जीवन परिचय :-
श्री अनन्तबोध चैतन्य का जन्म इतिहास प्रसिद्ध हरियाणा के पानीपत जिले में हुआ । बचपन मे उनका नाम सतीश रखा गया। सतीश बचपन से ही बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के रहे । घर का वातावरण धार्मिक होने के कारण इनको अनेक दंडी स्वामी और नाथ पंथ के महात्माओ का सानिध्य अनायास ही मिलता रहा। विभिन्न गुरुकुलों मे शिक्षा होने के कारण 18 वर्ष की छोटी उम्र मे ही इन्हें व्याकरण के प्रसिद्ध ग्रंथ अष्टाध्यायी आदि के साथ-साथ न्याय वेदान्त के अनेक ग्रंथ जैसे तर्कसंग्रह, वेदांतसार आदि तथा वेदों के भी कुछ अंश कंठाग्र कर लिया था। उपनिषदों का भी इन्हे अच्छा बोध हो गया ।
इनके पिता जी की सत्संग प्रियता एवं सौम्य प्रकृति के फलस्वरूप भगवतसत्ता के प्रति ललक एवं आत्म जिज्ञासा ने इन्हे अध्यात्म की राह मे लगा दिया। अनन्तबोध चैतन्य बाल्यकाल से ही शक्ति के उपासक रहे हैं।
शिक्षा:-
प्रारम्भिक शिक्षा के बाद अनेक गुरुकुलों एवं विद्यालयो में अद्ध्यन करते हुए इन्होंने कतिपय आचार्यों से शिक्षा प्राप्त की। इन्होने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय,कुरुक्षेत्र से संस्कृत भाषा , भारतीय दर्शन के साथ स्नातक (शास्त्री) तथा दर्शन शास्त्र विषय में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की बाद मे भारतीय दर्शन मे ज्ञान विषय से पी एच डी शोधकार्य को संपूर्णानन्द संस्कृत विश्व विद्यालय, वाराणसी को प्रस्तुत किया है ।
दीक्षा:-
सबसे पहले गंगा जी के पावन तट, बिहार घाट(नरौरा,उत्तर प्रदेश) मे परम विरक्त तपस्वी दंडी स्वामी श्री विष्णु आश्रम जी के दर्शनों ने इनके जीवन की दिशा को बदल दिया उनकी आज्ञा से धर्मसम्राट करपात्रि जी महाराज की तपस्थली नरवर, नरौरा मे श्री श्यामसुंदर ब्रह्मचारी जी (बाबा गुरु जी) से स्वल्प समय मे ही प्रस्थानत्रयी का अद्ध्यन किया तथा आत्मा एवं ब्रह्म की एकता को स्वीकार किया। आपने 2003 में स्वामी चेतनानन्द पुरी जी से शक्तिपात व पीताम्बरा की दीक्षा ली। इसके बाद अप्रेल 2005 मे विश्व प्रसिद्ध गोविंद मठ की महान परंपरा मे पूज्य महाराज आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाण पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन स्वामी श्री विश्वदेवानन्द पुरी जी से अद्वैत मत में दीक्षित हुए एवं इनका नाम ‘अनन्तबोध चैतन्य’ पड़ा।
प्रारम्भिक जीवन:-
अनन्तबोध चैतन्य की आध्यात्मिक यात्रा हिमालय की तलहटी के अनेक महान संतों और साधुओं की संगत में गहन आध्यात्मिक प्रशिक्षण के माध्यम से आध्यात्मिक उत्कृष्टता प्राप्त करने में आठ साल बिताने के साथ शुरू हई । .
• इन्होने आदि शंकराचार्य संप्रदाय से संबंधित महानिर्वाणी अखाडे मे वैदिक शास्त्रों की सेवा करने के लिए और भारतीय विरासत और संस्कृति के आध्यात्मिक मूल्यों के लिए अपना जीवन समर्पित करने का संकल्प लिया।
• बचपन की गतिविधियों एवं आध्यात्मिक जीवन के लिए बहुत गहरे आकर्षण को देखते हुये कुछ महापुरुषों ने पहले ही कह दिया था कि एक दिन ये बालक आत्मबोध और मानवता की सेवा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करेंगा।
सनातन धारा की स्थापना:-
देश के सांस्कृतिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक और राष्ट्रीय नवजागरण के लिए सनातन धारा की स्थापना की।
मानव मात्र को इससे नई चेतना मिली और अनेक संस्कारगत कुरीतियों से छुटकारा मिला। गरीब एवं बेसहारा विद्याथियों के लिए छात्रवृति प्रारम्भ की । जिसका लाभ बहुत सारे विद्यार्थी वर्तमान समय मे उठा रहे है।
अद्ध्यापन अनुभव:-
• अनन्तबोध चैतन्य जी हमेशा शास्त्र, संस्कृत भाषा, भारतीय दर्शन और संस्कृति के अपने विशाल ज्ञान के प्रसार में रुचि रखते है ।
• इन्होंने पिछले10 वर्षों के दौरान सैकड़ों छात्रों को इन विषयों मे पारंगत बनाया ।
• शिवडेल स्कूल, हरिद्वार में एक आध्यात्मिक सलाहकार के रूप में कई वर्षो तक अपनी सेवा प्रदान की।
• वह हमेशा उनके उन्नत शोध और अध्ययन में भारतीय और विदेशी दोनों प्रकार के लोगों को मदद प्रदान करते रहते है।
• इन्होने माल्टा, यूरोप में एक मुद्रा अनुसंधान समूह शुरू किया है जो मानव मात्र को चिकित्सा एवं अध्यात्म मे सहायता मिल रही है।
• इन्होने लिथुआनिया में योग एवं अध्यात्म के प्रचार व प्रसार के लिए "अनंतबोध योग" नामक योग केंद्र की स्थापना की। जहाँ पिछले 10 वर्षो से योग विद्या को फैला रहे है। आप वहां लोकल गवरमेंट के साथ मिलकर योग सीखा रहे है।
प्रकाशन:-
• कई पत्र और पत्रिकाओं के लिए लेख लिखने के अलावा संस्कृत अनुसंधान के महान वेदांत साहित्य संपादन में सहायता प्रदान की। सनातन धारा और उपनिषदों के रहस्य का आध्यात्मिक और सार्वभौमिक महत्व अंग्रेजी में अनुवादित किया है।
• संस्कृतभाषा में एक विशेष पाठ्यक्रम जल्द ही छात्रों को उपलब्ध कराने जा रहे है ।
• इनकी श्री विद्या पर " श्री विद्या साधना सोपान" पुस्तक प्रकाशित है ।
समाज सेवा और क्रियाएँ:-
• इन्होनें बच्चों के कल्याण, स्वास्थ्य देखभाल आदि के लिए 2000 में वीर सेवा समिति की स्थापना की ।
• इन्होनें 2011 में वैश्विक मिशन के साथ सनातन धारा फाउंडेशन ट्रस्ट की स्थापना की।
• आपने 2012 में श्री दिनेश गौतम जी के साथ मिलकर दृष्टि फाउंडेशन ट्रस्ट, अहमदाबाद में स्थापना की।
• अन्य लोगों और आश्रमों द्वारा अपनाई गयी परोपकारी और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए इनकी नि: स्वार्थ सेवाओं ने सभी संन्यासियों और भिक्षुओं के बीच में इन्हे बहुत लोकप्रिय बना दिया है।
• सन 2005 से तमाम दुनिया भर के छात्रों को उपनिषदों, श्रीमदभगवतगीता और योग सूत्रों पर इनका प्रवचन लाभ श्री यंत्र मंदिर, कनखल, हरिद्वार में नियमितरूप से उपलब्ध है ।
