।। श्रीशरदपुरीमहाराजपञ्चम् ।।
विद्यावैभवसंयुतं शिवकृपास्नातं शुभाढ्यं गुरुं वेदार्थैकविवक्तृरूपमतुलौदार्यैस्सदाढ्यं द्विजं शास्त्रोल्लाससमन्वितं हरिकथागानैस्सदानन्दितं वन्दे श्रीशरदं पुरीं मुनिवरं सत्यैकनिष्ठं प्रभुम्।।१।।
विद्या के वैभव (ऐश्वर्य) से युक्त, भगवान् शिव की कृपा से नहाए हुए, वेदों के अर्थ विशेष वक्ता स्वरूप, अतुलनीय उदारता से सदा धनवान्, ब्राह्मण, शास्त्रों के ज्ञान से उल्लासित, हरि की कथा से सदा आनंदित,सत्य के प्रति एकनिष्ठ, मुनिवर, श्रीशरद पुरी जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।।
नानाख्यानकथासुगाननिपुणं ब्रह्मौजसा भासितं विज्ञानाक्षियुतं ह्यदृश्यमपि यस्संलोकयेद्दृश्यवत् नम्रत्वादिगुणैर्महत्वपरकश्शैवार्थयुक्तं यतिं वन्दे श्रीशरदं पुरीं शमकरं लोकोपकारे रतम्।।२।।
अनेक प्रकार के आख्यान और कथाओं को गाने में जो अत्यंत निपुण हैं , ब्रह्म के तेज से विभासित हैं, विज्ञान की दृष्टि वाले हैं , अदृश्य को भी जो साक्षात् दृश्य की तरह देख लेते हैं , नम्रता आदि गुणों के कारण महान्, शैव अर्थ से युक्त , महात्मा, शांति प्रदान करने वाले , संसार के कल्याण में लगे रहने वाले , श्री शरद पुरी महाराज को प्रणाम करता हूं।
दिव्यत्वप्रतिपादकं सुविमलं देवार्चनातत्परं पुण्याभाविलसन्मुखं शिवगुरोर्मोदाम्बुधौ मज्जितं सारल्यप्रतिमूर्तिमेव सुगुरुं श्रौतप्रभाभासितं वन्दे श्रीशरदं पुरीं मखकरं विप्रप्रियं भावुकम्।।३।।
दिव्यत्व का प्रतिपादन करने वाले निर्मल चरित्र देवताओं की अर्चना में तत्पर पुणे की आभा से विरासत मुख वाले शिव गुरु की आनंद सागर में डूबे हुए , सारल्य की प्रतिमूर्ति, सच्चे गुरु , श्रौत की प्रभा से उद्भासित,यज्ञ कराने वाले , ब्राह्मणों के प्रिय और भावुक, श्री शरद पुरी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।
तात्पर्यार्थविवेचकं सुमनसां कार्यैस्सदानन्दितं विद्वद्भिर्बहुशास्त्रधारिपुरुषैर्भक्त्या समावन्दितं लोकालोकसुखप्रदं भगवतीपूजाश्रियोद्भासितं वन्दे श्रीशरदं पुरीं शतगुणं मोहादिभिर्वर्जितम्।।४।।
तात्पर्य अर्थ का विवेचन करने वाले सज्जनों के कार्यों से सदा आनंदित होने वाले , विद्वानों और बहुत से शास्त्रों को धारण करने वाले पुरुषों के द्वारा , भक्ति पूर्वक वंदन किए जाते हुए, लौकिक और अलौकिक सुख प्रदान करने वाले , भगवती की पूजा रूपी श्री से उद्भासित स्वरूप वाले,सैकड़ों गुणों को धारण करने वाले , मोह आदि से दूर श्री शरद पुरी महाराज की मैं वंदना करता हूं।
सत्यार्थप्रियमाशुतोषशरणं श्रीरामपूजाश्रयं दिव्यार्थप्रतिपादकं सदसतोर्भेदे सुदक्षं धिया दाने रागयुतं च दीनजनतोद्धारे रतं सत्प्रियं वन्दे श्रीशरदं पुरीं हरिगुणं धर्मैकचिन्तारतम्।।५।।