जीवन परिचय :-
श्री अनन्तबोध चैतन्य का जन्म इतिहास प्रसिद्ध हरियाणा के पानीपत जिले में हुआ । बचपन मे उनका नाम सतीश रखा गया। सतीश बचपन से ही बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के रहे । घर का वातावरण धार्मिक होने के कारण इनको अनेक दंडी स्वामी और नाथ पंथ के महात्माओ का सानिध्य अनायास ही मिलता रहा। विभिन्न गुरुकुलों मे शिक्षा होने के कारण 18 वर्ष की छोटी उम्र मे ही इन्हें व्याकरण के प्रसिद्ध ग्रंथ अष्टाध्यायी आदि के साथ-साथ न्याय वेदान्त के अनेक ग्रंथ जैसे तर्कसंग्रह, वेदांतसार आदि तथा वेदों के भी कुछ अंश कंठाग्र कर लिया था। उपनिषदों का भी इन्हे अच्छा बोध हो गया ।
इनके पिता जी की सत्संग प्रियता एवं सौम्य प्रकृति के फलस्वरूप भगवतसत्ता के प्रति ललक एवं आत्म जिज्ञासा ने इन्हे अध्यात्म की राह मे लगा दिया। अनन्तबोध चैतन्य बाल्यकाल से ही शक्ति के उपासक रहे हैं।
शिक्षा:-
प्रारम्भिक शिक्षा के बाद अनेक गुरुकुलों एवं विद्यालयो में अद्ध्यन करते हुए इन्होंने कतिपय आचार्यों से शिक्षा प्राप्त की। इन्होने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय,कुरुक्षेत्र से संस्कृत भाषा , भारतीय दर्शन के साथ स्नातक (शास्त्री) तथा दर्शन शास्त्र विषय में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की बाद मे भारतीय दर्शन मे ज्ञान विषय से पी एच डी शोधकार्य को संपूर्णानन्द संस्कृत विश्व विद्यालय, वाराणसी को प्रस्तुत किया है ।
दीक्षा:-
सबसे पहले गंगा जी के पावन तट, बिहार घाट(नरौरा,उत्तर प्रदेश) मे परम विरक्त तपस्वी दंडी स्वामी श्री विष्णु आश्रम जी के दर्शनों ने इनके जीवन की दिशा को बदल दिया उनकी आज्ञा से धर्मसम्राट करपात्रि जी महाराज की तपस्थली नरवर, नरौरा मे श्री श्यामसुंदर ब्रह्मचारी जी (बाबा गुरु जी) से स्वल्प समय मे ही प्रस्थानत्रयी का अद्ध्यन किया तथा आत्मा एवं ब्रह्म की एकता को स्वीकार किया। आपने 2003 में स्वामी चेतनानन्द पुरी जी से शक्तिपात व पीताम्बरा की दीक्षा ली। इसके बाद अप्रेल 2005 मे विश्व प्रसिद्ध गोविंद मठ की महान परंपरा मे पूज्य महाराज आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाण पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन स्वामी श्री विश्वदेवानन्द पुरी जी से अद्वैत मत में दीक्षित हुए एवं इनका नाम ‘अनन्तबोध चैतन्य’ पड़ा।
प्रारम्भिक जीवन:-
अनन्तबोध चैतन्य की आध्यात्मिक यात्रा हिमालय की तलहटी के अनेक महान संतों और साधुओं की संगत में गहन आध्यात्मिक प्रशिक्षण के माध्यम से आध्यात्मिक उत्कृष्टता प्राप्त करने में आठ साल बिताने के साथ शुरू हई । .