• समय समय से कई संस्थाओं के सदस्य और एक योग्य प्रशासक के रूप में उनके विकास के लिए अपना मूल्यवान निर्देशन भी देते रहे है।
• इनको सन 2011 मे श्री विद्या साधना पर प्रवचन देने के लिए मलेशिया से आमंत्रण मिला और इन्होने उसे सहर्ष स्वीकार कर एक महीने तक मलेशियावासियो को अपना अमूल्य प्रवचन लाभ प्रदान किया।
• तत्पश्चात सन 2012 मे पर्थ, ऑस्ट्रेलिया वासियों को गीता और योग सूत्रो पर अपने उत्कृष्ट उपदशों से लगातार 3 महीने तक लाभान्वित किया।
• इन्होने सन 2011में बैंकाक, थाईलैंड में हिंदू धर्म का सफल प्रतिनिधित्व किया है ।
• इन्होने 2013 में बोन्तांग, कालिमन्तान, इंडोनेशिया में सभी धर्मों के बीच सद्भाव विषय पर शानदार व्याख्यान दिया ।
• इनके देश विदेश मे सफल सफल ज्ञान प्रसार अभियान को देखते हुये एक आध्यात्मिक नेता के रूप बाली इंडोनेशिया में हिंदू शिखर सम्मेलन 2012, 2013, और 2014 में आमंत्रित किया गया ।
• ये मुद्रा सिखाने के लिए जनवरी 2014 मे माल्टा, यूरोप मे 15 दिन के लिए गए और बहुत से लोगो ने उनके सफल प्रयोग की सराहना की।
• इन्हे जकार्ता, इंडोनेशिया के बैंक में रामायण के अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान अपने बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिए एक मुख्य वक्ता के रूप में सर्वोच्च प्रशंसा के साथ सम्मानित किया गया ।
• इन्होने जनवरी 2014 में माल्टा, यूरोप में ' मुदाओ के द्वारा चिकित्सा ' के विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया।
• इन्होने जून 2015 में लिथुआनिया के योनावा नमक शहर में "अनंतबोध योग" की स्थापना की।
• इन्होने सितम्बर 2017 वसुधैव कुटुंबकम की भावना को ध्यान में रखते हुए Namai Pasauliui, všį जो एक गैर सरकारी संघ है को बनाया जिसके माध्यम से समाज हित एवं भारतीयता तथा वैदिक मूल्यों को बढ़ावा दिया।
• आपको 2018 में जर्मनी में प्रवचन करने का आमत्रण मिला जिसे आपने सहर्ष स्वीकार किया।
• आपने 2019 में लातविया के रीगा में स्वास्थ्य व वैदिक विज्ञान के ऊपर व्याख्यान दिया।
• आप मई 2022 में नीदरलैंड के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में शिव तत्व पर प्रवचन देने के लिए गए। नीदरलैंड के कई शहरो में आपने अपने व्याख्यानों से काफी लोगो को लाभ पहुंचाया।
• आप धार्मिक सद्भाव और विश्व बंधुत्व के एक मिशन के साथ दुनिया भर की यात्रा कर रहे है।
गुरुवार, 4 मई 2023
श्री अनन्तबोध चैतन्य का जीवन परिचय
शनिवार, 26 नवंबर 2022
ध्यान का विज्ञान (THE SCIENCE OF MEDITATION)
ध्यान का विज्ञान
ध्यान आध्यात्मिक उपचार की कला है। यह विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए वैज्ञानिक रूप से सिद्ध विज्ञान है, चाहे वह शारीरिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक हो। आज का चिकित्सा विज्ञान समझाता है कि मानव जाति को होने वाली अधिकांश बीमारियाँ मनोदैहिक होती हैं, जिसका अर्थ है कि उनमें एक मानसिक या मानसिक घटक और एक दैहिक या भौतिक घटक होता है। तनाव के उच्च स्तर के कारण अवचेतन में तरंगें कुछ शारीरिक बीमारी को प्रकट करती हैं। इसलिए उपचार के सिद्धांत में विभिन्न प्रकार की ध्यान तकनीकों की विधि द्वारा कारण को समाप्त करना शामिल है
साक्षी का अर्थ है बिना प्रयास के प्राकृतिक साक्षी और समाधि मन की गहन ध्यान अवस्था है। इसे जप की सहायता से या कुंडलिनी शक्ति को जगाकर प्राप्त किया जा सकता है। शाक्षी समाधि ध्यान बस इतना ही है - एक प्राकृतिक, सहज ध्यान प्रणाली जो चेतन मन को अपने आप में गहराई से बसने की अनुमति देती है, जिससे उसे बहुत जरूरी गहरा आराम मिलता है। जब मन शांत हो जाता है, तो यह सभी तनावों और तनावों को छोड़ देता है और वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करता है। सभी अप्रिय विचारों को दूर करता है और मन में भावनाओं को शांत करता है।
ध्यान में मन की विचारहीन अवस्था
केवल वर्तमान क्षण में - उन क्षणों में जब मन अतीत के बारे में पछतावे और भविष्य के बारे में चिंता से मुक्त हो जाता है - क्या किसी को सच्ची खुशी मिलती है। कुछ ही सत्रों में आप अपने स्वयं के स्वभाव की गहराई में उतरना सीखेंगे। आप अपने दिल में आनंद और शांति की खोज करेंगे।
साक्षी समाधि ध्यान बहुत आसान और सुखद है और नियमित दैनिक अभ्यास आपके जीवन की गुणवत्ता को पूरी तरह से बदल सकता है। साक्षी समाधि के माध्यम से, ध्यान जीवन में अनुशासन और मन में आनंद की भावना पैदा करता है, शरीर, मन और आत्मा को फिर से जीवंत करता है।
THE SCIENCE OF MEDITATION
Meditation is the art of spiritual healing. It is a scientifically proven science for curing various ailments, be it physical, physiological or psychological. Today's medical science explains that most diseases inflicted on mankind are psychosomatic, meaning they have a psychic or mental component and a somatic or physical component. Ripples in the subconscious due to higher levels of stress manifest some physical illness. The principle of treatment, therefore, consists in eliminating the cause by the method of various types of meditation techniques
Shakshi means natural witness without effort and samadhi is a deep meditative state of mind. This can be achieved with the help of Japa or by awakening the Kundalini Shakti. Shakshi Samadhi meditation is just that - a natural, effortless meditation system that allows the conscious mind to settle deep into its own self, giving it much-needed deep rest. When the mind calms down, it lets go of all tension and stress and focuses on the present moment. removes all unpleasant thoughts and eases the feelings in the mind.
