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शनिवार, 9 नवंबर 2024

ज्योतिष और वास्तुशास्त्र में गाय का महत्व


1) ज्योतिष में गोधूलि समय को विवाह के लिए शुभ मुहूर्त माना गया है। 

2) अगर यात्रा के दौरान गाय सामने आ जाए या अपने बछड़े को दूध पिलाती दिख जाए, तो यह यात्रा की सफलता का संकेत है। 

3) जिस घर में गाय होती है, वहां स्वतः ही वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं। 

4) जन्मकुंडली में यदि शुक्र नीच राशि कन्या में हो, शुक्र की दशा चल रही हो, या वह अशुभ भावों (6, 8, 12) में स्थित हो, तो रोज़ सुबह की पहली रोटी सफेद गाय को खिलाने से शुक्र दोष समाप्त होता है।

5) पितृदोष से मुक्ति— सूर्य, चंद्र, मंगल, या शुक्र का राहु के साथ युति होना पितृदोष उत्पन्न करता है। मान्यता है कि सूर्य का संबंध पिता से और मंगल का संबंध रक्त से है, इसलिए सूर्य अगर शनि, राहु या केतु के साथ हो या उनकी दृष्टि में हो और मंगल राहु या केतु से संयुक्त हो, तो पितृदोष बनता है। इस दोष को समाप्त करने के लिए गाय को रोज़ाना रोटी, गुड़, चारा आदि खिलाना चाहिए।

6) यदि किसी की कुंडली में सूर्य नीच राशि तुला में हो या केतु से अशुभ प्रभाव आ रहे हों, तो गाय की पूजा से इस दोष में राहत मिल सकती है।

7) यात्रा में अगर सामने से गोमाता आ रही हो, तो उसे दाहिने से जाने देना चाहिए; यह यात्रा की सफलता का प्रतीक है।

8) बुरे सपने दिखने पर व्यक्ति को गाय का स्मरण करना चाहिए, जिससे बुरे सपने आना बंद हो सकते हैं।

9) गाय के घी को आयु से जोड़ा गया है। हस्तरेखा में आयु रेखा टूटी हुई हो, तो गाय का घी उपयोग में लाना और उसकी पूजा करना लाभकारी होता है।

10) देसी गाय के ककुद (कूबड़) में बृहस्पति का निवास माना गया है। कुंडली में बृहस्पति के मकर राशि में नीच स्थिति में होने पर, इस ककुद के दर्शन और शिवलिंग रूपी ककुद के पास गुड़ व चने की दाल अर्पित करने से लाभ मिलता है। 

11) गाय के नेत्रों में सूर्य और चंद्र का वास होता है। कुंडली में सूर्य-चंद्र कमजोर हों, तो गाय के नेत्रों के दर्शन करना लाभकारी होता है।

वास्तु दोष निवारण में गाय का योगदान

जिस स्थान पर भवन निर्माण हो, वहां बछड़े वाली गाय को बांधने से संभावित वास्तु दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं, और निर्माण कार्य में कोई बाधा नहीं आती। भारतीय समाज में गाय के प्रति गहरी आस्था है और गोसेवा को एक महत्वपूर्ण कर्तव्य माना गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि जहाँ गाय निर्भयता से सांस लेती है, वह स्थान पापमुक्त हो जाता है। 

पद्मपुराण और कूर्मपुराण में बताया गया है कि गाय को कभी लांघकर नहीं जाना चाहिए। किसी महत्वपूर्ण साक्षात्कार या अधिकारी से मिलने से पहले गाय की रंभाने की आवाज सुनाई देना शुभ होता है। गाय की सेवा संतान प्राप्ति के लिए भी लाभकारी है।

शिवपुराण और स्कंदपुराण में कहा गया है कि गोसेवा और गोदान करने से मृत्यु के बाद यम का भय नहीं रहता। गाय के पैरों की धूल को पाप विनाशक माना गया है। गोधूलि बेला को विवाह आदि शुभ कार्यों के लिए अत्यंत श्रेष्ठ मुहूर्त माना गया है। जब गायें चरने के बाद वापस लौटती हैं, उस समय उठने वाली धूल पाप-तापों को दूर करने वाली होती है। पंचगव्य और पंचामृत की महिमा सभी जानते हैं। इस प्रकार गाय हमारे जीवन में सभी प्रकार से कल्याणकारी है।