• इन्होने आदि शंकराचार्य संप्रदाय से संबंधित महानिर्वाणी अखाडे मे वैदिक शास्त्रों की सेवा करने के लिए और भारतीय विरासत और संस्कृति के आध्यात्मिक मूल्यों के लिए अपना जीवन समर्पित करने का संकल्प लिया।
• बचपन की गतिविधियों एवं आध्यात्मिक जीवन के लिए बहुत गहरे आकर्षण को देखते हुये कुछ महापुरुषों ने पहले ही कह दिया था कि एक दिन ये बालक आत्मबोध और मानवता की सेवा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करेंगा।
सनातन धारा की स्थापना:-
देश के सांस्कृतिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक और राष्ट्रीय नवजागरण के लिए सनातन धारा की स्थापना की।
मानव मात्र को इससे नई चेतना मिली और अनेक संस्कारगत कुरीतियों से छुटकारा मिला। गरीब एवं बेसहारा विद्याथियों के लिए छात्रवृति प्रारम्भ की । जिसका लाभ बहुत सारे विद्यार्थी वर्तमान समय मे उठा रहे है।
अद्ध्यापन अनुभव:-
• अनन्तबोध चैतन्य जी हमेशा शास्त्र, संस्कृत भाषा, भारतीय दर्शन और संस्कृति के अपने विशाल ज्ञान के प्रसार में रुचि रखते है ।
• इन्होंने पिछले10 वर्षों के दौरान सैकड़ों छात्रों को इन विषयों मे पारंगत बनाया ।
• शिवडेल स्कूल, हरिद्वार में एक आध्यात्मिक सलाहकार के रूप में कई वर्षो तक अपनी सेवा प्रदान की।
• वह हमेशा उनके उन्नत शोध और अध्ययन में भारतीय और विदेशी दोनों प्रकार के लोगों को मदद प्रदान करते रहते है।
• इन्होने माल्टा, यूरोप में एक मुद्रा अनुसंधान समूह शुरू किया है जो मानव मात्र को चिकित्सा एवं अध्यात्म मे सहायता मिल रही है।
• इन्होने लिथुआनिया में योग एवं अध्यात्म के प्रचार व प्रसार के लिए "अनंतबोध योग" नामक योग केंद्र की स्थापना की। जहाँ पिछले 10 वर्षो से योग विद्या को फैला रहे है। आप वहां लोकल गवरमेंट के साथ मिलकर योग सीखा रहे है।
प्रकाशन:-
• कई पत्र और पत्रिकाओं के लिए लेख लिखने के अलावा संस्कृत अनुसंधान के महान वेदांत साहित्य संपादन में सहायता प्रदान की। सनातन धारा और उपनिषदों के रहस्य का आध्यात्मिक और सार्वभौमिक महत्व अंग्रेजी में अनुवादित किया है।
• संस्कृतभाषा में एक विशेष पाठ्यक्रम जल्द ही छात्रों को उपलब्ध कराने जा रहे है ।
• इनकी श्री विद्या पर " श्री विद्या साधना सोपान" पुस्तक प्रकाशित है ।
समाज सेवा और क्रियाएँ:-
• इन्होनें बच्चों के कल्याण, स्वास्थ्य देखभाल आदि के लिए 2000 में वीर सेवा समिति की स्थापना की ।
• इन्होनें 2011 में वैश्विक मिशन के साथ सनातन धारा फाउंडेशन ट्रस्ट की स्थापना की।
• आपने 2012 में श्री दिनेश गौतम जी के साथ मिलकर दृष्टि फाउंडेशन ट्रस्ट, अहमदाबाद में स्थापना की।
• अन्य लोगों और आश्रमों द्वारा अपनाई गयी परोपकारी और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए इनकी नि: स्वार्थ सेवाओं ने सभी संन्यासियों और भिक्षुओं के बीच में इन्हे बहुत लोकप्रिय बना दिया है।
• सन 2005 से तमाम दुनिया भर के छात्रों को उपनिषदों, श्रीमदभगवतगीता और योग सूत्रों पर इनका प्रवचन लाभ श्री यंत्र मंदिर, कनखल, हरिद्वार में नियमितरूप से उपलब्ध है ।
• समय समय से कई संस्थाओं के सदस्य और एक योग्य प्रशासक के रूप में उनके विकास के लिए अपना मूल्यवान निर्देशन भी देते रहे है।
• इनको सन 2011 मे श्री विद्या साधना पर प्रवचन देने के लिए मलेशिया से आमंत्रण मिला और इन्होने उसे सहर्ष स्वीकार कर एक महीने तक मलेशियावासियो को अपना अमूल्य प्रवचन लाभ प्रदान किया।
• तत्पश्चात सन 2012 मे पर्थ, ऑस्ट्रेलिया वासियों को गीता और योग सूत्रो पर अपने उत्कृष्ट उपदशों से लगातार 3 महीने तक लाभान्वित किया।
• इन्होने सन 2011में बैंकाक, थाईलैंड में हिंदू धर्म का सफल प्रतिनिधित्व किया है ।
• इन्होने 2013 में बोन्तांग, कालिमन्तान, इंडोनेशिया में सभी धर्मों के बीच सद्भाव विषय पर शानदार व्याख्यान दिया ।
• इनके देश विदेश मे सफल सफल ज्ञान प्रसार अभियान को देखते हुये एक आध्यात्मिक नेता के रूप बाली इंडोनेशिया में हिंदू शिखर सम्मेलन 2012, 2013, और 2014 में आमंत्रित किया गया ।
• ये मुद्रा सिखाने के लिए जनवरी 2014 मे माल्टा, यूरोप मे 15 दिन के लिए गए और बहुत से लोगो ने उनके सफल प्रयोग की सराहना की।
• इन्हे जकार्ता, इंडोनेशिया के बैंक में रामायण के अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान अपने बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिए एक मुख्य वक्ता के रूप में सर्वोच्च प्रशंसा के साथ सम्मानित किया गया ।
• इन्होने जनवरी 2014 में माल्टा, यूरोप में ' मुदाओ के द्वारा चिकित्सा ' के विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया।
• इन्होने जून 2015 में लिथुआनिया के योनावा नमक शहर में "अनंतबोध योग" की स्थापना की।
• इन्होने सितम्बर 2017 वसुधैव कुटुंबकम की भावना को ध्यान में रखते हुए Namai Pasauliui, všį जो एक गैर सरकारी संघ है को बनाया जिसके माध्यम से समाज हित एवं भारतीयता तथा वैदिक मूल्यों को बढ़ावा दिया।
• आपको 2018 में जर्मनी में प्रवचन करने का आमत्रण मिला जिसे आपने सहर्ष स्वीकार किया।
• आपने 2019 में लातविया के रीगा में स्वास्थ्य व वैदिक विज्ञान के ऊपर व्याख्यान दिया।
• आप मई 2022 में नीदरलैंड के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में शिव तत्व पर प्रवचन देने के लिए गए। नीदरलैंड के कई शहरो में आपने अपने व्याख्यानों से काफी लोगो को लाभ पहुंचाया।
• आप धार्मिक सद्भाव और विश्व बंधुत्व के एक मिशन के साथ दुनिया भर की यात्रा कर रहे है।
गुरुवार, 4 मई 2023
श्री अनन्तबोध चैतन्य का जीवन परिचय
गुरुवार, 1 दिसंबर 2022
What is Dasa Mahavidya?