The thoughtless state of mind in meditation
Only in the present moment—those moments when the mind is freed from regrets about the past and anxiety about the future—does one find true happiness. In just a few sessions you will learn to tap into the depths of your own nature. You will discover bliss and peace within your own heart.
Shakshi Samadhi meditation is very easy and enjoyable and regular daily practice can completely change the quality of your life. Through Shakshi Samadhi, meditation instils discipline in life and a sense of joy in the mind, rejuvenating the body, mind and soul.
गुरुवार, 1 जुलाई 2021
स्वामी श्रीशारदानन्दगिरीजी को भावभीनी श्रद्धांजलि
|| दिवङ्गतेभ्यश्श्रीशारदानन्दगिरिस्वामिभ्यश्श्रद्धाञ्जलि:||
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भावैर्यं हृदयं स्मरेन्मधुमयं सौख्यस्मृतिं स्वामिनं
चित्तं नैव जहाति यस्य महिमाप्लावप्रसन्नं रतिं
दिव्यप्रीतियुजामिवाच्युतहरेर्भक्तौ च यो मज्जितो
ब्रह्मत्त्वं स गतोऽद्य मद्गुरुवरश्श्रीशारदानन्दन:||१||
जिन मधुमय, सुखसम्पन्न स्मृति वाले, स्वामी जी को हमारा दिल भावुक होकर स्मरण करता है, जिनकी महिमा में डूबकर प्रसन्न मन जिनकी मोहब्बत को छोड़ना ना चाहे, जिनका प्रेम ही दिव्य होता है ऐसे लोगों की तरह , कभी नष्ट ना होने वाले हरि की भक्ति में ही जो डूब चुके हैं, ऐसे हमारे गुरुवर श्री शारदानंद गिरि जी आज ब्रह्मलीन हो गए।
यच्चैवाद्य महात्मनां बहुविधं सङ्घात्मकं ख्याप्यते
तेष्वेकं च 'निरञ्जनी'ति भवताद्वैराग्यभाजां सुखं
तस्मिन् श्रीलनरोत्तमाद्गुरुवराद्दीक्षां प्रलभ्याप्यसौ
धर्मप्राणमयप्रयाग-परमानन्दाश्रमी राजते||२||
जो आज संन्यस्त महात्माओं के संघ स्वरूप बहुत से अखाड़े हैं उनमें से एक निरंजनी अखाड़ा भी है इसी अखाड़े के अंतर्गत श्रीमान् नरोत्तमानंद गिरि जी महाराज से दीक्षा लेकर, स्वामी शारदानंद गिरी जी ने धर्म के प्राण स्वरूप नगर प्रयागराज में परमानंद आश्रम की स्थापना की।
अध्यात्मैकरुचिश्शुचिर्वररुचिग्रन्थे मुदा संरत:
काशीपण्डितसङ्घलब्धबहुसम्मानश्च सद्भिर्वृतो
देवीवाचमथापि विश्वपटले य: ख्यापयेत्संयमी
त्यक्त्वा संसृतिमद्य विष्णुजगति व्यापद्यतेति श्रुतम्||३||
एकमात्र अध्यात्म में रूचि वाले , अत्यंत पवित्र , वररुचि के ग्रंथ का अध्ययन करने वाले,काशी पंडित परिषद् से बहुत सम्मान प्राप्त करने वाले , सज्जनों से घिरे रहने वाले, संयमी तथा संस्कृत को पूरे संसार में फैलाने वाले, आज इस अलौकिक संसार को छोड़कर भगवान विष्णु के लोक को पधार गए!
हे स्वामिंस्तव धर्मपूर्णपदवी अक्ष्णोर्ममास्ते सदा
हे स्वामिंस्तव कर्मभूमिरिव मे नेत्राग्रगा वर्तते
हे स्वामिंस्तव मर्मजातगुणसद्भावाश्च वित्तानि नो
हे स्वामिंस्तव सत्कथा हि जगता प्रेम्णा हृदा स्मर्यते||४||
हे स्वामी जी आपकी धर्म पूर्ण पदवी सदा मेरी आंखों में बसी है । हे स्वामी जी आपकी समस्त कर्म भूमि मेरी आंखों के आगे नाच रही है। हे स्वामी जी! आपके हृदय में बसने वाले सद्भाव, जिनको हमने ग्रहण किया, वही हमारी जमा-पूंजी हैं। हे स्वामी जी आपके जीवन की सच्चरित्र रूपी कथा इस संपूर्ण संसार के द्वारा हार्दिक भावों से सदा ही स्मरण करी जाएगी।
के धर्माय कतीह जीवनमहो जीवन्ति हात्त्वा गृहं
के वेदाय समर्पिता भुवि जनाश्शास्त्राय गोभ्यस्तथा
हैषामेकमिदं समुत्तरमहं तुभ्यं ददामीति रे
सन्तस्सन्ति यथा दिवङ्गतगुरुश्श्रीशारदानन्दन:||५||
ऐसे कितने हैं, और कौन हैं, जो अपने घर-बार को छोड़कर सिर्फ धर्म के लिए ही जीवन जीते हैं?? ऐसे कितने लोग हैं, और कौन हैं , जो वेद-शास्त्र पढ़ने के लिए जीवन जीते हैं तथा गौ-सेवा के लिए समर्पित हैं??अरे भाई! इन सब बातों का एक ही उत्तर मैं तुम्हें आज देता हूं - वह हमारे संत समाज के लोग हैं! (या इस प्रकार के जो लोग हैं वह भी संत ही हैं) और इन्हीं संतो में एक हैं - श्रीशारदानंद गिरी जी महाराज।
श्रीशारदानन्दगिरिर्महात्मा
सदैव पूज्यश्चरितव्यरूप:
अनन्तबोधैरवबुध्य सन्तं
हिमांशुगौडैर्व्यरचीह भावै:||
श्रीशारदानंद गिरि जी महाराज, सदैव पूज्य और आचरण करने योग्य है धर्मरूप जिनका, इस प्रकार के महात्मा थे! स्वामीश्रीअनंतबोध चैतन्य जी द्वारा उन संत के विषय में जानकार तथा प्रेरणा पाकर, हिमांशु गौड़ ने अपने भावों द्वारा यह श्रद्धांजलि स्वामी जी के लिए समर्पित की है।
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हिमांशुर्गौड:
०८:४५ रात्रौ,
३०/०६/२०२१
बुधवार, 10 मार्च 2021
क्यों मनाते है महाशिवरात्रि ? एवं महाशिवरात्रि कथा
'महाशिवरात्रि' हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस रात भगवान शिव सृजन, संरक्षण और विनाश का नृत्य करते हैं।। यह पूरे भारत ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों में मनाया जाता है, भगवान शिव के भक्त इस दिन 'उपवास' करते हैं और रात भर जागरण करते हैं! उस दिन मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। इस वर्ष 2021 महाशिवरात्रि 11 मार्च को मनाई जाएगी। हरिद्वार में महाकुम्भ का स्नान भी इसी दिन से शुरू होगा।
