सोमवार, 15 मार्च 2021

Maha Kumbh Mela 2021 Haridwar


Haridwar Maha Kumbh Mela 2021

Kumbh Mela is the most sacred gathering of Hindus attracting millions of pilgrims from all over the world. It is believed that just one bath in Ganga during Kumbh Mela can cleanse your soul and make you free from all your sins. Kumbh Mela can be defined as the largest gathering of people for a religious purpose in the world.

The Location of Kumbh Mela varies from time to time. The sacred story behind Kumb Mela says when the gods and demons were fighting in the sky for the possession of amrita, the drops of amrita fell on four places where Kumbh Mela is now held. One of which is Haridwar. The Kumbh Mela and the Ardh Kumbh Mela are held every twelfth and sixth year at the banks of Ganga in Haridwar.
According to the astrologers, the Kumb Mela is held in Haridwar when Jupiter enters Aquarius and the Sun enters Aries. It is believed that this planetary position purifies the waters of Ganga at a certain spot known as Har ki Pauri located on the banks of River Ganges in Haridwar where the water becomes nectar during these days.

According to a popular legend: once when the observer / Preserver of the world "the God Vishnu" ordered the divinity and the demons to do the mixing of the sea together so they put a hill in the centre of the sea called "Mandrachal Parvat "and used the 7-mouthed snake as the rope. After the gods and demons did the mixing of the sea in which 14 elements emerged.

  • White elephant (Airawat)
  • the Tree of life (kalpavraksha)
  • the shell
  • the diamond (khostubh mani)
  • the horse
  • the moon
  • the bow
  • the first cow
  • Laxmi (goddess of money)
  • the god of the Ayurveda
  • the poison (Halahala)
  • the nectar .. etc.

When the nectar came out everyone wanted to drink it so the battle between them began, the gods and demons fought for 12 days to get it. To solve this problem Vishnu turned into a beautiful woman. When the demons saw her, they immediately fell in love with her because they didn't know she was the God Vishnu. He only made the Gods drink the nectar that the demons and thus the Gods became immortal.

When Vishnu was offering the nectar to the gods some drops of the nectar fell to the ground in 4 different places in India and for this reason the Kumbh Mela is celebrated in 4 places. Haridwar, Prayagraj (Prayag), Nasik, and Ujjain where the nectar droplets fell.

Another legend tells that Gods and demons competed for the most precious gift, the Sacred Urn, Kumbh, which contained Amritha, the nectar of immortality. The God Vishnu turned into a crow and managed to steal the urn and with it he fled, chased by demons. During his escape, he stopped 4 times on earth to rest. Each time a few drops of Nectar came out of the pot, wetting the ground. From these drops, the 4 sacred cities were born. The escape lasted 12 days in all, but since a day of the gods corresponds to a year of men, and so the Maha Kumbh Mela is celebrated every 12 years.

Kumbha Mela dates in 2021 at Haridwar.

Actually, Kumbh Mela starts from the Establishment of Dharma Dhwaja in Akhadas. This year due to Covid 19 Situation Govt. of Uttrakhand decide to make shorten this event. 

First Shahi Snan will start from Mahashivaratri 11th of March 2021. Somvati Amavasya will be also Shahi Snan on 12th April 2021 then Baisakhi 14th April, Ram Navami 21st April, and Chaitra Purnima on 27th April 2021 will be the last Shahi Snan. 

There was covid 19 negative report was mandatory but now anyone come to Kumbhmela without covid 19 negative reports. After 11th March 2021 Shahi Snan it is not mandatory now. 

Tourists from every corner of the world flock to Haridwar during the Kumbh Mela season to watch these Naga Baba meditate and perform other rituals. The identification features of this sect of sadhus include being naked, long knotty hair and a body smeared with ashes.

Even when the mercury dips down to a single digit, they continue to meditate and observe different rituals without being hindered in the least. These Naga Sadhus belong to different 'akharas, meaning camps. A number of akharas participate in the Haridwar Kumbh Mela, each having its own group of Naga Babas.

