रविवार, 29 मई 2011

Shree Yantra Mahima by Brahmchari Anantbodh Chaitanya

            
       
                      श्री  यन्त्र मन्दिरम्   


विश्वस्मिन् ननु भुतले शुभकरो देव्यालयोऽन्यत्र कः
चित्तागारविचारराशिरचना संपुरको यो चिरम्
अत्रैवाद्वयतत्त्वसिद्धभवने निर्वाणपीठाश्रमे
सर्वाशापरिपूरकःशिवकरो दिव्यालयो विद्यते ॥१
यत्वात्सल्य रसेन नित्य वसुधा सिक्ता दरीदृश्यते
यस्याह्लाद कर्णेन चन्द्रतरणी दिव्यौ भव्यौ स्मृतौ
विश्वं यत्कृपया सदा गुणगणैः सत्यं समुज्जृम्भते
तस्याः भीतिनिवारणैक कुशलो दिव्यालयो दृश्यते ॥२
या ब्रह्मादिसुरेश्वरैः जनिमतां वंद्यैः सदा वन्दिता
भक्तानां भवभीति भंजनपरा भक्तिप्रदा भैरवी।
दावाग्निर्भववासनाधिविपिने ज्ञानात्मिका या चित्तिः
सा श्री मन्दिरचत्वरे विलषते श्री राजराजेश्वरी ॥३
भैकाभ्रद्वन्द्वे सुभगतरवर्षे ग्रहपतौ
हरिद्वारे तीर्थे सुरतटिनि तीरे कनखले
महाकुम्भे दिव्ये सुरवर विलासैक भवनम्
महादेव्याः भव्यं भुवनकमनं दिव्यमसृजत् ।।४
निर्वाणपीठेश्वरः आचार्यविश्वदेवानन्दयतिः
श्री श्री यन्त्र मन्दिरे हरिद्वारे श्रियं स्थापयति
नत्वा गुरुं गणपतिं पितरौ जगदम्बिकासदाशिवौ
सर्वान् साधून् प्रणम्य श्री मन्दिरं सुसंथापयति
     ब्रह्मचारी अनन्तबोध चैतन्य


अनंतबोध चैतन्य द्वारा विरचित गुरुनिष्ठास्तव

सर्वतन्त्रस्वतंत्राय धर्मशास्त्रप्रचारिणे
निर्वाणपीठेश्वराय वेदान्तगुरवे नमः ।।  1
सुप्रसन्नं कर्मनिष्ठं निजानन्दस्वरुपिणम्
अज्ञानतिमिरध्वान्तं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 2
ज्ञाननिष्ठं धर्मनिष्ठं द्वंदातीतं यतेंद्रियम् । 
अज्ञानतिमिरध्वान्तं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 3
शरण्यं सर्वभक्तानां ब्रह्मानन्दस्वरूपकम् । 
अज्ञानतिमिरध्वान्तं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥4
 श्रेयस्कामं महाभागं मानातीतं यतीश्वरम् । 
अज्ञानतिमिरध्वान्तं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 5
जपध्यानेरतं नित्यं भयशोकादिवर्जितम् । 
अज्ञानतिमिरध्वान्तं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 6 
लोभमोहपरित्यक्तमाशापाशविवर्जितम् ।
अज्ञानतिमिरध्वान्तं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 7 
विश्वदेवं गुरुवर्यं साक्षाद्शंकररुपिणम् । 
अज्ञानतिमिरध्वान्तं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 8 
गुरुस्तवमिदं पुण्यं ज्ञानविज्ञानदायकम् । 
मयाविरच्यते ह्येतदनंत ब्रह्मचारिणा ॥
     