The feminine divinity is a powerful entity. From mother nurturers to destroyers, from knowledge to wealth, they encompass every aspect of the physical and spiritual realm. A part of such a powerful entity is the Mahavidya.
The ten Mahavidyas, or Wisdom Goddesses, represent distinct aspects of divinity intent on guiding the spiritual seeker toward liberation. For the devotionally minded seeker, these forms can be approached in a spirit of reverence, love, and increasing intimacy. For a knowledge-oriented seeker, these same forms can represent various states of inner awakening along the path to enlightenment.
A Dasa Mahavidya is one of the 10 wisdom goddesses in Hinduism. The term comes from the Sanskrit, Dasa, meaning “ten,” maha, meaning “great” and Vidya, meaning “knowledge.” Each Mahavidya is a form of the Divine Mother. In Hindu religious scripts, the Dasa Mahavidya was created after a disagreement between Lord Shiva and Sati (a form of Shakti). The Dasa Mahavidya are as follows:-
1. Kali – The ultimate form of Brahman, "Devourer of Time" (Supreme Deity of Kalikula systems). Mahakali is of a pitch black complexion, darkest than the dark of the Death Night. She had three eyes, representing the past, present and future. She has shining white, fang-like teeth, a gaping mouth, and her red, bloody tongue hanging from there. She has unbound dishevelled hair. She was wearing tiger skins as her garments, a garland of skulls and a garland of rosy red flowers around her neck, and on her belt, she was adorned with skeletal bones, skeletal hands as well as severed arms and hands as her ornamentation. She has four hands, two of them were empty and two others carried a sword and demon head.
2. Tara – The Goddess as Guide and Protector, or Who Saves. Who offers the ultimate knowledge which gives salvation. She is the goddess of all sources of energy. The energy of the sun is also a grant from her. She manifested as the mother of Lord Shiva after the incident of Samudra Manthan to heal him as her child. Tara is of a light blue complexion. She has dishevelled hair and wears a crown decorated with the digit of the half-moon. She has three eyes, a snake coiled comfortably around her throat, wearing the skins of tigers, ornamented with a garland of skulls. She is also seen wearing a belt, supporting her skirt made of tiger skin. Her four hands carried a lotus, scimitar, demon head and scissors. She had her left foot resting on the corpse of Shiva
3. Tripura Sundari (Shodashi) – The Goddess Who is "Beautiful in the Three Worlds" (Supreme Deity of Srikula systems); the "Tantric Parvati" or the "Moksha Mukta". She is the head of manidweep. Shodashi is seen with a molten gold complexion, three placid eyes, a calm mien, wearing red and pink vestments, adorned with ornaments on her divine limbs and four hands, each holding a goad, lotus, bow and arrow. She is seated on a throne.
4. Bhuvaneshvari – The Goddess as World Mother, or Whose Body is all 14 lokas (whole cosmos). Bhuvaneshwari is of a fair, golden complexion, with three content eyes as well as a calm mien. She wears red and yellow garments, decorated with ornaments on her limbs and has four hands. Two of her four hands hold a goad and noose while her other two hands are open. She is seated on a divine, celestial throne.
5. Bhairavi – The Fierce Goddess. The female version of Bhairav. Bhairavi is of a fiery, volcanic red complexion, with three, furious eyes, and dishevelled hairs. Her hair was matted and tied up in a bun, decorated by a crescent moon as well as two devil horns sticking out from each side. She has two protruding tusks hanging out from the ends of her bloody mouth. She wears red and blue garments and is adorned with a garland of skulls around her neck. She also wears a belt decorated with severed hands and bones attached to it. She is also decked with snakes and serpents too as her ornamentation, and rarely she is seen wearing any jewellery on her limbs. She has four hands, two of which are open and two of which hold a rosary and book.
6. Chhinnamasta – The self-decapitated Goddess. She chopped her own head off to satisfy Jaya and Vijaya (metaphors of Rajas and Tamas - part of the trigunas). Chinnamasta is of a red complexion, embodied with a frightful appearance. She had dishevelled hair. She has four hands, two of which held a sword and another hand held her own severed head, with three blazing eyes with a frightful mien, wearing a crown, and two of her other hands held a lasso and drinking bowl. She is a partially clothed lady, adorned with ornaments on her limbs and wearing a garland of skulls on her body. She is mounted upon the back of a ferocious lion.