'महाशिवरात्रि' के उत्सव के पीछे कुछ कारण हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि महा शिवरात्रि वह दिन है जब भगवान शिव लिंगम के रूप में आए थे (लिंगोदभव”)।शिव पुराण में एक पौराणिक कथा के अनुसार, हिंदू भगवानों और भगवान विष्णु की तीन त्रय - आपस में श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे। इस युद्ध की तीव्रता से भयभीत, अन्य देवताओं ने भगवान शिव से हस्तक्षेप करने और उन्हें इस झड़प की निरर्थकता का एहसास करने का अनुरोध किया। ब्रह्मा और विष्णु के बीच शिव ने अग्नि के एक विशाल स्तंभ का रूप धारण किया। बाद के देवताओं ने अग्नि स्तंभ का शिखर खोजने का फैसला किया। भगवान ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और ऊपर की ओर उड़ गए, जबकि भगवान विष्णु ने वराह (हिंदू देवता विष्णु के अवतार के रूप में वर) का रूप धारण किया और पृथ्वी के अंदर चले गए। जैसा कि प्रकाश असीम है, न तो ब्रह्मा और न ही विष्णु अपनी थकाऊ खोज के बावजूद अंत तक नहीं पहुंच सके। अपनी यात्रा के दौरान, भगवान ब्रह्मा एक केतकी के फूल से धीरे-धीरे नीचे उतरते हुए आए। यह पूछे जाने पर कि वह कहाँ से आई है, फूल ने जवाब दिया कि उसे अग्नि स्तंभ के शीर्ष पर चढ़ाया गया था। भगवान ब्रह्मा ने अपनी खोज को समाप्त करने और फूल को गवाह के रूप में लेने का फैसला किया। इसने शिव को प्रभावित किया, जिन्होंने तब ब्रह्मा को झूठ बोलने के लिए दंडित किया और उन्हें शाप दिया कि कोई भी उनसे कभी प्रार्थना नहीं करेगा। आज तक, केवल एक ही मंदिर है, जो राजस्थान के अजमेर में पुष्कर मंदिर को समर्पित है। जैसा कि केतकी के फूल ने झूठे तरीके से गवाही दी थी, वह भी किसी भी पूजा के लिए प्रसाद के रूप में इस्तेमाल होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। चूंकि भगवान शिव ने देवताओं को शांत करने में मदद की, इसलिए उनके सम्मान में महा शिवरात्रि मनाई जाती है।
जबकि कुछ लोग कहते हैं, यह वह दिन है जब भगवान शिव ने पूरी रात शिव तांडव (नृत्य) किया था।
दूसरों का मानना है कि इस दिन जब भगवान शिव ने दुनिया के लिए " हलाहल " (विष) पी लिया और "नीलकंठ" बन गए।
कुछ अन्य लोग भी हैं जो मानते हैं कि यही वह दिन है जब भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था।
महाशिवरात्रि प्रमुख हिंदू मंदिरों कोणार्क, खजुराहो, पट्टाडकल, मोढेरा और चिदंबरम में वार्षिक नृत्य समारोहों द्वारा चिह्नित है। नटराज - नृत्यों के सर्वोच्च देवता - भगवान शिव का दूसरा रूप भी है। भगवान के सम्मान के साथ शास्त्रीय नर्तकियों द्वारा भगवान शिव के नृत्य रूपों, तांडव और लस्य को विभिन्न रूपों में किया जाता है।
हम में से कई लोग उपवास, जागरण, अभिषेक, और बहुत कुछ अनुष्ठान करते हैं, लेकिन हम में से अधिकांश प्रथाओं के पीछे के सटीक कारणों से अवगत नहीं हैं।
इस रात ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के भीतर की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगती है. यानी प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद कर रही होती है. धार्मिक रूप से बात करें तो प्रकृति उस रात मनुष्य को परमात्मा से जोड़ती है।
उपवास: आंतरायिक उपवास आपके पाचन तंत्र को आराम देता है, और यह आपके चयापचय को अधिक कुशलता से कैलोरी के माध्यम से जलाने के लिए सक्रिय कर सकता है। यदि आपका पाचन खराब है, तो यह भोजन को पचाने और वसा को जलाने की आपकी क्षमता को प्रभावित कर सकता है। आंतरायिक उपवास आपके पाचन को विनियमित कर सकते हैं और स्वस्थ आंत्र समारोह को बढ़ावा दे सकते हैं, इस प्रकार आपके चयापचय में सुधार कर सकते हैं।
जागरण: भक्त पूरी रात जागते हैं, भगवान शिव की पूजा शाम से शुरू होती है और पूरी रात चलती है। रात को 4 पहरों में बांटा गया है। यह माना जाता है कि जो कोई भी शिव का नाम शिवरात्रि के दौरान शुद्ध भक्ति के साथ उपयोग करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। वह शिव के निवास स्थान कैलाश में वास करता है और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
बेल का पत्ता: भोलेनाथ को बेलपत्र बहुत पसंद है, जिसका जिक्र शिव पुराण में भी है. लेकिन इसके अलावा भी कुछ ऐसे पत्ते हैं, जो भोलेनाथ को बेहद प्रिय हैं. भगवान शिव की पूजा करते समय बेलपत्र के अलावा इन पत्तों को भी अवश्य रखना चाहिए।
अभिषेक: पिंडी (लिंग) पर केवल ठंडा पानी डाला जाता है और बेलपत्र चढ़ाया जाता है। चूंकि शिव विघटन के देवता हैं, पिंडी (लिंग) को दूध, पंचामृत, सिंदूर (कुमकुम), हल्दी पाउडर और अक्षत (अखंडित चावल के दाने) चढ़ाए जाते हैं।
शांति और संतान प्राप्ति के लिए गौ दूध से अभिषेक करना चाहिए। शक़्कर मिश्रित दूध सेअभिषेक करनेसे बुद्धि तीव्र होती है । धन की प्राप्ति के लिए गन्ने के रस और स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए शहद से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। शत्रु शमन के लिए सरसो के तेल से और मोक्ष प्राप्ति के लिए तीर्थो के जल से अभिषेक करना चाहिए।
प्रदक्षिणा: शिवलिंग के चारों ओर परिक्रमा बाईं ओर से शुरू होनी चाहिए।
एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’
उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- ‘एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।
अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।’ शिकारी हँसा और बोला, ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’ उत्तर में मृगी ने फिर कहा, ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के
लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।’ मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,’ हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।’ मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।’ उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।
सोमवार, 22 फ़रवरी 2021
WHO IS BAGALAMUKHI ( PITAMBARA)?
Bagalamukhi is the Eighth Mahavidya
Bhagwati Bagalamukhi (बगलामुखी), Bagala or Maa Pitambara (माँ पीतांबरा) is the eighth Mahavidya in the famous series of the 10 Mahavidyas.
The word "BAGALA" is a distorted form of Valga, meaning that bridles or reins, like horses, are placed in and around the mouths of animals to control them. Mukha means face. BAGALAMUKHI is thus understood as the one who canShe has a golden yellow colour and is therefore also known as Pitambari or Pitambara Maa. Pita is yellow).