अनंतबोध चैतन्य द्वारा लिया गया गुरु जी का परिचय





परम पूज्य आचार्य महामण्डलेश्वर निर्वाणपीठाधीश्वर श्री  श्री १००८ स्वामी विश्वदेवानन्द जी के साथ वार्तालाप के कुछ अंश ---
महाराज श्री से जन्म समय तथा जन्म स्थान के  बारे मे पूछने पर महाराज श्री का बडा सारगर्भित उत्तर-
पूज्य महाराज  जी फ़रमाते हैं कि साधु का परिचय जन्म के साथ नहीं होता ,साधु अपनी मृत्यु से परिचय  देता हैं। उसका कर्त्तृत्व ही समाज के लिये प्रेरक होता हैं।  वह अपनी समसायमिक व्यवस्था के साथ आने वाली भविष्य की पीढियों के प्रति भी कर्तव्यबोध तथा प्रयोग के द्वारा जीवन के महत् उद्देश्यों व मूल्यों की विरासत प्रस्तुत करता हैं। साधु अपनी मृत्यु के साथ  भी कुछ दे जाता है।यही कारण है कि महात्मा की मृत्युतिथि महोत्सव के रुप मे देखी जाती है, जिससे प्रेरणा लेकर जीवन को उत्सव की भांति जी सके। पुनः इसी प्रश्न के सन्दर्भ में महाराज श्री ने कहा कि जगन्मिथ्यात्त्व के दर्शन में समाहित हुई  आत्मचेतना  स्वयं के परम लक्ष्य ब्रह्मभाव में स्थिति के साथ देह और देह सम्बन्धी व्यवस्थाओं  को लौकिक व्यवस्थाओं के सन्दर्भ में गौण मानती हुई उस पर ज्यादा चर्चा करने और सुनने में उत्सुक नहीं होती।
यथार्थ जगत् की अपनी एक सत्ता है किन्तु वह बाधित है।जीवन की अनिवार्यता तो उसमें है लेकिन सहज व अन्तिम स्थिति नहीं है। अतःएव उसे गौण रुप में देखते हुए परम लक्ष्य मे प्रतिष्ठित  होना ही दृष्टि का प्रधान  विषय होता है। यही कारण है कि दैहिक व्यस्थाओं मे ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष  की सन्निष्ठा महत्त्व का दर्शन नहीं करती।यही दृष्टि का आधारभूत दर्शन है, जो महापुरुष को सामान्य लौकिक व्यक्ति से अलग करता है । लोक में रह कर भी वह अलौकिक रहता हैं। साधुता के इसी मर्म के साथ साधु सही अर्थों मे साधु होता है एवं साधुता की साधना सिद्ध अन्तिम मञ्जिल तक पहुंचता  है। दैहिक तल पर  कर्त्तृत्व और इस तल से जुड़े हुए वह जन्मादि को ज्यादा प्रशांसित नहीं करता, इस अर्थ मे जयंती आदि के कार्यक्रम भी उसे आकर्षित नहीं कर पाते, दैहिक परिचयों के भूमि से वह अलग होता है बाध्यता है कि वह जगत मे होता है, क्योकि यह ईश्वरीय  व्यवस्था है । सुख-दुख की विभिन्न परिस्थितियों में समता बोध के साथ जीता हुआ सब कुछ सहज से अपनाता हुआ, सत्य ब्रह्म की उर्ध्व   भूमि में समासीन  रहता है। इस अर्थ में दैहिक परिचय उपेक्षणीय मानता है। भक्त, अपनी आस्था से कुछ भी करें श्रध्दा की भाषा और  भावना में किसी भी स्तर से मान की भूमिका  बनायें  लेकिन महापुरूष अमान और उन्मन ही रहते हैं।
सन्देश - आत्मस्थिति अर्थात् ब्रह्मात्मैक्यस्थिति का बोध यही जीवन का परम लक्ष्य  है। जिस लक्ष्य का सन्देश वेदवेदान्त विभिन्न-घोषणाओं के द्वारा देते चले आ रहे  है प्राप्त गुरुज्ञान से उसकी अनुभुति तथा स्मृति बनाये रखते हुये अपनी प्राप्त क्षमता  तथा योग्यता के साथ  ईश्वरीय चेतना के प्रकाश में  व्यक्ति सत्कर्मों का अनुष्ठान करता हुआ सहज दोषों से अपने को अलग रखने का दृढ संकल्प रखें। सत्य एवं सदाचार का अनुसरण करें ।
संकलनकर्ता --- ब्रह्मचारी अनन्तबोध चैतन्य

Shri Anantbodh Chaitanya founder President of Sanatan Dhara Foundation.


   Shri Satish Kumar known as Shri Anantbodh Chaitanya

                                                                                     
                                                                

          Born in a pious family Shri Anantbodh Chaitanya had very deep attraction for spiritual life which was reflected in his day to day activities. Since his childhood, he had the intuition that he will dedicate his entire life for   Self-realization and for the service of humanity.
He spent his young life under the feet of   ascetics, monks and spiritual masters of Himalayas. When his aspiration for spiritual quest reached at its peak, he was initiated by one of the great spiritual master of India, belonging to lineage of Adi Shankaracharya and Adi Kapil Bhagwan, Acharya Mahamandelshwar Nirvana Pithadhishwar Swami Shri Vishwadevanada Ji Maharaj. His Guru not only initiated him into the order of one of greatest orders of Brahcharya (Brahmchari) in India which is more than 800 years old but also taught him important scriptures aimed at knowing purpose of life and Sadhana (spiritual practices) which culminates into realization of The Absolute of the west i.e. The Brahman of Vedas or The Ultimate Consciousness.

Shri Anantbodh Chaitanya practiced   meditation and spiritual Sadhana at many places; the most important ones are forests of Girnar, Junagarh, Gujarat at the bank of river Narmada; Haridwar, the Spiritual Nucleus of India; Gangotri, The Himalayan region at the height of more than 11,000 ft above sea level. The deep aspiration for spirituality within him, led him to practice meditation in chilly winter, high up mountains in Himalayan in solitude for many years.