During the Kumbh Mela in Haridwar, the Naga Babas can be seen performing different types of Yogasanas. To watch them busy meditating, travellers need to remain close to the Ganga ghats in Haridwar. You will be surprised to know that these Naga Sadhus can thrive merely on herbs. Interacting with the Naga Babas is seen as a rare opportunity to know things that are so out of the world yet belong to us. These sadhus make a pilgrimage to the Kumbh Mela to perform various types of Yogic asanas, Sashtang Dandthvad being the most prominent one.

You will be deemed fortunate if you catch sight of these Naga Sadhus in some other Yogic postures like hanging from the branch of a tree.

While you visit the Akhada (or camp) of Naga Babas, you will see them indulge in smoking 'chilum', a pot of clay to hold bhang, the narcotic marijuana.

Pilgrims also flock to the Akhadas of Naga Babas in large number. When you plan a tour to the Kumbh Mela, do try to find an opportunity to get to one of the Akhadas and interact with the Naga Babas. But, keep your cameras poised!

List of Akhadas.

There are 14 Akhadas. Shaiva Akhadas:-1 Shri Shambhu Panchayati Atal Akhada,2 Shri Pancha Dashnam Aavahan Akhada,3  Taponidhi Shri Panchayati Anand Akhada, 4 Shri Pancha Dashnam Agni Akhada,5 Shri Pancha Dashnam Juna ( Bhairava)6 Shri Panchayati Maha Nirvani, 7 Shri Panchayati Niranjani Akhada.

Bairagi (Vaishnava) Akhadas:-  8 Shri Nirmohi Ani Akhara, 9  Shri Digambar Ani Akhara, 10 Shri Nirvani Ani Akhara.

There are three more Akhadas:- 11 Shri Panchayati Bada Udaseen Akhada, 12  Shri Panchayati Naya Udaseen Akhada, 13 Shri Nirmal Panchayati Akhada. 14th Akhada is Kinnar Akhada what was recently added. 







बुधवार, 10 मार्च 2021

क्यों मनाते है महाशिवरात्रि ? एवं महाशिवरात्रि कथा


'महाशिवरात्रि' हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस रात  भगवान शिव सृजन, संरक्षण और विनाश का नृत्य करते हैं।। यह पूरे भारत  ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों में मनाया जाता है, भगवान शिव के भक्त इस दिन  'उपवास' करते हैं और रात भर जागरण करते हैं! उस दिन मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। इस वर्ष 2021 महाशिवरात्रि 11 मार्च को मनाई जाएगी।  हरिद्वार में महाकुम्भ का स्नान भी इसी दिन से शुरू होगा। 

'महाशिवरात्रि' के उत्सव के पीछे कुछ कारण हैं। 

कुछ लोग कहते हैं कि महा शिवरात्रि वह दिन है जब भगवान शिव लिंगम के रूप में आए थे (लिंगोदभव”)  
शिव पुराण में एक पौराणिक कथा के अनुसार, हिंदू भगवानों और भगवान विष्णु की तीन त्रय - आपस में श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे। इस युद्ध की तीव्रता से भयभीत, अन्य देवताओं ने भगवान शिव से हस्तक्षेप करने और उन्हें इस झड़प की निरर्थकता का एहसास करने का अनुरोध किया। ब्रह्मा और विष्णु के बीच शिव ने अग्नि के एक विशाल स्तंभ का रूप धारण किया। बाद के देवताओं ने अग्नि स्तंभ का शिखर खोजने का फैसला किया। भगवान ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और ऊपर की ओर उड़ गए, जबकि भगवान विष्णु ने वराह (हिंदू देवता विष्णु के अवतार के रूप में वर) का रूप धारण किया और पृथ्वी के अंदर चले गए। जैसा कि प्रकाश असीम है, न तो ब्रह्मा और न ही विष्णु अपनी थकाऊ खोज के बावजूद अंत तक नहीं पहुंच सके। अपनी यात्रा के दौरान, भगवान ब्रह्मा एक केतकी के फूल से धीरे-धीरे नीचे उतरते हुए आए। यह पूछे जाने पर कि वह कहाँ से आई है, फूल ने जवाब दिया कि उसे अग्नि स्तंभ के शीर्ष पर चढ़ाया गया था। भगवान ब्रह्मा ने अपनी खोज को समाप्त करने और फूल को गवाह के रूप में लेने का फैसला किया। इसने शिव को प्रभावित किया, जिन्होंने तब ब्रह्मा को झूठ बोलने के लिए दंडित किया और उन्हें शाप दिया कि कोई भी उनसे कभी प्रार्थना नहीं करेगा। आज तक, केवल एक ही मंदिर है, जो राजस्थान के अजमेर में पुष्कर मंदिर को समर्पित है। जैसा कि केतकी के फूल ने झूठे तरीके से गवाही दी थी, वह भी किसी भी पूजा के लिए प्रसाद के रूप में इस्तेमाल होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। चूंकि भगवान शिव ने देवताओं को शांत करने में मदद की, इसलिए उनके सम्मान में महा शिवरात्रि मनाई जाती है।
जबकि कुछ लोग कहते हैं, यह वह दिन है जब भगवान शिव ने पूरी रात शिव तांडव (नृत्य) किया था।