7. Dhumavati – The Widow Goddess. Dhumavati is of a very smoky dark brown complexion, her skin is wrinkled, her mouth is dry, some of her teeth have fallen out, her long dishevelled hairs are grey, her eyes are seen as bloodshot and she has a frightening mien, which is seen as a combined source of anger, misery, fear, exhaustion, restlessness, constant hunger and thirst. She wears white clothes, donned in the attire of a widow. She is sitting in a horseless chariot as her vehicle of transportation and on top of the chariot, there is an emblem of a crow as well as a banner. She has two trembling hands, one hand bestows boons and/or knowledge and the other holds a winnowing basket.
8. Bagalamukhi – The Goddess Who Paralyzes Enemies. Goddess Bagalamukhi has a molten gold complexion with three bright eyes, lush black hair and a benign mien. She is seen wearing yellow garments and apparel. She is decked with yellow ornaments on her limbs. Her two hands held a mace and the tongue of demon Madanasur, as he was in paralysis. She is depicted seated on either a throne or on the back of a crane.
9. Matangi – the Prime Minister of Lalita (in Srikula systems), sometimes called the "Tantric Saraswati". Matangi is depicted as emerald green in complexion, with lush, dishevelled black hairs, three placid eyes and a calm look on her face. She is seen wearing red garments and apparel and is bedecked with various types of ornaments all over her delicate limbs. She is seated on a royal throne and she has four hands, three of which hold a sword or scimitar, a skull and a veena as a musical instrument. Her one hand bestows boons to her devotees.
10. Kamala ( Kamalatmika) – The Lotus Goddess; sometimes called the "Tantric Lakshmi". Kamala is of a molten gold complexion with lush black hair, three bright, placid eyes, and a benevolent mien on her face. She is seen wearing red and pink garments and apparel and is bedecked with various types of ornaments and lotuses all over her limbs. She is seated on a fully bloomed lotus and has four hands, two of which held lotuses while two others granted her devotees' wishes and assured protection from fear.
शनिवार, 26 नवंबर 2022
ध्यान का विज्ञान (THE SCIENCE OF MEDITATION)
ध्यान का विज्ञान
ध्यान आध्यात्मिक उपचार की कला है। यह विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए वैज्ञानिक रूप से सिद्ध विज्ञान है, चाहे वह शारीरिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक हो। आज का चिकित्सा विज्ञान समझाता है कि मानव जाति को होने वाली अधिकांश बीमारियाँ मनोदैहिक होती हैं, जिसका अर्थ है कि उनमें एक मानसिक या मानसिक घटक और एक दैहिक या भौतिक घटक होता है। तनाव के उच्च स्तर के कारण अवचेतन में तरंगें कुछ शारीरिक बीमारी को प्रकट करती हैं। इसलिए उपचार के सिद्धांत में विभिन्न प्रकार की ध्यान तकनीकों की विधि द्वारा कारण को समाप्त करना शामिल है
साक्षी का अर्थ है बिना प्रयास के प्राकृतिक साक्षी और समाधि मन की गहन ध्यान अवस्था है। इसे जप की सहायता से या कुंडलिनी शक्ति को जगाकर प्राप्त किया जा सकता है। शाक्षी समाधि ध्यान बस इतना ही है - एक प्राकृतिक, सहज ध्यान प्रणाली जो चेतन मन को अपने आप में गहराई से बसने की अनुमति देती है, जिससे उसे बहुत जरूरी गहरा आराम मिलता है। जब मन शांत हो जाता है, तो यह सभी तनावों और तनावों को छोड़ देता है और वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करता है। सभी अप्रिय विचारों को दूर करता है और मन में भावनाओं को शांत करता है।
ध्यान में मन की विचारहीन अवस्था
केवल वर्तमान क्षण में - उन क्षणों में जब मन अतीत के बारे में पछतावे और भविष्य के बारे में चिंता से मुक्त हो जाता है - क्या किसी को सच्ची खुशी मिलती है। कुछ ही सत्रों में आप अपने स्वयं के स्वभाव की गहराई में उतरना सीखेंगे। आप अपने दिल में आनंद और शांति की खोज करेंगे।
साक्षी समाधि ध्यान बहुत आसान और सुखद है और नियमित दैनिक अभ्यास आपके जीवन की गुणवत्ता को पूरी तरह से बदल सकता है। साक्षी समाधि के माध्यम से, ध्यान जीवन में अनुशासन और मन में आनंद की भावना पैदा करता है, शरीर, मन और आत्मा को फिर से जीवंत करता है।
THE SCIENCE OF MEDITATION
Meditation is the art of spiritual healing. It is a scientifically proven science for curing various ailments, be it physical, physiological or psychological. Today's medical science explains that most diseases inflicted on mankind are psychosomatic, meaning they have a psychic or mental component and a somatic or physical component. Ripples in the subconscious due to higher levels of stress manifest some physical illness. The principle of treatment, therefore, consists in eliminating the cause by the method of various types of meditation techniques
Shakshi means natural witness without effort and samadhi is a deep meditative state of mind. This can be achieved with the help of Japa or by awakening the Kundalini Shakti. Shakshi Samadhi meditation is just that - a natural, effortless meditation system that allows the conscious mind to settle deep into its own self, giving it much-needed deep rest. When the mind calms down, it lets go of all tension and stress and focuses on the present moment. removes all unpleasant thoughts and eases the feelings in the mind.
