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रविवार, 16 फ़रवरी 2014

श्री अनन्तबोध चैतन्य का संक्षिप्त परिचय

 परिचय :-
श्री अनन्तबोध चैतन्य का जन्म इतिहास प्रसिद्ध हरियाणा के पानीपत जिले में हुआ । बचपन मे उनका नाम सतीश रखा गया। सतीश बचपन से ही बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के रहे । घर का वातावरण धार्मिक होने के कारण इनको अनेक दंडी स्वामी और नाथ पंथ के महात्माओ का सानिध्य अनायास ही मिलता रहा। विभिन्न गुरुकुलों मे शिक्षा होने के कारण 18 वर्ष की छोटी उम्र मे ही इन्हें व्याकरण के प्रसिद्ध ग्रंथ अष्टाध्यायी आदि के साथ-साथ न्याय वेदान्त के अनेक  ग्रंथ जैसे तर्कसंग्रह, वेदांतसार आदि  तथा वेदों के भी कुछ अंश कंठाग्र कर लिया था। उपनिषदों का  भी इन्हे अच्छा बोध हो गया ।अनन्तबोध चैतन्य बाल्यकाल से ही शक्ति के उपासक रहे हैं।
शिक्षा:-
प्रारम्भिक शिक्षा के बाद अनेक गुरुकुलों एवं विद्यालयो में अद्ध्यन करते हुए इन्होंने कतिपय आचार्यों से शिक्षा प्राप्त की। इन्होने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय,कुरुक्षेत्र से  संस्कृत भाषा , भारतीय दर्शन के साथ स्नातक (शास्त्री) तथा दर्शन शास्त्र विषय में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की बाद मे भारतीय दर्शन मे ज्ञान विषय से पी एच डी शोधकार्य को संपूर्णानन्द संस्कृत विश्व विद्यालय, वाराणसी को  प्रस्तुत किया है । 
दीक्षा:-
सबसे पहले गंगा जी के पावन तट, बिहार घाट(नरौरा,उत्तर प्रदेश) मे परम विरक्त तपस्वी दंडी स्वामी श्री विष्णु आश्रम जी के दर्शनों ने इनके जीवन की दिशा को बदल दिया उनकी आज्ञा से धर्मसम्राट करपात्रि जी महाराज की तपस्थली नरवर, नरौरा मे श्री श्यामसुंदर ब्रह्मचारी जी से स्वल्प समय मे ही प्रस्थानत्रयी  का अद्ध्यन किया तथा आत्मा एवं ब्रह्म की एकता को स्वीकार किया। इसके बाद अप्रेल 2005 मे विश्व प्रसिद्ध गोविंद मठ की महान परंपरा मे पूज्य महाराज आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाण पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन स्वामी श्री विश्वदेवानन्द पुरी जी से  अद्वैत मत में दीक्षित हुए एवं इनका नाम अनन्तबोध चैतन्यपड़ा।
प्रारम्भिक जीवन:-
अनन्तबोध चैतन्य की आध्यात्मिक यात्रा हिमालय की तलहटी के अनेक महान संतों और साधुओं की संगत में गहन आध्यात्मिक प्रशिक्षण के माध्यम से आध्यात्मिक उत्कृष्टता प्राप्त करने में आठ साल बिताने के साथ शुरू हई । .
इन्होने आदि शंकराचार्य संप्रदाय से संबंधित महानिर्वाणी अखाडे मे वैदिक शास्त्रों की सेवा करने के लिए और भारतीय विरासत और संस्कृति के आध्यात्मिक मूल्यों के लिए अपना जीवन समर्पित करने का संकल्प लिया।
बचपन की गतिविधियों एवं आध्यात्मिक जीवन के लिए बहुत गहरे आकर्षण को देखते हुये कुछ महापुरुषों ने पहले ही कह दिया था कि एक दिन ये बालक आत्मबोध और मानवता की सेवा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करेंगा। 
सनातन धारा की स्थापना:-
देश के सांस्कृतिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक  और राष्ट्रीय नवजागरण के लिए सनातन धारा की स्थापना की। मानव मात्र को इससे नई चेतना मिली और अनेक संस्कारगत कुरीतियों से छुटकारा मिला। उन्होंने जातिवाद और बाल-विवाह का विरोध किया और नारी शिक्षा तथा विधवा विवाह को भी प्रोत्साहित किया है। गरीब एवं बेसहारा विद्याथियों के लिए छात्रवृति प्रारम्भ की । जिसका लाभ बहुत सारे विद्यार्थी वर्तमान समय मे उठा रहे है।