दूसरों का मानना है कि इस दिन जब भगवान शिव ने दुनिया के लिए " हलाहल " (विष) पी लिया और "नीलकंठ" बन गए।

कुछ अन्य लोग भी हैं जो मानते हैं कि यही वह दिन है जब भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था।
 महाशिवरात्रि प्रमुख हिंदू मंदिरों कोणार्क, खजुराहो, पट्टाडकल, मोढेरा और चिदंबरम में वार्षिक नृत्य समारोहों द्वारा चिह्नित है। नटराज - नृत्यों के सर्वोच्च देवता - भगवान शिव का दूसरा रूप भी है। भगवान के सम्मान के साथ शास्त्रीय नर्तकियों द्वारा भगवान शिव के नृत्य रूपों, तांडव और लस्य को विभिन्न रूपों में किया जाता है।
हम में से कई लोग उपवास, जागरण, अभिषेक, और बहुत कुछ अनुष्ठान करते हैं, लेकिन हम में से अधिकांश प्रथाओं के पीछे के सटीक कारणों से अवगत नहीं हैं।
इस रात ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के भीतर की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगती है. यानी प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद कर रही होती है. धार्मिक रूप से बात करें तो प्रकृति उस रात मनुष्य को परमात्मा से जोड़ती है। 
उपवास: आंतरायिक उपवास आपके पाचन तंत्र को आराम देता है, और यह आपके चयापचय को अधिक कुशलता से कैलोरी के माध्यम से जलाने के लिए सक्रिय कर सकता है। यदि आपका पाचन खराब है, तो यह भोजन को पचाने और वसा को जलाने की आपकी क्षमता को प्रभावित कर सकता है। आंतरायिक उपवास आपके पाचन को विनियमित कर सकते हैं और स्वस्थ आंत्र समारोह को बढ़ावा दे सकते हैं, इस प्रकार आपके चयापचय  में सुधार कर सकते हैं।

जागरण: भक्त पूरी रात जागते हैं, भगवान शिव की पूजा शाम से शुरू होती है और पूरी रात चलती है। रात को 4 पहरों  में बांटा गया है। यह माना जाता है कि जो कोई भी शिव का नाम शिवरात्रि के दौरान शुद्ध भक्ति के साथ उपयोग करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। वह शिव के निवास स्थान कैलाश में वास करता है और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।

बेल का पत्ता: भोलेनाथ को बेलपत्र बहुत पसंद है, जिसका जिक्र शिव पुराण में भी है. लेकिन इसके अलावा भी कुछ ऐसे पत्ते हैं, जो भोलेनाथ को बेहद प्रिय हैं. भगवान शिव की पूजा करते समय बेलपत्र के अलावा इन पत्तों को भी अवश्य रखना चाहिए। 

