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सोमवार, 28 जुलाई 2025

श्रावण मास का हिंदू परंपरा में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व



श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र मास है। जानिए इसकी पौराणिक कथा, व्रत और पूजा विधियाँ, क्या करें और क्या न करें, और इस महीने का आध्यात्मिक महत्व।

श्रावण मास हिंदू पंचांग का पाँचवाँ मास होता है, जो आषाढ़ पूर्णिमा के ठीक बाद शुरू होता है। इसका नाम ‘श्रवण’ नक्षत्र से लिया गया है, क्योंकि इस मास की पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र होता है। मान्यता है कि इसी महीने समुद्र मंथन हुआ था, जिसमें सबसे पहले विष निकला। इस विष को ग्रहण कर भगवान शिव ने दुनिया को बचाया, इसलिए उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाता है। श्रद्धालु इस समय शिवजी को जल, दूध और बेलपत्र अर्पित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

भगवान शिव के साथ विशेष संबंध


श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। इस मास में शिव की पूजा, व्रत, और जप का विशेष फल बताया गया है। खासकर सोमवार के दिन ‘श्रावण सोमवारी’ का व्रत बहुत पुण्यदायक माना जाता है। कहा जाता है कि माता पार्वती ने शिवजी को पति रूप में पाने के लिए इसी मास में उपवास किया था, इसलिए यह मास भक्तों के लिए खुशियों और आशीर्वाद का प्रतीक है।

भारत के विभिन्न भागों में श्रावण का महत्व


  • उत्तर भारत: यहाँ ‘कांवड़ यात्रा’ बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ भक्त गंगा जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। हरिद्वार, काशी, त्र्यंबकेश्वर जैसे तीर्थस्थलों पर भक्तों की भीड़ लगती है।

  • दक्षिण भारत: इस क्षेत्र में वरलक्ष्मी व्रत, मंगलगौरी व्रत और श्रावण शुक्रवार जैसे अनुष्ठान अधिक प्रचलित हैं। देवियाँ लक्ष्मी एवं पार्वती यहां विशेष पूजा की जाती हैं।

  • पश्चिम एवं पूर्व भारत: नाग पंचमी, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी जैसे उत्सव श्रावण मास में बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। महिलाएं तीज और कजरी तीज के व्रत करती हैं।

साधनाएँ, व्रत और पूजा विधि


  1. सोमवार व्रत: सोमवार का दिन शिवजी का हुआ, इसलिए व्रत रखा जाता है; शिवलिंग पर बेलपत्र, जल, दूध चढ़ाया जाता है और शिवमंत्र का जाप किया जाता है।

  2. मंगल गौरी व्रत: महिलाएं मंगलवार को व्रत रखकर अपने परिवार के कल्याण की कामना करती हैं।

  3. श्रावण शुक्रवार / वरलक्ष्मी पूजा: धन और समृद्धि के लिए लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है।

  4. रुद्राभिषेक: शिवलिंग पर विशेष अभिषेक किया जाता है और महामृत्युंजय मंत्र का जाप होता है।

  5. कांवड़ यात्रा: उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर गंगा जल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने का यह पर्व मनाया जाता है।

  6. अन्य पर्व: नाग पंचमी, तीज, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी आदि श्रावण मास के प्रमुख त्यौहार हैं।

क्या करें और क्या न करें (अनुशंसित नियम)

क्या करें:


  • सुबह जल्दी उठकर स्नान और पूजा करें।

  • सोमवार का व्रत रखें और शिव मंदिर जाकर जल-अभिषेक करें।

  • बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि अर्पित करें।

  • जरूरतमंदों को दान-पुण्य करें, विशेषकर भोजन और वस्त्र।

  • धार्मिक ग्रंथों का पाठ और शिवपुराण, महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

  • संयम, ध्यान और भक्ति से पूजा पाठ करें।

क्या न करें:


  • इस महीने मांसाहार, शराब, लहसुन- प्याज और नशे से पूर्ण वर्जित रहें।

  • झूठ बोलना, हिंसा करना, और बुरे शब्दों का प्रयोग न करें।

  • सोमवार के दिन बाल और नाखून न काटें, और विवाह या मांगलिक कार्य टालें।

  • क्रोध, लोभ, आलस्य जैसी तामसी प्रवृत्तियों से दूर रहें।

आध्यात्मिक महत्त्व


श्रावण मास को आत्मा की शुद्धि और आत्म-अनुशासन का काल माना जाता है। शिवजी की भक्ति में यह मास मनुष्य को संयम, क्षमा और करूणा की ओर प्रेरित करता है। विष को सहन कर अमृत बन जाने वाले नीलकंठ की तरह, श्रावण मास में हम भी अपने अंदर की नकारात्मकता दूर कर सकते हैं।

श्रावण मास भारतीय संस्कृति में अध्यात्म और भक्ति का अमृतकाल है। यह समय भगवान शिव की कृपा से जीवन में सच्ची श्रद्धा, संयम और प्रेम को जगाता है। इसी भाव से श्रावण मास में व्रत रखकर, पूजा-अर्चना करके भक्त अपने जीवन को पवित्र और सुखमय बनाते हैं।