अद्ध्यापन अनुभव:-
अनन्तबोध चैतन्य जी हमेशा शास्त्र, संस्कृत भाषा, भारतीय दर्शन और संस्कृति के अपने विशाल ज्ञान के प्रसार में रुचि रखते है ।  .
इन्होंने पिछले10वर्षों के दौरान सैकड़ों छात्रों को इन विषयों मे पारंगत बनाया । 
शिवडेल स्कूल, हरिद्वार में एक आध्यात्मिक सलाहकार के रूप में तीनवर्षो तक अपनी सेवा प्रदान की।
वह हमेशा उनके उन्नत शोध और अध्ययन में भारतीय और विदेशी दोनों प्रकार के लोगों को मदद प्रदान करते रहते है।
उन्होने माल्टा, यूरोप में एक मुद्रा अनुसंधान समूह शुरू किया है जो मानव मात्र को चिकित्सा एवं अध्यात्म मे सहायता मिल रही है ।
प्रकाशन:-
कई पत्र और पत्रिकाओं के लिए लेख लिखने के अलावा संस्कृत अनुसंधान के महान वेदांत साहित्य संपादन में सहायता प्रदान की। 
.सनातन धारा और उपनिषदों के रहस्य का आध्यात्मिक और सार्वभौमिक महत्व अंग्रेजी में अनुवादित किया है।
संस्कृतभाषा में एक विशेष पाठ्यक्रम जल्द ही छात्रों को उपलब्ध कराने जा रहे है ।
इनकी श्री विद्या पर " श्री विद्या साधना सोपान" पुस्तक जल्द ही प्रकाशित होने जा रही है ।
समाज सेवा और क्रियाएँ:-
इन्होनें बच्चों के कल्याण, स्वास्थ्य देखभाल आदि के लिए 2000 में वीर सेवा समिति की स्थापना की ।
इन्होनें दोनों भाषाओं के छात्रों के लिए 2009 में अंग्रेजी संस्कृत अकादमी की स्थापना की। 
इन्होनें 2011 में वैश्विक मिशन के साथ सनातन धारा फाउंडेशन ट्रस्ट की स्थापना की।
अन्य लोगों और आश्रमों द्वारा अपनाई गयी परोपकारी और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए इनकी नि: स्वार्थ सेवाओं ने सभी संन्यासियों और भिक्षुओं के बीच में इन्हे बहुत लोकप्रिय बना दिया है।
सन 2005 से तमाम दुनिया भर के छात्रों को उपनिषदों, श्रीमदभगवतगीता और योग सूत्रों पर इनका प्रवचन लाभ श्री यंत्र मंदिर, कनखल, हरिद्वार में नियमितरूप से उपलब्ध है ।  
समय समय से कई संस्थाओं के सदस्य और एक योग्य प्रशासक के रूप में उनके विकास के लिए अपना मूल्यवान निर्देशन भी देते रहे है।
इनको सन 2011 मे श्री विद्या साधना पर प्रवचन देने के लिए मलेशिया से आमंत्रण मिला और इन्होने उसे सहर्ष स्वीकार कर एक महीने तक मलेशियावासियो को अपना अमूल्य प्रवचन लाभ प्रदान किया।  
• तत्पश्चात सन 2012 मे पर्थ, ऑस्ट्रेलिया वासियों को गीता और योग सूत्रो पर अपने उत्कृष्ट उपदशों से लगातार 3 महीने तक लाभान्वित किया।  
 •इन्होने सन 2011में बैंकाक, थाईलैंड में हिंदू धर्म का सफल प्रतिनिधित्व किया है ।
इन्होने 2013 में बोन्तांग, कालिमन्तान, इंडोनेशिया में सभी धर्मों के बीच सद्भाव विषय पर शानदार व्याख्यान दिया ।
इनके देश विदेश मे सफल सफल ज्ञान प्रसार अभियान को देखते हुये एक आध्यात्मिक नेता के रूप बाली इंडोनेशिया में हिंदू शिखर सम्मेलन 2012, 2013, और 2014 में आमंत्रित किया गया ।
ये मुद्रा सिखाने के लिए जनवरी 2014 मे माल्टा, यूरोप मे 15 दिन के लिए गए और बहुत से लोगो ने उनके सफल प्रयोग की सराहना की।  
इन्हे जकार्ता, इंडोनेशिया के बैंक में रामायण के अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान अपने बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिए एक मुख्य वक्ता के रूप में सर्वोच्च प्रशंसा के साथ सम्मानित किया गया ।
इन्होने जनवरी 2014 में माल्टा, यूरोप में ' मुदाओ के द्वारा चिकित्सा ' के विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया।
ये धार्मिक सद्भाव और विश्व बंधुत्व के एक मिशन के साथ दुनिया भर की यात्रा कर रहे है।