अभिषेक: पिंडी (लिंग) पर केवल ठंडा पानी डाला जाता है और बेलपत्र चढ़ाया जाता है। चूंकि शिव विघटन के देवता हैं, पिंडी (लिंग) को दूध, पंचामृत, सिंदूर (कुमकुम), हल्दी पाउडर और अक्षत (अखंडित चावल के दाने) चढ़ाए जाते हैं। 
शांति और संतान प्राप्ति के लिए गौ दूध से अभिषेक करना चाहिए। शक़्कर मिश्रित दूध सेअभिषेक करनेसे  बुद्धि तीव्र होती है । धन की प्राप्ति के लिए गन्ने के रस और स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए शहद से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। शत्रु शमन के लिए सरसो के तेल से  और मोक्ष प्राप्ति के लिए तीर्थो के जल से अभिषेक करना चाहिए। 
प्रदक्षिणा: शिवलिंग के चारों ओर परिक्रमा बाईं ओर से शुरू होनी चाहिए। 

महाशिवरात्रि की व्रत-कथा

एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’
उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- ‘एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।
अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।’ शिकारी हँसा और बोला, ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’ उत्तर में मृगी ने फिर कहा, ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के
लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।’ मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,’ हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।’ मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।’ उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।

रविवार, 7 मार्च 2021

Maa Dhumavati



Maa Dhumavati is 7th Mahavidya out of ten Mahavidyas. 

Baglamukhi is a part of linguistics, that's why mother Baglamukhi should take permission to meditate and pray that her mother should be done. 

In the absence of knowledge or reading the book from the internet, it has also been seen falling into adversity. Only after doing Baglamukhi Sadhana, you get the ability to do special rituals. So, under special circumstances, the process should be started from the Guru only. Guru knows what is the ability of the disciple. 

Origin of Dhumavati: Devi Bhagavat says that when Sati performed self-immolation at the Yagya of Daksha Prajapati, While getting burnt, Sati came out of her body in the form of smoke and came to be known as Dhumavati. The dhyana mantra of Dhumavati says: 
स्तुति :- विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च मलिनाम्बरा, विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा, काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा, सूर्पहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता, प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा, क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा काल्हास्पदा | 

Dhumavati is ugly, unsteady, and angry. She is tall and wears dirty clothes. Her ears are ugly and rough, she has long teeth, and her breasts hang down. She has a long nose. She has the form of a widow. She rides during a chariot decorated with the symbol of the crow. Her eyes are fearsome, and her hands tremble. In one hand she holds a winnowing basket, and with the opposite hand, she makes the gesture of conferring boons. Her nature is rude. She is usually hungry and thirsty and appears unsatisfied. She likes to make strife, and she or he is usually frightful in appearance. 

Dhumavati - The Grandmother Spirit: Dhumavati is that the eldest among the Goddesses, the Grandmother Spirit. She stands behind the other Goddesses as their ancestral guide. As the Grandmother Spirit, she is the great teacher who bestows the ultimate lessons of birth and death. She is that the knowledge that comes through hard experience, during which our immature and youthful desires and fantasies are put to rest. Dhuma means "smoke." Dhumavati is "one who consists of smoke." Her nature isn't illumination but obscuration. However, to obscure one thing is to reveal another. By obscuring or covering all that is known, Dhumavati reveals the depth of the unknown and the unmanifest. Dhumavati obscures what's evident so as to reveal the hidden and therefore the profound. 

Dhumavati is portrayed as a widow. She is that the feminine principle barren of the masculine principle. She is Shakti without Shiva as pure potential energy without any will to motivate it. Thus she contains within herself all potentials and shows the latent energies that dwell within us. To develop these latent energies we must first recognize them. This requires honouring Dhumavati. 

Dhumavati represents the darkness on the face of the deep, the original chaos and obscurity which underlies creation. She is that the darkness of primordial ignorance, Mulavidya, from which this world of illusion has arisen, and which it's seeking to transcend. Dhumavati represents the facility of ignorance or that aspect of the creative force which causes the obscuration of the underlying light of consciousness. While Maya is that the magic or illusion power of the Lord that creates the one reality appears as many, ignorance may be a sort of darkness that forestalls us from seeing the underlying reality.