Expounding the good power of the Goddess Baglamukhi the text Mantra Maharnnav (मन्त्र महार्णव) states -"The Mantra of the Goddess has the facility of the divine weapon Brahmastra instilled in it and the Goddess simply strikes terror in and paralyses the enemies of her Sadhaks. Repetition of her Mantra is enough to prevent even a tempest."
Bagala (the Goddess who seizes the Tongue): She is identified with the second night of courage and is that the power or Shakti of cruelty. She is described as the Devi with three eyes, wearing yellow clothes and gems, the moon as her diadem, wearing Champaka blossoms, with one hand holding the tongue of an enemy and with the left spiking him, thus do you have to meditate on the paralyser of the three worlds.
She rules magic for the suppression of an enemy's gossip. These enemies even have an inner meaning, and therefore the peg she puts through the tongue could also be construed as a peg or paralysis of our own prattling talk. She rules deceit which is at the guts of the foremost speech. She can during this sense be considered as a terrible or Bhairavi sort of Matrika Devi, the mother of all speech.
According to "Todala Tantra", her male consort is Maharudra. Seated on the proper of Bagala is that the Maharudra, with one face, who dissolves the universe. The pulling of the demon's tongue by Bagalamukhi is both unique and significant. The tongue, the organ of speech and taste, is often regarded as a lying entity, concealing what is in the mind. The Bible frequently mentions the tongue as an organ of mischief, vanity and deceitfulness. The wrenching of the demon's tongue is therefore symbolic of the Goddess removing what's in essentiality a perpetrator of evil.
Bagalamukhi has Hypnotic Powers.
Bagala may be a Goddess of speech, and intrinsically is said to Tara and considered a sort of her. When sound becomes manifest as light, Tara becomes Bagala. When the brilliant light of speech comes forth, then Tara gains the effulgence of Bagala and cause all things to become still. Bagala is thus the stunning radiance that comes forth from the Divine Word and puts the human or egoistic word to rest.
Bagala gives an influence of speech that leaves others silent and grasping for words. She gives the decisive statement, the irrefutable conclusions, the pronouncement of ultimate truth. Hence she is propitiated for fulfilment in discussions and debates. No one can defeat her because she has the true power of Self-nature.
The weapon that puts an end to all or any conflict and confusion is that the weapon of spiritual knowledge, the weapon of Brahman (Brahmastra). The highest sort of Brahmastra (ब्रह्मास्त्र) is the question "Who am I?" or "What is the Self?"
Bagala turns each thing into its opposite. She turns speech into silence, knowledge into ignorance, power into impotence, defeat into victory. She represents the knowledge whereby each thing must in time becomes its opposite. As the still point between dualities, she allows us to master them. We contact her grace once we see the other hidden in each situation and are not any longer deceived by appearances. To see the failure hidden in success, the death is hidden in life, or the joy hidden in sorrow are ways of contacting her reality. Bagala is that the secret presence of the other wherein each thing is dissolved back to the Unborn and therefore the Uncreate.
Bagala is another of the frightening sorts of the Goddess. Her colour is yellow. She is clad in yellow clothing and is adorned with yellow ornaments and yellow flowers (particularly the champak flower). With her left, she catches hold of her opponent's tongue and together with her right, she strikes him on the top together with her mace. She sits upon a golden throne surrounded by red lotuses. By some accounts, she wears the crescent moon as a jewel on her head.
For more information write to us at anantbodh@gmail.com
शुक्रवार, 29 जनवरी 2021
क्या है "यम नियम" जानिए श्री अनंतबोध चैतन्य से
“योग के अष्टांग में पहले दो स्तंभ यम और नियम की व्याख्या”, जो श्री अनंतबोध चैतन्य द्वारा लिखित है।
यम (आंतरिक अनुशासन):
1. अहिंसा (अहिंसा): अहिंसा दो प्रकार की होती है, प्रमुख और सूक्ष्म। अहिंसा का अर्थ है न मारना, न अत्याचार करना, न शोक करना। ऐसी हरकतें जिनके द्वारा किसी को शारीरिक या मानसिक कष्ट पहुंचाया जाता है, हिंसा कहलाती है, इसलिए उन्हें किसी अहिंसक पर्यवेक्षक के लिए विनाशकारी बनाना, किसी की हत्या करने के अलावा, व्यंग्य बोलना, दिल दुखाना, उन पर अत्याचार करना, हिंसा एकमात्र तरीका है अहिंसा से बचें। इसे पालन-पोषण कहा जाएगा।
2. सत्य: मन, वचन और कर्म से सत्य का पालन और असत्य का त्याग ही सत्य है। वास्तव में, सच्ची सोच, कथन और क्रिया में सत्य का संस्कार आवश्यक है। उस वस्तु का ज्ञान उस रूप में धारण करना सही है, जिसमें किसी वस्तु का पता चलता है या जैसा कि वह कारण या अनुमान से जाना जाता है या अधिकारियों को ज्ञात होता है और उसी रूप में दूसरों को बताता है। दूसरों के लिए, लाभ ही परम और सच्चा ज्ञानवर्धक ज्ञान है। यहां, न केवल झूठे शब्दों का परित्याग स्वीकार किया जाता है, बल्कि अप्रिय शब्दों से बचा जाता है। एक महान शक्ति एक ऐसे व्यक्ति के उच्चारण में आती है जो कभी झूठ नहीं बोलता, जो कुछ भी कहता है वह सच हो जाता है।
3. अस्तेय: अस्तेय का शाब्दिक अर्थ है चोरी न करना। दूसरे की वस्तु प्राप्त करने की इच्छा मन द्वारा चोरी है। मन से भी शरीर या वाणी से चोरी न करें। सीधे शब्दों में कहें, यह जाता है - दूसरे का स्वामित्व अपहरण अचल है और इसकी अनुपस्थिति अजेय है।
4. ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य का अर्थ है मानसिक और शारीरिक चरित्र का रखरखाव। इसका मतलब कामुक प्रलोभन से उपजना है, न कि अपने मन को पकड़ने की कामुक इच्छा की विधा को अनुमति देना। ब्रह्मचर्य की साधना के माध्यम से, आपको शक्ति, वीर्य लाभ के भंडारण के रूप में जाना जाता है। मन, कर्म और शब्दों में ब्रह्मचर्य के रूप में स्थापित होने का परिणाम यह है कि आप ध्यान में बहुत कम प्रयास करते हैं और धारणा तेज होती है। यदि भगवान को याद करने के लिए आपका आचरण कर्तव्य और भगवान शिव और आपके लामाओं (आंतरिक मामलों) को जानने के लिए आपका कर्तव्य सुरक्षित है:
