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मंगलवार, 15 जुलाई 2025

दशऋत होकर राम नाम जपें: कोटि यज्ञों के फल का रहस्य

 


राम नाम सब कोई कहे, दशऋत कहे न कोय, 

एक बार दशऋत कहे, कोटि यज्ञ फल होय।

प्रस्तावना: क्या राम नाम सबके लिए फलदायक है?

अधिकतर लोग राम नाम का जप करते हैं, परंतु वे उसके वास्तविक फल से वंचित रह जाते हैं। ऐसा क्यों? इसका उत्तर छिपा है “दशऋत” के सिद्धांत में। जब तक मन, वाणी और कर्म से हम शुद्ध नहीं होते और नाम जप में पूर्ण श्रद्धा व मर्यादा नहीं अपनाते, तब तक राम नाम का प्रभाव मात्र औपचारिक रहता है।

दशऋत का अर्थ क्या है?

‘ऋत’ का अर्थ है – दोष, अपवित्रता, कुवासनाएँ और अशुद्ध प्रवृत्तियाँ। दशऋत से तात्पर्य है वे दस दोष जिनसे बचकर यदि राम नाम लिया जाए, तो उसका प्रभाव कोटि यज्ञ के फल के बराबर हो जाता है।

दश नामापराध: जो राम नाम को निष्फल बनाते हैं

  1. सत्पुरुषों की निन्दा (सन्निन्दा)
    सत्य मार्ग पर चलने वालों की निन्दा करना, ईर्ष्या या स्वार्थ के कारण सच्चाई का विरोध करना।

  2. असत्य वैभव की स्तुति
    झूठ, पाखंड या अधर्म से प्राप्त वैभव की प्रशंसा करना।

  3. श्रीहरि और शिव में भेद बुद्धि
    विष्णु और शिव को अलग मानना, जबकि दोनों एक ही परम सत्ता के रूप हैं।

  4. गुरु वचनों में अश्रद्धा
    सद्गुरु के निर्देशों को महत्व न देना, संदेह करना।

  5. शास्त्रों में अविश्वास
    धर्मशास्त्रों के सत्य एवं उपयोगिता पर विश्वास न करना।

  6. वेद वचनों की उपेक्षा
    वेदों को झूठा या अप्रासंगिक मानना।

  7. नाम के अर्थ में भ्रम
    ईश्वर के विभिन्न नामों के भिन्न अर्थों से उनके अलग-अलग स्वरूप मान लेना।

  8. केवल नाम से मुक्ति की भूल
    यह मानना कि केवल राम नाम जपने से बिना व्यवहारिक सुधार के ही मोक्ष मिल जाएगा।

  9. कर्तव्य से पलायन
    जीवन के उत्तरदायित्वों से मुँह मोड़कर केवल साधना के नाम पर पलायन करना।

  10. अधर्म को धर्म के समान समझना
    सामाजिक कुरीतियों जैसे बलिप्रथा, जातीय भेद को धर्म मान लेना।

नाम जप के साथ संयम और शुद्धि क्यों जरूरी है?

राम नाम कोई साधारण शब्द नहीं है। यह ईश्वर का स्वयं का स्वरूप है। इसका जप तभी फलदायी होता है जब साधक:

  • अपनी इन्द्रियों को संयमित करता है।

  • सच्चरित्र जीवन अपनाता है।

  • दशऋतों से मुक्त होकर शुद्ध भाव से नाम जप करता है।

तोते भी “राम-राम” रटते हैं, पर उससे कोई आत्मिक लाभ नहीं होता। राम नाम तभी सार्थक है जब उसे श्रद्धा, नियम, संयम और समर्पण से जपा जाए।

उपसंहार: कोटि यज्ञों का फल कैसे प्राप्त हो?

जो व्यक्ति दश नामापराधों से बचकर, सच्चे मन से, सद्गुरु के बताए मार्ग पर चलकर, कर्तव्य का पालन करते हुए राम नाम जपता है—वही इस "दशऋत नामजप साधना" का कोटि यज्ञों के फल के समान लाभ प्राप्त करता है।

ऐसे साधकों का जीवन ही यज्ञ बन जाता है, और आत्मा पवित्र होकर प्रभु से जुड़ जाती है।