Dhumavati is that the elder sort of Kali, Kali as an old woman. She represents time or the life-force dissociated from the method of manifestation. She is timeless which never really enters into the process of time. 

Dhumavati holds a bowl of fire in one hand and a winnowing basket in the other. The fire symbolizes inevitable cosmic destruction: all things shall pass on. The winnowing basket, used to separate the grain from the chaff, represents Viveka, mental discrimination between the permanent and the fleeting. Even though her stalled cart represents an external life going nowhere, Dhumavati empowers us inwardly to succeed in for the very best, and there's nothing to prevent us once we are resolved. In the end, she points the thanks to liberation. 

Goddess Dhumavati’s Sadhana is completed to urge obviate extreme poverty. She is also worshipped to make the body free from all sorts of diseases. Dhumavati’s worship is taken into account as ideal for bachelors, widows, Sannyasins, and Tantrics, it's advised that folks who are married shouldn't worship Dhumavati.

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

श्रीबगलामुखी कवचम्


श्रीबगलामुखीकवचम्  

    

                   

       ध्यानम्

ॐ मध्येसुधाब्धि मणिमण्डपरत्नवेद्यां सिंहासनोपरि गतां परिपीतवर्णाम् ॥ पीताम्बराभरणमाल्यविभूषिताङ्गीं देवीं भजामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम् ॥ १॥

ॐ  जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं वामेन शत्रून् परिपीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ॥ २॥

अथ श्रीबगलामुखी कवचम् प्रारभ्यते। 

श्रुत्वा च बगलापूजां स्तोत्रं चापि महेश्वर ।
इदानी श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ॥ १ ॥
वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाSशुभविनाशनम् ।
शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दु:खनाशनम् ॥२॥
श्रीभैरव उवाच :
कवचं शृणु वक्ष्यामि भैरवीप्राणवल्लभम् ।
पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ॥३॥
ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषि: ।
अनुष्टप्छन्द: । बगलामुखी देवता । लं बीजम् ।
ऐं कीलकम् पुरुषार्थचष्टयसिद्धये जपे विनियोग: ।
ॐ शिरो मे बगला पातु हृदयैकाक्षरी परा ।
ॐ ह्ली ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी ॥१॥
गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी ।
वैरिजिह्वाधरा पातु कण्ठं मे वगलामुखी ॥२॥
उदरं नाभिदेशं च पातु नित्य परात्परा ।
परात्परतरा पातु मम गुह्यं सुरेश्वरी ॥३॥
हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे ।
विवादे विषमे घोरे संग्रामे रिपुसङ्कटे ॥४॥
पीताम्बरधरा पातु सर्वाङ्गी शिवनर्तकी ।
श्रीविद्या समय पातु मातङ्गी पूरिता शिवा ॥५॥
पातु पुत्रं सुतांश्चैव कलत्रं कालिका मम ।
पातु नित्य भ्रातरं में पितरं शूलिनी सदा ॥६॥
रंध्र हि बगलादेव्या: कवचं मन्मुखोदितम् ।
न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥ ७॥
पाठनाद्धारणादस्य पूजनाद्वाञ्छतं लभेत् ।
इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीम् ॥८॥
पिवन्ति शोणितं तस्य योगिन्य: प्राप्य सादरा: ।
वश्ये चाकर्षणो चैव मारणे मोहने तथा ॥९॥
महाभये विपत्तौ च पठेद्वा पाठयेत्तु य: ।
तस्य सर्वार्थसिद्धि: स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति ॥१०॥

इति श्रीरुद्रयामले बगलामुखी कवचं सम्पूर्णम्।।
यदि आप अंग्रेजी में पढ़ना चाहते है तो निचे लिखे लिंक पर क्लिक करें।https://www.manblunder.com/articlesview/sri-bagala-mukhi-kavacham

सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

WHO IS BAGALAMUKHI ( PITAMBARA)?