5. अपरिग्रह: अपरिग्रह का अर्थ है जमाखोरी का अभाव। जितनी अधिक चीजें आप जमा करेंगे, उतना ही आप उनकी सुरक्षा और देखभाल के लिए चिंतित और पूर्वाग्रही रहेंगे। हमें सभी बेकार वस्तुओं को कबाड़ करना चाहिए। इन वस्तुओं को जरूरतमंद लोगों को वितरित करने से पहले उन्हें और अधिक बेकार हो जाने पर वितरित करें। होर्डिंग की अनुपस्थिति से चिह्नित राज्य में स्थापित होने पर आपको जो फल प्राप्त होता है वह यह है कि आप अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को जानने में सक्षम हो जाते हैं। यह वह शक्ति है जो इसका अनुसरण करती है जो जमाखोरी नहीं करती है।
नियम (बाहरी अनुशासन)
1 : शौच (पवित्रता), शौच का अर्थ है स्वच्छता, पवित्रता का सार; शरीर, मन और जीभ की पवित्रता। ईश्वर की चेतना के लिए शरीर को स्वच्छ रखना आवश्यक है। मन को सभी विकट और अशुद्ध विचारों को शुद्ध और शुद्ध करना चाहिए। भाषण की पवित्रता से मेरा मतलब है कि आपके द्वारा बोले गए शब्द कठोर या आहत नहीं होने चाहिए। आपको हमेशा सच बताना चाहिए। अपने शब्दों और कार्यों के साथ अच्छे और विनम्र बनें। फल जो शरीर, मन और कर्म की शुद्धता (थैली) को बनाए रखने से प्राप्त होता है, वह यह है कि आपके शरीर और बाहरी सुंदरता के लिए आपकी पसंद कम हो जाएगी। यह बदले में आपको ईश्वर प्राप्ति की ओर प्रेरित करेगा।
2 संतोष: संतोष का अर्थ है वास्तविक संतुष्टि। आपको अपनी हर चीज से संतुष्ट होना चाहिए। प्रभु से उपहार के रूप में आपके पास जो कुछ होना चाहिए वह आपको लेना चाहिए। स्वामी जानते हैं कि क्या देना है, कितना देना है और कैसे देना है।
3 तप: इसका अर्थ है अपनी क्षमता और परिस्थितियों के अनुसार अपना कर्तव्य निभाना, भले ही आप कठिनाइयों का सामना करें। यह मेरी सलाह है कि आप खुद को अतिरिक्त भोजन से भरा हुआ न खाएं। आपको अपना पेट थोड़ा खाली छोड़ देना चाहिए। इससे आपका शरीर बना रहेगा और आपका दिमाग सतर्क और सतर्क रहेगा। यह दुनिया धूल को अपने पैरों के नीचे कुचल देती है, लेकिन सत्य के साधक को भी धूल से विनम्र होना चाहिए। सहनशील बनें। किसी ऐसे व्यक्ति को माफ़ कर देना जो आपका कुछ बुरा करे। आप बहुत शांति महसूस करेंगे और इस प्रकार अधिक प्रशंसा अर्जित करेंगे, न कि उस पर चिल्लाकर या उसे अपने ही सिक्के में वापस भुगतान करके। यह आत्म-नियंत्रण वास्तविक तपस्या और धैर्य और लंबे समय तक पीड़ा का सार है। इसके बिना आप ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते। वह फल जो स्वयं ग का अभ्यास करने से आता है नियंत्रण और सहिष्णुता यह है कि इसके माध्यम से, आपके शरीर और अंगों में मौजूद अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं और आप ताकत से भर जाते हैं।
4 स्वाध्याय: आपको भगवद गीता जैसे शास्त्रों के अध्ययन और चिंतन के लिए अपना समय समर्पित करना चाहिए। आपको खुद को समझकर खुद को जानने की कोशिश करनी चाहिए। आत्मनिरीक्षण करें और अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयास करें। आपको हर तरह की गॉसिप को रोकना होगा। किसी से बीमार न बोलें। धर्मग्रंथों के निरंतर अध्ययन के माध्यम से आत्म-ज्ञान के निरंतर प्रयास से मिलने वाला फल यह है कि आप जिस भगवान को चाहते हैं (भगवान) आपको चमक देगा। इसे अपने भौतिक रूप में प्रकट होने और स्वयं को प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है। यहां तक कि जो लोग भगवान शिव को अपने सपनों में देखते हैं वे अत्यधिक भाग्यशाली और धन्य आत्माएं हैं।
5 ईश्वर प्रणिधान: यह अंतिम और सर्वोच्च निमय है। इसका अर्थ है भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति। यदि आप ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और उसके प्रति समर्पित हैं, तो आपके लिए उसे अनदेखा करना संभव नहीं है। वह खुद को आपके सामने प्रकट करेगा और अपनी शानदार अठारह भुजाओं से आपको शुद्ध करेगा जो आपको ईश्वर चेतना के दायरे में प्रवेश करने में मदद करेगा। भगवान शिव की भक्ति से, अनायास ही समाधि मिल जाती है। भगवान के प्रति समर्पण पूर्ण होना चाहिए जहां शरीर और मन दोनों को भगवान की इच्छा के सामने समर्पण करना होगा।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट https://anantbodhyoga.com/ को विजिट करे।
मंगलवार, 29 दिसंबर 2020
"The Importance of the Ramayana in Human Civilization" : Shri Anantbodh Chaitanya
This speech delivered by Swami Anantboth Chaitanya Jakarta Indonesia
I feel proud and glorified to talk about Ramayana, the oldest epic in the world history of literature. According to the Indian system of counting, time is divided into four ages - the Satyuga, Tretayauga, Dwapara Yuga and Kali Yuga. Kali Yuga consists of 432 000 years, Dwapara 864 000 years, Treta Yuga 1.296 million years and Satyuga has 1.728 million. The calculation time of the Ramayana is minimum 870 000 years (5250 to the present Kali Yuga Dwapara bygone era year 864 000 years) is proven. Some scholars interpret Ramayana was written 8000 BC, which means it, is baseless. Other scholars believe even older.
The great kind-hearted saint vividly described all aspects of human civilizations. This knowledge is bound to be enriched by its philosophical, intellectual values. Adi Kavi (the first poet laureate) Valmiki wrote Ramayana not only to sing the melodious glory and story of Sri Rama, the Prince of Ayodhya but to present to the posterity a practical philosophy of life, a vision of Truth, by telling how to lead a pious life, within the prevailing conditions of one’s existential conditions. It has a pragmatic message for a busy man how to go about his daily life so that he would not only acquire his needs here but also get what he deserves hereafter.
The essence of an individual is manifested through his action. The character exhibits itself in action – mental, verbal and physical. Therefore, the Dharma of an individual operates through every action of an individual. It is that basis from which springs every deed of a person. Hence, the word Dharma is a very comprehensive one. It cannot be delineated in one word or in a few sentences. It is neither religion nor philosophy, though they stem from it. It is the very foundation for both of them and for many more things of life. It encompasses the duties, responsibilities, rights, religious observances, social obligations, secular laws, conventions, nay, the very fabric of one’s own life in such a way that one cannot live without it. Everyone acts one’s own Dharma through and through.
A society or a community is called decent or civilized on its outer aspect such as its outer behaviour. Our civilized manner is displayed by lifestyle, eating habits, physical development, family behaviour etc. . . Whereas culture determines our internal thinking, knowledge, science etc. Simply speaking, our culture dictates our behaviour. Ramayana was a deciding factor to develop a human civilization and will continue to be the deciding factor of human morality and ethical life.