The thoughtless state of mind in meditation
Only in the present moment—those moments when the mind is freed from regrets about the past and anxiety about the future—does one find true happiness. In just a few sessions you will learn to tap into the depths of your own nature. You will discover bliss and peace within your own heart.
Shakshi Samadhi meditation is very easy and enjoyable and regular daily practice can completely change the quality of your life. Through Shakshi Samadhi, meditation instils discipline in life and a sense of joy in the mind, rejuvenating the body, mind and soul.
मंगलवार, 22 नवंबर 2022
श्री यन्त्र क्या है? तथा श्री यन्त्र के नव आवरण की व्याख्या
कहा जाता है श्री सुंदरी साधन तत्पराणाम् , भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव….श्री विद्या की उपासना से साधक भोग और मोक्ष दोनों पा सकता है।
श्री यंत्र में नौ चक्र होते हैं । यंत्र के केंद्र में एक बिंदु होता है इस बिंदु के कारण ही भगवती त्रिपुर सुंदरी को वैंधववासिनी (विन्ध्यवासिनी) कहा जाता है।
नौ त्रिकोण परस्पर पुरुष तत्त्व और स्त्री सत्ता के बीच एकता और संतुलन बनाते है, केंद्र में बिंदू शुद्ध चेतना का प्रतिनिधित्व करता है।
यंत्र में पाँच मुख्य ज्यामितीय आकृतियाँ होती हैं: वर्ग, त्रिकोण, वृत्त, बिंदु और कमल की पंखुड़ियाँ। श्री यंत्र में वे सभी हैं: इसमें (1) नौ इंटरलॉकिंग त्रिकोण होते हैं (2) बीच में एक बिंदु, (3) दो वृत्त (4) कमल के फूल की पंखुड़ियों के साथ पूर्ण, और (5) एक वर्ग।
श्री यन्त्र में नव आवरण निम्नलिखित हैं ।
1:- त्रैलोक्य मोहन चक्र- तीनों लोकों को मोहित करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
2:- सर्वाशापूरक चक्र- सभी आशाओं, कामनाओं की पूर्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
3:- सर्व संक्षोभण चक्र- अखिल विश्व को संक्षोभित करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
4:- सर्व सौभाग्यदायक चक्र- सौभाग्य की प्राप्ति,वृद्धि करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
5:- सर्वार्थ सिद्धिप्रद चक्र- सभी प्रकार की अर्थाभिलाषाओं की पूर्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
6:- सर्वरक्षाकर चक्र- सभी प्रकार की बाधाओं से रक्षा करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
7:- सर्वरोगहर चक्र- सभी व्याधियों, रोगों से रक्षा करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
8:- सर्वसिद्धिप्रद चक्र- सभी सिद्धियों की प्राप्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
9:- सर्व आनंदमय चक्र- परमानंद या मोक्ष की प्राप्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
भूपुर (त्रैलोक्य मोहन चक्र)
सबसे बाहरी परत, जिसे "भूपुर कहा जाता है, क्रोध, भय और भौतिकवादी इच्छाओं जैसे सबसे सांसारिक और "बुनियादी" मानवीय भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है। इस वर्ग के भीतर जो संरचनाएं हैं उन्हें प्रसिद्ध चार दिशाओं का प्रवेश द्वार माना जाता है। इसके अलावा, प्रत्येक चार तत्वों में से एक का भी प्रतिनिधित्व करता है। पूर्व वायु, दक्षिण अग्नि, पश्चिम जल और उत्तर पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करता है। यदि आप चारों दिशाओं या तत्वों को एक साथ लेते हैं, तो आप पूर्णता, एकता और प्रसिद्ध आध्यात्मिकता भी प्राप्त करते हैं। एक बार जब हम इस परत को पार कर लेते हैं, तो हम वृत्तों की तीन परतों पर आ जाते हैं, जो अतीत, वर्तमान और भविष्य का प्रतिनिधित्व करती हैं। तीन वृत्त कमल ले की दो परतों में जड़े हुए हैं।
षोडश दल (सर्वाशापूरक चक्र)
श्रीयंत्र की पहली परत में सोलह पंखुड़ियाँ होती हैं और उन सभी आशाओं और इच्छाओं की पूर्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। सोलह पंखुड़ियों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में दस पंखुड़ियाँ हैं जो मानव शरीर पर ध्यान केंद्रित करती हैं, विशेष रूप से धारणा और क्रिया के अंग (यानी जीभ, नाक, मुंह, आंख, कान, त्वचा, हाथ, हाथ, पैर और प्रजनन अंग)। अगली पाँच पंखुड़ियाँ पाँच तत्वों से संबंधित हैं: जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और अंतरिक्ष। सोलहवीं पंखुड़ी वह भावना है जो पहली दो श्रेणियों के बीच संबंध और व्याख्या प्रदान करती है। कमल के पत्तों के पहले चक्र को पूरा करने के लिए तीनों श्रेणियों को मिलाना होता है । इस परत में, यह निरीक्षण करना महत्वपूर्ण है कि हम इन संवेदनाओं का अनुभव कैसे करते हैं ताकि हम उनके बारे में जागरूक हो सकें।
