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बुधवार, 27 अगस्त 2025

गणेश चतुर्थी: विघ्नहर्ता का आगमन और समाज के महापर्व का महत्व


भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत में त्योहारों का एक विशेष स्थान है। इन्हीं में से एक सबसे लोकप्रिय, हर्षोल्लास और आस्था से परिपूर्ण त्योहार है - गणेश चतुर्थी। यह वह पर्व है जो समस्त बाधाओं को हरने वाले, बुद्धि और समृद्धि के दाता, भगवान गणेश के धरती पर आगमन का प्रतीक है। पूरे देश में, विशेषकर महाराष्ट्र में, यह उत्सव दस दिनों तक अत्यंत ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

भगवान गणेश का महत्व: प्रथम पूज्य देवता

हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। कोई भी शुभ कार्य, यज्ञ या पूजा उनकी वंदना के बिना शुरू नहीं होती। उनका सिर हाथी का है, जो बुद्धि, विवेक और सूझबूझ का प्रतीक है। उनका बड़ा पेट सभी सुख-दुख को समान रूप से पचा लेने की क्षमता को दर्शाता है। उनके हाथ में सुख-समृद्धि का प्रतीक मोदक और जीवन की राह में आने वाले विघ्नों को हटाने वाला अंकुश है। वे सिर्फ एक देवता ही नहीं, बल्कि हर परिवार के पुत्र, सखा और मार्गदर्शक हैं।

इतिहास और उत्पत्ति: एक गहन पौराणिक आधार

गणेश चतुर्थी की उत्पत्ति के पीछे कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान गणेश के जन्म से जुड़ी है। कहा जाता है कि माता पार्वती ने स्नान करते समय अपने शरीर पर लगे उबटन से एक बालक का निर्माण किया और उसे अपना द्वारपाल बनाया। जब भगवान शिव आए तो इस बालक ने उन्हें रोक दिया। क्रोधित शिव ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। माता पार्वती के क्रोध और दुख को शांत करने के लिए शिवजी ने एक हाथी के बच्चे का सिर उस धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित किया और उसे सभी देवताओं में प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया।

इस त्योहार को सार्वजनिक रूप से मनाने की शुरुआत महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में हुई थी। बाद में भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस पर्व को एक सार्वजनिक उत्सव के रूप में प्रचारित किया। तिलक जी ने देखा कि यह त्योहार हिंदू समाज को एकजुट करने और अंग्रेजों के खिलाफ जनजागृति फैलाने का एक शक्तिशाली माध्यम बन सकता है। तब से ही पंडालों में विशाल प्रतिमाओं की स्थापना और सामूहिक उत्सव का चलन शुरू हुआ।

परंपराएँ और उत्सव: दस दिन का अनूठा उल्लास

गणेश चतुर्थी का उत्सव भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है। महाराष्ट्र में इस पर्व का रंग सबसे निराला होता है।

  • स्थापना (प्रतिष्ठापन): घर या पंडाल में शुभ मुहूर्त में गणेश प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इसके बाद 'ढोल-ताशे' की धुन के साथ उत्सव की शुरुआत होती है। मंत्रोच्चारण के साथ प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है।

  • घर की परंपराएँ: घरों में छोटी और सुंदर प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं। प्रतिदिन सुबह-शाम आरती, भजन-कीर्तन, मोदक और अन्य प्रसाद का भोग लगाया जाता है। घर में सुगंधित फूलों और रंगोली की खुशबू छा जाती है।

  • पंडालों की रौनक: सार्वजनिक पंडाल विषय-आधारित सजावट, रोशनी और भव्य प्रतिमाओं से सजे होते हैं। यहाँ हर दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिसमें नाटक, लोकनृत्य, भजन संध्या और प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।

  • दस दिन का उत्सव: इन दस दिनों में भक्त गणपति के अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं और उनके 108 नामों का जाप करते हैं।

विसर्जन: एक भावनात्मक विदाई

अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी की विदाई का दिन होता है। यह दिन भक्तों के लिए अत्यंत भावुक कर देने वाला होता है। शोभायात्रा के रूप में भक्त 'गणपति बप्पा मोरया, पudच्चा वर्षी लौकर या' (हे गणपति, अगले साल जल्दी आना) का जयघोष करते हुए प्रतिमा को निकटतम जलाशय में ले जाते हैं। यह विसर्जन इस बात का प्रतीक है कि भगवान अपने साथ हमारे सभी दुखों और बाधाओं को ले जाते हैं और अगले वर्ष फिर नई आशा, उल्लास और समृद्धि लेकर आते हैं। इस पल में आस्था, उल्लास और एक अद्भुत मिश्रित भावना देखने को मिलती है।

सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक पहलू

गणेश चतुर्थी सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सामाजिक महोत्सव है। यह पर्व समाज में एकता, भाईचारे और सामूहिक उल्लास की भावना को बढ़ावा देता है। पंडालों के आयोजन में लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ जुड़ते हैं। यह त्योहार कला और संस्कृति को संरक्षित रखने का एक माध्यम भी है। युवा कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है। धार्मिक दृष्टि से, यह आत्मशुद्धि, भक्ति और ईश्वर में आस्था को मजबूत करने का समय है।

पर्यावरण-अनुकूल गणेश उत्सव: एक जिम्मेदारी

पारंपरिक रूप से गणेश प्रतिमाएँ मिट्टी की बनती थीं और उनका विसर्जन नदियों में किया जाता था, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं था। लेकिन आज प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) और रासायनिक रंगों से बनी प्रतिमाओं के विसर्जन से जल प्रदूषण एक गंभीर चुनौती बन गया है। इन अघुलनशील सामग्रियों के कारण जल की गुणवत्ता खराब होती है और जलीय जीवन को नुकसान पहुँचता है।

इस समस्या के समाधान के रूप में पर्यावरण-अनुकूल गणेश उत्सव की अवधारणा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम इस पवित्र पर्व को प्रकृति के अनुकूल बनाएँ:

  • मिट्टी की प्रतिमाएँ: PoP की जगह शुद्ध मिट्टी या प्राकृतिक मिट्टी से बनी प्रतिमाएँ ही खरीदें।

  • प्राकृतिक रंग: प्रतिमा को सजाने के लिए प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग करें।

  • सांकेतिक विसर्जन: एक बड़े पात्र में पानी भरकर घर पर ही सांकेतिक विसर्जन करें और बाद में उस जल से पेड़-पौधों की सिंचाई करें।

  • जैव-अपघट्य सजावट: फूल, पत्तियाँ और अन्य जैव-अपघट्य सामग्री का ही इस्तेमाल करें।

निष्कर्ष:
गणेश चतुर्थी का त्योहार हमें सिखाता है कि बुराइयों और बाधाओं को दूर करने के लिए बुद्धि और विवेक का सहारा लेना चाहिए। यह हमारे अंदर उमंग, उल्लास और नई शुरुआत की भावना भर देता है। आइए, इस बार हम सब मिलकर प्रण करें कि अपनी आस्था और परंपराओं का पालन करते हुए भी हम पर्यावरण की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखेंगे। ऐसा करके हम वास्तव में गणपति बप्पा को प्रसन्न कर पाएंगे, क्योंकि प्रकृति ही उनकी सबसे बड़ी रचना है।

गणपति बप्पा मोरया!