It has been said about Ramayana that यावत् स्थास्यन्ति गिरयः स
Social view during Ramayana era:
Now let us discuss a few aspects from Ramayana to understand its implications:
सर्वे वेदविदः शूराःसर्वे लोकहि
Every citizen of the Ayodhya, in society, lead a harmonious life without any sort of discrimination, hatred or ill will among themselves.
Ramayana visualizes us of such a society where under a pious judicious king everyone is happy on all aspects and had no grievance whatsoever.
The so-called development we are hearing about nowadays is nothing but approaching destruction. So much pollution is being created in the name of development that question started arises about the future of our mother earth. During Ramayana era cow was being referred to as Gou-Mata and was the basis of all sorts of well-being.
In Vedas also said “धेनुः सदनं रयीणाम्” i.e. Gou-Mata is the source of all sorts of wealth.
By preserving and taking proper care to the Goumata we can have a healthy and wealthy life. We should discourage pollution creating fuels and rather would search for non-polluting fuel as we heard about Pushpak –Yanam in Ramayana.
We find a description in Ramayana about a very progressive happy and wealthy kingdom where everyone is happy, no treason, robbery, theft took place. All these were due to their high culture and values they used to follow. On the contrary, due to the degradation of our values, we are suffering from all possible vices.
Culture:
For a developed man vis-à-vis a developed society as well as a developed world we have to follow the sixteen important Sanskaras right from birth to death. Sanskar (culture) is nothing but some to do’s and some not to do’s which can transform us to acquire a noble life of high values and ethics.
The following is from the Valmiki Ramayana, Aranya Kanda, 9-30, 31.
"Wealth comes out of Dharma. Happiness comes out of Dharma. Everything is obtainable from Dharma. Dharma is the essence of this universe. The adept attain Dharma by disciplining themselves by the conditions of Dharma, with great effort; one cannot get happiness from happiness."
The Ramayana follows the tradition of civilization had five Yagna(sacrifice), Bramha Yagna in Vedic Civilization, Deva Yajna (altar), Pitri Yagya and the oblation, Atithi or guest Yagya (sacrifice) and Bali vaisya Yagya is known by the name of five Mahayagya. These yajnas are the uniting factor to tie the whole universe together and cause of all-out progress and prosperity.
Guest sacrifice: -
In the Ramayana, Atithi (guest) has been given the highest regards. Guest is like deity equal to God. When Ram, Laxmana and Sita arrived in the forest monks also gave him due respect.
In addition to humanity, Atithi Yagya practised only in the self-help philosophy is to provide our identification with the all-pervasive power installs.
Father's sacrifice -
Ramayana teaches respect parents as a god. Rama obeyed Dashratha the Father and mother Kaikeyi’s will and left the state and went to exile. On the contrary nowadays for financial gain children do not hesitate to kill parents.
Ideal Family –
Today’s society of indulgence has caused families to disintegrate. We are able to observe the effect in the Western world. Ramayana demonstrates the highest level of family values, with which we are familiar. Lord Ram went into exile as he obeyed his father. Sita gave up the luxury of a palace to follow her husband. And Lakshmana abandoned the comfort of his family to serve his big brother and sister-in-law. When Ravan abducted Sita, Ram and Lakshmana found some ornaments in the forest that belonged to Sita. Lakshmana stated that he only recognized Sita’s toe ring as he had never seen anything but her feet. Nobody can destroy a family that has a brother like Lakshmana. On the other hand, brother Bharat always considered himself incomplete without his brothers even when he was crowned. Sumitra is an ideal mother. She gave Bharat all the love as her own son despite Kaikeyi’s ill-treatment of her own son. Hanumana is an ideal devotee, who is ever-present to serve the needs of Ram.
शक्तिबाण से मूर्छित लक्ष्मण को उनकी सेवा के कारण ही प्राणदान
Status of Women -
There is much to be learned from the characters of Kausalya, Sita, and Anusuya described in the Ramayana. Women of today are able to dress well and present themselves as civilized. However, the lack of integrity, honour and sacrifice results in happiness and peace of families. Even an old bird Jatayu could not tolerate the sight of a woman being mistreated and fought with his life to protect her. This indicates that we should respect and protect women.
Environmental ----
Today's blind development of our modern tradition is engaged in destroying our environment. In the Ramayana, people worshipped river, lake, forest, trees, air and holistic nature. Relationship with animals is like a relationship with friends. On the demise of a deer, Maharishi Valmiki produced the entire Ramayana at the bank of river Ganges. We should respect and preserve nature.
Vastu and Science ---
Ramayan depicts a culture of sacrifice as well as different aspects of human civilization. The city of Ayodhya shows excellent city planning and construction, roads, unique palaces, gem towers, safe and beautiful homes, arms, and engine-free flower aircraft. Vishwakarma built Lanka, Alka Puri, and Ram Setu. All of these architectures serve as examples for today’s society.
Ramayana literary importance -----
Ramayana is considered to be the original source of Indian culture. This is a subject on which people have been writing books for hundreds of years. It is written in several Indian as well as other languages of the world. By merely pursuing Ramayana, love, devotion, and reverence arises. Conscience is purified. So this is a unique and long-lived treatise. In literary terms, it is a precious creation of world literature. Several serials and films have also been constructed based on the legendary story of Ramayana. Ramayana rituals in contemporary society and governance method is described. Eternal values of Ramayana in development is as important today as it was in ancient times. Ramayana creation of human life and overall development of eternal life values - the purpose is to inspire.
Ramayana The World - prevalence -----
Ramayana has been universal since the 19th Century. Numerous poor Indians came from Fiji, Mauritius, Trinidad, Suriname, Jamaica travelled to India in search of jobs. They took Tulsidas Ramayana with them that helped them through a crisis.
In the second phase during the 20th Century, especially before the partition of India in 1947, Ramayana had spread to many countries in the East and West, in any of the forms – Ramcharitmanasa, Valmiki Ramayana, or Kamban Ramayana.
The third and most powerful phase brought Ramayan to East and Southeastern parts of the world where Ramayan is incorporated as part of the culture. The poets of these countries wrote about Rayamana and filled in gaps. Local names of cities and people were used to depict characters, to the point that it seems that Ramayana took place in their country. However, the essence of Ramayan is still based on Valmiki Ramayana.
In Thailand, Lord Ram is intertwined in their culture as well as religious practices. Ram and Buddha co-exist and are integrated. The biggest example is the Royal Palace in Thailand, in which the Emerald Buddha resides. The is the most famous landmark and is visited by people from all over the world. The story of Ramayana is painted along the walls of this temple. They have their own version of Ramayana, called “Ramakien” which was written by King Rama the First. The current King is King Rama Nine.
You can also view the grand presence of Lord Ram in the national museum. On entrance, you can see a statue of Ram with his bow and arrow. The most surprising thing is the cities name Ayodhya and Lopburi in Thailand. Thais believe that Ramayan took place in their country.