अष्ट दल (सर्व संक्षोभण चक्र )
दूसरी परत में जाने से आप आठ कमल की पंखुड़ियों के घेरे में आ जाते हैं। ये पंखुड़ियां हमारी गतिविधि के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं: भाषण, आंदोलन, उत्तेजना, उत्तेजना, घृणा, चिपटना, उन्मूलन, समानता और आकर्षण। जब आप इस स्तर पर पहुंच जाते हैं, तो आपको इन गतिविधियों को देखने के लिए आमंत्रित किया जाता है और इन गतिविधियों में संलग्न होने पर आप अधिक जागरूक हो जाते हैं।
त्रिकोणीय मंडल (सर्व सौभाग्यदायक चक्र)
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, नौ इंटरलॉकिंग त्रिकोण स्त्री और पुरुष ऊर्जा के बीच परस्पर क्रिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। स्त्रैण ऊर्जा को नीचे की ओर त्रिकोण और पुल्लिंग को ऊपर की ओर त्रिकोण द्वारा दर्शाया गया है। नौ त्रिभुजों को परस्पर जोड़ने से कुल 43 छोटे त्रिभुज बनते हैं। प्रत्येक एक संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है। जैसा कि बाहरी वर्गों और कमल के पत्तों के साथ होता है, 43 त्रिभुजों को मंडलियों में दर्शाया जाना चाहिए। यदि आप त्रिभुजों को वृत्तों के रूप में देखते हैं, तो आप कुल चार वृत्त और एक केंद्रीय त्रिभुज देख सकते हैं। त्रिकोणीय हलकों को पढ़ने में, एक सर्कल से सबसे कम त्रिकोण को देखकर स्टार से सबसे कम त्रिकोण से शुरू होता है, जो नीचे की ओर इशारा कर रहा है। वहां से, प्रत्येक त्रिकोण के माध्यम से एक वामावर्त परिपत्र गति में आगे बढ़ें, मर्दाना और स्त्री ऊर्जा को उलट दें। पढ़ने को आसान बनाने के लिए, संदर्भ बिंदु के रूप में चार दिशाओं का उपयोग करते हुए त्रिकोणों को पढ़ने के लिए एक अन्य सादृश्य का उपयोग किया जा सकता है। सबसे दक्षिणी त्रिकोण से शुरू करते हुए पूर्व और फिर उत्तर की ओर बढ़ें। नदी पश्चिम के माध्यम से जारी है और फिर से दक्षिण में पहुंचकर समाप्त हो जाती है।
चतुर्दशार (सर्वार्थ सिद्धिप्रद चक्र)
बाहरी वृत्त में 14 त्रिभुज अर्थात 14 गुण होते हैं। निचले, नीचे की ओर इशारा करते हुए त्रिभुज और दक्षिण-पूर्व-उत्तर-पश्चिम सादृश्य के साथ शुरुआत करते हुए, यहाँ विशेषताएँ हैं: उत्तेजना, पीछा, आकर्षण, परमानंद, मोह, गतिहीनता, मुक्ति, नियंत्रण, आनंद, नशा, इच्छा की सिद्धि, विलासिता, मंत्र और द्वैत का नाश।
बहिर्दशार (सर्वरक्षाकर चक्र)
अगले त्रिभुज वृत्त में 10 त्रिभुज या गुण होते हैं। त्रिभुजों का पठन अपरिवर्तित रहता है, नीचे के त्रिभुज से शुरू होकर नीचे की ओर इशारा करता है। दस गुण सभी सिद्धियों के दाता, धन के दाता, सभी को प्रसन्न करने वाली गतिविधियों की ऊर्जा, सभी इच्छाओं को देने वाले, सभी कष्टों को दूर करने वाले, मृत्यु को शांत करने वाले, सभी के विजेता हैं। विघ्नों को दूर करने वाले, रूप देने वाले और समस्त सुखों को देने वाले हैं। पहले त्रिकोण से ऊर्जावान अंतर यह है कि ये गुण किसी व्यक्ति या उसके पीछे होने का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अन्तर्दशार (सर्वरोगहर चक्र)
त्रिभुजों के तीसरे वृत्त में भी 10 त्रिभुज हैं। दस गुण सर्वज्ञता, सर्वशक्तिमत्ता, संप्रभुता, ज्ञान, सभी रोगों का विनाश, बिना शर्त समर्थन, सभी बुराइयों का नाश, सुरक्षा और सभी इच्छाओं की पूर्ति हैं। इस त्रिकोण की अंतर्निहित ऊर्जा सार्वभौमिकता और दिव्यता है। पहले दो त्रिभुजाकार वृत्तों के विपरीत इनमें जुड़ाव और एकता की अनुभूति होती है।
त्रिभुजों का चौथा वृत्त (सर्वसिद्धिप्रद चक्र)
त्रिभुजों के इस अंतिम वृत्त में कुछ त्रिभुज हैं: 8. आठ चतुर्भुज गुण रखरखाव, निर्माण, विघटन, सुख, दर्द, ठंड, गर्मी और एक क्रिया को चुनने की क्षमता हैं। इन गुणों का उपयोग आध्यात्मिक यात्रा को समझने के लिए किया जा सकता है जो निरंतर विकास को बनाने और जाने देने के पुण्य चक्र में शुरू होता है। यह समझना कि अब क्या काम नहीं करता और अगले चरण के लिए क्या आवश्यक है। ये आठ बिंदु मिलकर आध्यात्मिक विकास के पथ पर एकता बनाते हैं।
मध्य त्रिकोण और बिंदू (सर्व आनंदमय चक्र)
अंतिम और सबसे केंद्रीय त्रिकोण सभी पूर्णता के दाता की गुणवत्ता रखता है, त्रिकोण के केंद्र में बिंदू शुद्ध चेतना का प्रतिनिधित्व करता है। बिन्दु समस्त सृष्टि का स्रोत है।
ॐ श्री मात्रे नमः।
सोमवार, 21 नवंबर 2022
The explanation of Shri Yantra by Anantbodh Chaitanya