Bagalamukhi is the Eighth Mahavidya 

Bhagwati Bagalamukhi (बगलामुखी), Bagala or Maa Pitambara  (माँ पीतांबरा)  is the eighth Mahavidya in the famous series of the 10 Mahavidyas. 

The word "BAGALA" is a distorted form of Valga, meaning that bridles or reins, like horses, are placed in and around the mouths of animals to control them. Mukha means face. BAGALAMUKHI is thus understood as the one who canShe has a golden yellow colour and is therefore also known as Pitambari or Pitambara Maa. Pita is yellow).

Expounding the good power of the Goddess Baglamukhi the text Mantra Maharnnav (मन्त्र महार्णव) states -"The Mantra of the Goddess has the facility of the divine weapon Brahmastra instilled in it and the Goddess simply strikes terror in and paralyses the enemies of her Sadhaks. Repetition of her Mantra is enough to prevent even a tempest."

Bagala (the Goddess who seizes the Tongue): She is identified with the second night of courage and is that the power or Shakti of cruelty. She is described as the Devi with three eyes, wearing yellow clothes and gems, the moon as her diadem, wearing Champaka blossoms, with one hand holding the tongue of an enemy and with the left spiking him, thus do you have to meditate on the paralyser of the three worlds. 

She rules magic for the suppression of an enemy's gossip. These enemies even have an inner meaning, and therefore the peg she puts through the tongue could also be construed as a peg or paralysis of our own prattling talk. She rules deceit which is at the guts of the foremost speech. She can during this sense be considered as a terrible or Bhairavi sort of Matrika Devi, the mother of all speech. 

According to "Todala Tantra", her male consort is Maharudra. Seated on the proper of Bagala is that the Maharudra, with one face, who dissolves the universe. The pulling of the demon's tongue by Bagalamukhi is both unique and significant. The tongue, the organ of speech and taste, is often regarded as a lying entity, concealing what is in the mind. The Bible frequently mentions the tongue as an organ of mischief, vanity and deceitfulness. The wrenching of the demon's tongue is therefore symbolic of the Goddess removing what's in essentiality a perpetrator of evil.

Bagalamukhi has Hypnotic Powers.  

Bagala may be a Goddess of speech, and intrinsically is said to Tara and considered a sort of her. When sound becomes manifest as light, Tara becomes Bagala. When the brilliant light of speech comes forth, then Tara gains the effulgence of Bagala and cause all things to become still. Bagala is thus the stunning radiance that comes forth from the Divine Word and puts the human or egoistic word to rest.

Bagala gives an influence of speech that leaves others silent and grasping for words. She gives the decisive statement, the irrefutable conclusions, the pronouncement of ultimate truth. Hence she is propitiated for fulfilment in discussions and debates. No one can defeat her because she has the true power of Self-nature.

The weapon that puts an end to all or any conflict and confusion is that the weapon of spiritual knowledge, the weapon of Brahman (Brahmastra). The highest sort of Brahmastra (ब्रह्मास्त्र) is the question "Who am I?" or "What is the Self?"

Bagala turns each thing into its opposite. She turns speech into silence, knowledge into ignorance, power into impotence, defeat into victory. She represents the knowledge whereby each thing must in time becomes its opposite. As the still point between dualities, she allows us to master them. We contact her grace once we see the other hidden in each situation and are not any longer deceived by appearances. To see the failure hidden in success, the death is hidden in life, or the joy hidden in sorrow are ways of contacting her reality. Bagala is that the secret presence of the other wherein each thing is dissolved back to the Unborn and therefore the Uncreate.

Bagala is another of the frightening sorts of the Goddess. Her colour is yellow. She is clad in yellow clothing and is adorned with yellow ornaments and yellow flowers (particularly the champak flower). With her left, she catches hold of her opponent's tongue and together with her right, she strikes him on the top together with her mace. She sits upon a golden throne surrounded by red lotuses. By some accounts, she wears the crescent moon as a jewel on her head.

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