रविवार, 29 मई 2011

Shree Yantra Mahima by Brahmchari Anantbodh Chaitanya

            
       
                      श्री  यन्त्र मन्दिरम्   


विश्वस्मिन् ननु भुतले शुभकरो देव्यालयोऽन्यत्र कः
चित्तागारविचारराशिरचना संपुरको यो चिरम्
अत्रैवाद्वयतत्त्वसिद्धभवने निर्वाणपीठाश्रमे
सर्वाशापरिपूरकःशिवकरो दिव्यालयो विद्यते ॥१
यत्वात्सल्य रसेन नित्य वसुधा सिक्ता दरीदृश्यते
यस्याह्लाद कर्णेन चन्द्रतरणी दिव्यौ भव्यौ स्मृतौ
विश्वं यत्कृपया सदा गुणगणैः सत्यं समुज्जृम्भते
तस्याः भीतिनिवारणैक कुशलो दिव्यालयो दृश्यते ॥२
या ब्रह्मादिसुरेश्वरैः जनिमतां वंद्यैः सदा वन्दिता
भक्तानां भवभीति भंजनपरा भक्तिप्रदा भैरवी।
दावाग्निर्भववासनाधिविपिने ज्ञानात्मिका या चित्तिः
सा श्री मन्दिरचत्वरे विलषते श्री राजराजेश्वरी ॥३
भैकाभ्रद्वन्द्वे सुभगतरवर्षे ग्रहपतौ
हरिद्वारे तीर्थे सुरतटिनि तीरे कनखले
महाकुम्भे दिव्ये सुरवर विलासैक भवनम्
महादेव्याः भव्यं भुवनकमनं दिव्यमसृजत् ।।४
निर्वाणपीठेश्वरः आचार्यविश्वदेवानन्दयतिः
श्री श्री यन्त्र मन्दिरे हरिद्वारे श्रियं स्थापयति
नत्वा गुरुं गणपतिं पितरौ जगदम्बिकासदाशिवौ
सर्वान् साधून् प्रणम्य श्री मन्दिरं सुसंथापयति
     ब्रह्मचारी अनन्तबोध चैतन्य