Shri Yantra, the Queen of all Yantras, brings the divine power of prosperity into one's life - both materialistic and spiritual. Holding a strong place in Hinduism, yantras are mystical charts that support the pursuit of wealth by meditating through them or simply being in possession of one.
Shri Yantra: a map to consciousness
The yantra comprises nine interlocking triangles forming a total of 43 triangles within two circles of lotus petals and a T-shaped square. In the centre of the yantra is a point called the Bindu. The interplay of the nine triangles creates unity and balance between the masculine and feminine, with the Bindu point in the centre representing pure consciousness. The finished image of the nine interlocking triangles forms a kind of web that represents the entire cosmos.
The symbolism of the Shri Yantra
The diagram is also considered to be a kind of womb, representing all of creation, fertility and prosperity. The triangles are surrounded and protected by three circles, two of which are decorated with lotus petals, symbolic of eternity and wealth. The outer square layer represents the four gates of the earth. All of these elements represented in the Shri Yantra form a very powerful energetic symbol that unites all layers of existence from earthly experiences to the most cosmic spiritual representations.
Beyond Religion
Because of its very powerful symbolism, the Shri Yantra has drawn the attention of many people beyond the realm of Hinduism to the western world. It is widely used today as a supportive object for meditation to welcome prosperity while clearing the mind of all kinds of clutter.
Origin of the name "Shri Yantra"
Shri-yantra-meditation Shri Yantra is especially famous as it is the main yantra from which all other yantras are derived. In Sanskrit, "Shri" means "queen" and "yantra" comes from "yam" and "tra", where "yam" means "instrument" and "tra", is derived from "trana", means "liberation". Therefore, Shri Yantra literally means "the queen of all instruments of liberation". But liberation from what? Liberation in this context refers to spiritual liberation, the ability to detach from worldly worries and transform them into spiritual growth. Shri Yantra has different spellings that can be used. One such spelling is "Shree Yantra" which means "wealth instrument" which ties into spiritual wealth.
Shri Yantra: more than a drawing
A good yantra consists of five main geometric shapes: squares, triangles, circles, dots and lotus petals. Shri Yantra has them all: It consists of (1) nine interlocking triangles with (2) a dot in the middle, (3) two circles (4) completed with the petals of the lotus flower, and (5) a square.
An analogy for spiritual growth
When looking at the Shri Yantra, the outer layers can be viewed as a representation of the most "down-to-earth" experience. The square is called the "Earth Square" and each layer approaching the centre is a representation of the gradual movement of spiritual growth/liberation toward the ultimate goal of spiritual awakening and pure consciousness. This pure awareness is represented by the dot in the centre of the yantra.
The elements that build up into pure consciousness
The point, also called "Bindu" (Sanskrit for "point"), is surrounded by nine interlocking triangles, four pointing up and five pointing down. The upward triangles represent the masculine, Shiva, energy. The downward triangles represent the feminine, shakti, energy. The interlocking triangles form a total of 43 smaller triangles. The triangles are surrounded by two layers of lotus petals before reaching the square with T-shaped structures, also called the "Earth Square". For more information about the meaning of each element, you can read the meaning behind the elements of Shri Yantra.