Angkor Wat of Cambodia is the biggest symbol of Indian Culture the presence of Lord Ram in SouthEast Asia. You will find statues of Shiva, Vishnu, Ram and other Indian Gods. This was constructed in the 11th Century by Suryavarman Dwitiya.. The different parts are Angkor Wat, Angkor Tham, Bayon. The walls of Angkor Wat depict different episodes of Ramayan, like Hanuman’s arrival in Ashok Vatika, the war between Ram and Ravan in Lanka, the war between Bali and Sugreev. Ramayan is called Ramker, which is similar to Thai Ramayan. Similarly, in other Buddhist countries like Laos and Burma, the story of Ram is prevalent and is seen in their stage plays and dances.
And here, in Indonesia – regardless one is a Hindu from Bali or Muslim from Java Sumatra, everybody thinks of Ram as a national hero and considers Ram as an important historical and cultural heritage. The temple called Prambanan is 15 miles from Yogyakarta is the proof of this, whereby the entire story of Ram is engraved on stone walls.
In Bali, the popularity of Ram Lila or dance is increasing every day. The famous Ramayana epic is called Kakvin. In Malaysia, leather puppets by night are shown in the context of Ramayana. Their version of Ramayan is called Hikayat Seri Rama, in which they believe Ram to be an incarnation of Lord Vishnu. Islamic influence is apparent. In the sixth Century, Sinhalese poet named Naresh Kumar composed poetry based on the kidnapping of Janki. Later, it was translated by John D Silva made adaptations to the Ramayan.
Because Sanskrit achieved its place in Western universities, Valmiki Ramayan has been introduced to the world centuries ago. However, Ramcharitmanas (by Tulsi Das Ji) only got introduced to the Western world in the last century. It has been translated into many of the world’s important languages and is still continuing to be so. In 1839, French scholar “Gasan Tdasi” translated Sunder Kand of Ramcharitmanas. Mr Wadi Vilan of Paris University took it forward and translated the rest.
The Ramayana of Tulsidas was translated in English by Rev. A.G. Atkins, which is very popular. Devdas Gandhi of Times of India got it published. Similar translations have been made in Germany and The Soviet Union. Alexei Warinikov established a powerful cultural bond between Russia and India by translating the Manas. The Manas is placed on his memorial in his hometown village Kaporov, which is in the north of St. Peters berg. In China, both Valmiki and Ramcharit Manas have been translated. Also in Dutch, Spanish, Japanese and other languages.
The flow moved forward in the Western world through research dissertations. Dr Tisotori of Italy, who studied Hindi literature, was awarded a doctorate from Florence University in 1910, based on his thesis titled “Valmiki and Ramcharitmanas – a comparative study”. Another thesis was written in London University in 1918 by J.N. Carpenter. The title was “Theology of Tulsidas.”
It is a matter of satisfaction that Ramayana has received global recognition. It has an important place in cultural, spiritual as well as part of the International Ramayana Conference. There have been more than 17 conventions in 12 countries, which started in India and have spread worldwide.
Ramayana democracy, the ideal format ----
In the past few centuries, the imbalance in democracy has been of rising concern. In the age of Ramayana, life was more about being a good social person, now the power is more important. Despite being a King, Lord Ram followed rules of democracy, public expression, being cognizant, as well as fusing with other people. If we were to follow the same rules today, we could have a more prosperous and complete thriving democracy.
Epilogue -----
There is no doubt that at least two-thirds of the world is influenced by Ramayana in different forms. From Egypt and Rome to Vietnam Cambodia and here in Indonesia, you can see the pervasive influence of the Ramayana. This indicates that Ramayana is a pillar for the way of life in our civilization. Just the way all the characters in the Ramayana follow the principles of their roles, we should learn our role and follow it sincerely. This is the only way to have a good life and be free from all the problems.
मंगलवार, 22 सितंबर 2015
Navaratri : A Journey of Transformation.
Navaratri: A Journey of Transformation.
Navaratri is a nine days long festival in which the Goddess Durga is worshipped in nine different forms It symbolizes the victory of higher divine forces over the lower negative qualities. Journey through the process of transformation in these 9 days and nights with her various Shakti forms: Durga (transformative aspect), Lakshmi (prosperity in material and spiritual life), Saraswati (knowledge and wisdom).
Nature is in transition at
this time of the year and the body and mind also undergo a metamorphosis.
Sincere sadhana and positive restraint through body, mind and speech during
this time results in vital health and spiritual strength.
Join Shri Anantbodh Chaitanya as he officiates over Navaratri, considered to be one of the most auspicious
times for spiritual sadhana.
Navaratri Story.
The story associated with Navratri can be found in
various Hindu religious texts like Markandeya Purana, Vamana Purana, Varaha
Purana, Shiva Purana, Skanda Purana, Devi Bhagavatam and Kalika Purana. The story
of Navratra is the symbolic message of the fact that however glorious and
powerful the evil become, in the end, it is the goodness that wins over all of
the evil. The story is associated with Maa Durga and Mahisasura, the buffalo
headed demon.
The story begins with the life of two sons of Danu
called Rambha and Karambha who performed austerities to gain extreme power
and authority. When their prayers became deeper and austerities became
exceptional, the King of the heaven God Indra got perturbed. Out of fear, he
killed Karambha. Rambha, who came to know about his brother’s death, became
more stubborn to win over the Gods. He increased the intensity of his
austerities and finally got several boons from gods like great brilliance,
beauty, invincibility in war. He also asked a special wish of not being killed
by either humans or Gods or Asuras.
He then considered himself immortal and started
freely roaming in the garden of Yaksha where he saw a female-buffalo and fell
in love with her. To express his love, Rambha disguised in the form of a
male-buffalo and copulated with the female buffalo. However, soon after that a
real male buffalo discovered Rambha mating with the she-buffalo and killed him.
It was due to Rambha’s inflated ego that killed him, out of which he has not
asked his death to be spared from the wrath of animals. As the pyre of Rambha
was organized, the female-buffalo, who was copulated with him jumped into the
funeral pyre of Rambha to prove her love. She was pregnant at that time. Thus, a demon
came out with the head of a buffalo and human body and he was named
Mahisasura (the buffalo headed demon).
Mahishasura was extremely powerful. He defeated the
gods and the demons and acquired power over the entire world. He even won over heaven and threw Devtas outside it. He captured the throne of Indra and
declared himself to be the lord of the gods. The gods led by Brahma
approached Vishnu and Shiva and evaluated them of the situation. In order to
save the Gods, the three supreme deities emerged a light of anger, which
combined to take the shape of a terrible form and this was Durga. All the
gods then granted this Goddess of power with all the supreme weapons they had.
This is why; Durga is called the brilliance of all the Gods.
When the goddess was seen by Mahishasura, he was
mesmerized by her beauty. He then fell in love with her and proposed to marry
her. The goddess said she will marry him if he defeated her in the battle.
Then began a scary and terrible battle between both of them which continued for
nine days. Finally, on the last day, Durga took the form of Chandika and stood
over the chest of Mahishasura and smashed him down with her foot. She then
pierced his neck with her spear and cut off his head with her sword. It is
the day when Vijayadashmi is celebrated.