गुरुवार, 26 मई 2011

Go Mahima by Brahmchari Anantbodh Chaitanya










धर्मं की जय हो  ॥ अधर्म का नाश हो प्राणियों में सदभावाना हो ॥ विश्व का कल्याण हो ॥  हर हर महादेव 
गौ हत्या बन्द हो ॥ गौ माता की जय हो ॥ भारत माता की जय हो ॥
गोरुत्पत्ति - दक्षप्रजापति के अमृतपान से तृप्त होने पर जीवों के कल्याणार्थ उनकी क्षुत् तृषा निवृत्ति के लिये मुख से असंख्य कपिला गायें उत्पन्न हुई| ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार गोलोक निवासी बालकृष्ण के मन में गोदुग्ध पीकर गोपाल होने का भाव आया।गाय द्वारा जो पालित है।[गावः पालयन्ति यं इति गोपालः]-अथवा गायों का जो पालन करता है। [गां पालयति यः स इति गोपालः]।तो उनके दक्षिण में सुरभि का प्राकट्य हो गया भगवान कृष्ण ने पर्याप्त दूध दुहकर पी लिया शेष जो दूध बचा वही गोलोक का क्षीरसागर बना।
सिद्धान्तशिरोमणी के अनुसार देवाधिदेव महादेव को अपने पांचों मुखों पर पांच प्रकार की भस्म लगाने का भाव आया तब उनके पञ्चवक्त्रों से पांच गावों का तथा पांच गावों से ही पांच प्रकार की विभूति का उदय हुआ जो इस प्रकार है
१ सद्योजात - नन्दा - विभूति
२ वामदेव - भद्रा - भसित
३ अघोर - सुरभि - भस्म
४ तत्पुरुष - सुशीला - क्षार
५ ईशान -सुमना - रक्षा
नन्दा भद्रा च सुरभीः सुशीला सुमनास्तथा ।
पञ्चगावो विभोर्जाताः सद्योजातादि वक्‌त्रतः॥
विराट पुरुष से गौ उत्पन्न हुई {गावो ह जज्ञिरे } पुरुषसूक्त यजूर्वे
गोपदार्थ -गौ - पृथ्वी -स्वर्ण -सुर्यकिरणें- इन्द्रियां -वेदवाणी -आदि विभिन्न अर्थ संस्कृत साहित्य में प्राप्त हैं। गच्छति इति गौ गमेर्ड इस धातु से गौ शब्द की निष्पति होती है। अर्थात् जो चल रही है जा रही है तात्पर्य जो कुछ भी दुनियां मे चल रहा है जा रहा है सब कुछ गौ ही है संपूर्ण प्रपञ्च गौ ही है।विश्व की लगभग सभी भाषा ओं मेंगाय को कू कौ का ऊ बोला जाता है। अंग्रेजी में तो परमात्मा तक को गोद कहा जाता है जो स्पैलिङ्ग गौड की होगी वही गोद की होगी अर्थात् गां ददाति इति गोद -जिसने विश्व कल्याणार्थ गौ दी या दान की वही गौ दाता भगवान ही अंग्रेजी का गौड हो गया।गोमति गोमती और गोदावरी नदियों का जीवन तो गौ ही है।गोरक्षपुर गोरखपुर गोरक्षक गोरखाजाति मारवाडियों में एक गौत्र विशेष गो इनका गोयनका गोल्याण हिंसकों से जो गायों को बचाकर लाये।
संस्कृतभाषा में एक गवेषणा शब्द है इसका अर्थ है -गो की इच्छा ।जैसे वित्तेषणा पुत्रेष्णा ठीक वैसे ही गवेष्णा भी ग्राह्य है।गौ हमारी जीवन धायक शक्ति हमारी रग रग में बसी रोम रोम में रमी है।गौ धूलि वेला का मुहूर्त अत्युत्तम है।
गौ पद से जैसी कैसी जर्सी विदेशी दोगली वर्णसाङ्कर्योत्पन्न गौ वाच्य नहीं है।इसकी उपेक्षा तो व्यक्ति भैंस पाल ले तो ठीक हैब्रह्मचारी अनन्तबोध चैतन्य ,हरिद्वार

Introduction about Acharya Satish (Anantbodh Chaitanya)


 
                                                 
 Tradition

Shri Anantbodh Chaitanya an ascetic Brahmchari in Shri Govind Math convention represents the luminary lineage of the great-enlightened saints and yogis that renounce their homes at an early age in the search of supreme truth giving up all worldly ties and aspirations.Shri Anantodh Chaitanya took naishtik  Bramcharya (नैष्ठिक ब्रह्मचर्य) Diksha from Nirvana Pithadhishwara Acharya Mahamandleshwara Shri Shri 108 Swami Shri Vishwadevananda ji Maharaj in April 2005.

Early years

Ø  The spiritual journey began with spending eight long years in achieving spiritual excellence through intensive spiritual training in the company of the great saints and sadhus at the Himalayan foothills.
Ø  Belonging to the sect of Adi Shankaracharya, he chooses to devote his life to the service of Vedic scriptures and to the spiritual values of Indian heritage and culture.
   