The meaning behind the elements from the Shri Yantra
A Journey to Consciousness
When contemplating the mantra, it is advisable to first focus on the outermost layers and slowly move inward one layer at a time. This is due to the spiritual analogy. The outermost layer is the most grounded and at the same time the most human layer. As we gradually move inward, we enter higher levels of spirituality and consciousness. So let's analyze the different layers from outside to inside all:
The Earth square ( BHUPUR)
The outermost layer, called the "Earth Square," represents the most mundane and "basic" human emotions, such as anger, fear, and materialistic desires. Within this square are T-shaped structures that are considered to be the gateways to the well-known four directions. In addition, each also represents one of the four elements. East represents air, south fire, west water, and north earth. If you take all four directions or elements together, you achieve perfection, unity and also the well-known spirituality. Once we get past this layer, we come to three layers of circles, representing the past, the present, and the future. The three circles are embedded in two layers of lotus leaves.
The outer layer of sixteen petals
The first layer contains sixteen petals and represents the fulfilment of all hopes and desires that we are allowed to experience. The sixteen petals are divided into three categories. The first category contains ten petals that focus on the human body, more specifically the organs of perception and action (i.e. tongue, nose, mouth, eyes, ears, skin, hands, arms, feet and reproductive organs). The next five petals relate to the five elements: water, air, earth, fire and space. The sixteenth petal is the spirit that provides the connection and interpretation between the first two categories. To complete the first circle of lotus leaves, all three categories must be combined. In this layer, it is important to observe how we experience these sensations in order to become aware of them. For more information on how to observe these sensations, read the section on 'Awareness Through Observation'.
The inner layer of the eight petals
Moving in another layer brings you to the circle of eight lotus petals. These petals represent our different forms of activity: speech, movement, arousal, excitement, disgust, clinging, elimination, equanimity, and attraction. When you reach this layer, you are invited to observe these activities and become more aware as you engage in these activities. For example, take a moment when you are excited. Stop, take a step back and notice where the excitement is felt in your body. You can also observe and analyze what triggered this excitement in you. It happens that we were agitated for a while before we became aware of it. That's the purpose of this layer. Stay constantly awake and aware of how our surroundings or situations create certain triggers in us. Observing allows us to become more aware, to be more present and to let go of the sensations experienced in the present. As you practice this exercise, you will become more conscious over time. This causes you to move inward toward more layers.
The Triangular circles
As previously mentioned, the nine interlocking triangles represent the interplay between the feminine and masculine energies. The feminine energy is represented by downward triangles and the masculine by upward triangles. Interlocking the nine triangles creates a total of 43 smaller triangles. Each represents a property. As with the outer squares and lotus leaves, the 43 triangles must be represented in circles. If you look at the triangles in the form of circles, you can see a total of four circles and a central triangle.
Reading the triangular circles
In reading the triangular circles, one begins with the lowest triangle from the star by looking at the lowest triangle from the circle, which is pointing down. From there, move through each triangle in a counter-clockwise circular motion, reversing the masculine and feminine energies. To make the reading easier, another analogy can be used for reading the triangles, using the four directions as a reference point. Starting from the southernmost triangle, move east and then north. The river continues through the west and ends by reaching the south again.
The Outer triangle circle
The outer circle contains 14 triangles, i.e. 14 properties. Beginning with the lower, downward-pointing triangle and the South-East-Northwest analogy, here are the attributes: arousal, pursuit, attraction, ecstasy, infatuation, immobility, liberation, control, pleasure, intoxication, an accomplishment of desire, luxury, mantra and the destruction of duality.
The Second triangular circle
The next triangle circle contains 10 triangles or properties. The reading of the triangles remains unchanged, starting with the bottom triangle pointing down. The ten qualities are the giver of all achievements, the giver of wealth, the energy of activities pleasing to all, the bringer of all blessings, the giver of all desires, the remover of all suffering, the appeaser of death, the conqueror of all obstacles, the bringer of beauty and the giver of all happiness. The energetic difference from the first triangle is that these qualities represent a person or being behind. This can be perceived by the words "giver", "bringer", "remover", etc. They could also be understood as angels exercising these qualities. However, it is also possible that these represent the "we" and that we hold these hidden qualities, although we are not yet aware of them.
The Third triangular circle
The third circle of triangles also contains 10 triangles. The ten qualities are omniscience, omnipotence, sovereignty, knowledge, destruction of all diseases, unconditional support, vanquishing of all evils, protection and the fulfilment of all desires. The underlying energy of this triangle is universality and divinity. In contrast to the first two triangular circles, there is a feeling of connectedness and unity.
The fourth circle of triangles
This last circle of triangles contains a few triangles: 8. The eight qualities are maintenance, creation, dissolution, pleasure, pain, cold, warmth, and the ability to choose an action. These qualities can be used to understand the spiritual journey one embarks on in the virtuous cycle of creating and letting go of constant growth. Understanding what no longer serves and what is necessary for the next step. For example, "Maintain," "Create," and "Dissolve" can be combined, with pleasure-pain and cold warmth creating the opposites. The eighth quality summarizes the first seven qualities well: "the ability to choose an action". These eight points together form a unity on the path of spiritual growth.
The Central Triangle and Bindu
The last and most central triangle holds the quality of bestower of all perfection, with the Bindu in the centre of the triangle representing pure consciousness. Bindu is the source of all creation.