को मैं प्रणाम करता हूं।

विश्वदेवं गुरुं वीरं साक्षाच्छङ्कररूपिणम् ।

अज्ञाननाशकं चैवं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 8

विश्वदेव संदर्भ, वरण करने योग्य, साक्षात् शङ्कर संदर्भ, अज्ञान के निवारक, गुरु जी को मैं बारंबार प्रणाम करता हूं।

गुरुस्तोत्रमिदं पुण्यं ज्ञानविज्ञानदायकम् ।

मया विर्च्यते ह्येतदन्तब्रह्मचारिणा ॥

यह गुरुदेव महाराज का पुण्य स्तोत्र, ज्ञान और विज्ञान को देने वाला है यह मेरे (अनन्त) के द्वारा विरचित है।