     Education-

Ø  Graduation (Shastri) with Sanskrit language, Indian Philosophies
Ø  Masters' (Acharya) degrees in Darshan.
Ø  PhD. In Gyan Mimansa about to submit from Sampurnanda Vishwavidyalya, Varanasi
Ø  Special comprehensive training into the depths of the spiritual and moral scriptures and classical treatises with outstanding masters and accomplished saint- philosophers like his spiritual mentors of enormous intellectual caliber Acharya Mahamandelshwar Nirvana Pithadhishwar Swami Shri Vishwadevanada Ji Maharaj has enabled Brahmchari ji present the essence of the Indian spiritual wisdom in pristine as well as most practical form.

Teaching and Experience

Brahmchari Ji has always been interested in disseminating his vast knowledge of    scriptures, Sanskrit language, Indian philosophy and culture. He has taught these subjects to hundreds of students during last 10 years.
He has always helped people both Indian and foreigners in their advanced researches and studies.

Publications
  
Ø   Besides writing articles for several journals and magazines already published.     
Ø  His work on Upanishads is not only in Sanskrit language but English and Hindi language also in press.
Ø  Spiritual and universal significance of the Sanatan Dhara and Secrets of the Upanishads are being translated into English.
Ø  A special course in Sanskrit language will soon be made available to the students.
     
     Social Service & Activities:

Ø  He founded Veer Seva Samiti in 200o for the children welfare, health-care etc.
Ø  Founded Sanatan Dhara Foundation with global mission in 2006.
Ø  Established English Sanskrit Academy in 2009 for the students of both the languages.
Ø  His selfless services to philanthropic and academic purposes pursued by other people and ashrams, has made him very popular among all ascetics and monks irrespective of differences in sects and conventions
Ø  As member of several institutions and as an able administrator he has given his valuable guide-lines for their development.



Param Guru Mahima by Anantbodh Chaitanya


                  

 

           श्री कृष्णानन्दस्तुतिः
सर्वशास्त्रार्थनिष्णातं निगमागमबोधकम्  
श्री कृष्णाख्यं यतिश्रेष्ठं प्रणमामि पुनः पुनः ॥1 
कृष्णानन्दं जगद्वन्द्यं कारुण्यामृतसागरम्  
स्वात्मानन्दनिमग्नञ्च शिवसायुज्यसाधकम् 2 
जीवितं यस्य लोकायऽऽलोकायैव च जीवनम् । 
महादेव समं मान्यममान्यानपि मानदम् 3 
हार्दं लोकहितार्थाय मनोहारि च यद्वचः  
राकेन्दुरिव दिव्याय भव्याय नमो नमः 4 
काषायवस्त्रभूषाय मालारुद्राक्षधारिणे  
श्री कृष्णानन्दसंज्ञाय गुरुणां गुरवे नमः। 5
यतिमण्डलमार्तण्डमानन्दान्बुधिसन्निभम् 
 नमामि शिरसा देवं कृष्णानन्दं यतिं वरम् ॥6 
अज्ञानतिमिरध्वान्तं विप्रकुलसमुद्भवम् ।
नमामि मनसा देवं कृष्णानन्दं यतिं वरम् 7 
नमः परमहंसाय सुधीभिर्वन्दिताय च  
श्री कृष्णानन्दसंज्ञाय गुरुणां गुरवे नमः 8 
अष्टश्लोकी स्तुतिरेषा पुण्यानन्दविवर्धिनी । 
विरचिता ह्यनन्तेन गुरुदेव प्रसादतः

शनिवार, 21 मई 2011

Guru Mahima by Anantbodh Chaitanya



   

     श्री गुरुमहिमा
कालिकाराधको नित्यं ज्ञानदीक्षा प्रदायकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥१
रहः पूजनसन्तुष्ठो महादेवी प्रपूजकः ।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥२
गीतारहस्यवक्ता यः महानिर्वाणदायकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥३
वेदाद्वैतमताचार्यो सर्वलोकैकदेशिकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥४
ऊर्ध्वरेता महाज्ञानी शिष्यानुग्रहकारकः ।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥५
जगद्वन्द्यो मुनिश्रेष्ठस्तत्त्वज्ञानप्रदायकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥
करुणामुदितासिन्धुर्भक्तितत्त्वप्रबोधकः
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥७ 
आचार्योऽधिगतस्तत्त्वमुक्तिज्ञानप्रदायकः। 
विश्वदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥८
     अनन्तबोध चैतन्य विरचिता गुरुमहिमा