His Guru Ji (Master) inspired him to serve humanity through his knowledge, realizations and deeper understanding of Yoga. Keeping in mind the grace of his Guru,    he established Sanatan Dhara Foundation in 2011, at Kankhal, Haridwar, and Uttrakhanda, India rededicating his entire life for humanity. He aims all his teaching at “know Thyself”

Shri Anantbodh Chaitanya gives lectures on Spirituality. He teaches Upanishadas, Gita, Patanjali Yoga, Meditation, and other Hatha Yoga practices with ease, clear and deeper understanding in order to inculcate lifestyle amongst people seeking spiritual awakening, health care and disease management. he guides, inspires, conducts practical programs from ancient wisdom of Yoga, Ayurveda, Nature Cure and other allied sciences. His simple but easy and holistic programs have attracted people from all over the world. He has organized lectures in Kolkata, Ahmadabad, Karnal, Jabalpur, Jaipur, Sikar, Bangalore, Hyderabad and many parts of India out of humility and without asking any fees for it. This has attracted people from all over the world.
                                      He is a great Astrologer also. His Sanatan Dhara Foundation is wholly dependent upon donations received from his devotees all over the world. The donations received are used for offering scholarships to children who cannot afford their fees for studies. Further, donations are also used for medications and helping downtrodden children from the society. What he teaches also practices in his day to day life. His life and action conveys one message,” Help the poor and heal the world from its sufferings” through Vedic and yoga teaching aimed human upliftment.


शनिवार, 28 मई 2011

Aims of Sanatan Dhara Foundation given by Shri Anantbodh Chaitanya


1.       This foundation is committed to inspire people to join the cosmic direction, adopted by the Sanatan way of life, which is the secret science of God-realization. This can be achieved by the perfection of personality through the domination of intellect over mind and ego. Thus, the foundation helps devotees to achieve the ultimate state of pure consciousness. This aims are intuited and formulated by Shri Shri 108 Nirvana Pithadhishwar Acharya Mahamandleshwar Swami Vishwadevanada ji Maharaj.

2.       This foundation is also committed to establish and support the centers for the practice of Yoga as propounded in the scriptures for the physical, mental and spiritual development of human. Again, it also aims to encourage and to add the practice of yoga & teachings of Upanishads in educational institutions. That is why we are going to publish principal eleven Upanishads on our blog one by one in all the three languages, i.e. Sanskrit (original), Hindi and English.

3.       Said foundation is committed to provide food and shelter to old citizens and disable people with medical facility. And also committed to propagate the traditional wisdom and skills of nature cure, Yoga and Ayurveda of India.

4.      This foundation is committed to protect and nurture the cows and calves (Goshala).

  
5.      This foundation is committed to establish regional or local centers to promote the activities of the foundation in peaceful ways for revolutionizing the system of education.

6.        Without prejudice to generality of aforesaid objects, the association shall have the power to acquire, receive and hold property of any kind, including securities and negotiable instruments, to construct and maintain building to manage, to transfer or otherwise dispose of or deal with property of any kind belonging to the foundation and to raise money by receiving donations and funds in such manner as may be deemed fit for and on behalf of foundation and to accept the management of any financial organization endowment in which the foundation may be interested.  

7.      This foundation is committed to establish and organize free medical checkup camp, free medical aid, and blood donation camp, free legal aid advice to poor and needy person.

8.      This foundation also aims to organize campaign for women empowerment, against the female feticide, against the terrorism, against corruption, etc.


9.      This foundation is committed to organize regular programs of hymn-singing, Gita chanting, yagana and lectures on Gita and Upanishads at national and international levels.


10.  This foundation is also aims to establish museums, reading rooms and libraries with the literature of Sanatan mythology and Sanatan scriptures of Indian tradition.


गुरुवार, 26 मई 2011

Go Mahima by Brahmchari Anantbodh Chaitanya










धर्मं की जय हो  ॥ अधर्म का नाश हो प्राणियों में सदभावाना हो ॥ विश्व का कल्याण हो ॥  हर हर महादेव 
गौ हत्या बन्द हो ॥ गौ माता की जय हो ॥ भारत माता की जय हो ॥
गोरुत्पत्ति - दक्षप्रजापति के अमृतपान से तृप्त होने पर जीवों के कल्याणार्थ उनकी क्षुत् तृषा निवृत्ति के लिये मुख से असंख्य कपिला गायें उत्पन्न हुई| ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार गोलोक निवासी बालकृष्ण के मन में गोदुग्ध पीकर गोपाल होने का भाव आया।गाय द्वारा जो पालित है।[गावः पालयन्ति यं इति गोपालः]-अथवा गायों का जो पालन करता है। [गां पालयति यः स इति गोपालः]।तो उनके दक्षिण में सुरभि का प्राकट्य हो गया भगवान कृष्ण ने पर्याप्त दूध दुहकर पी लिया शेष जो दूध बचा वही गोलोक का क्षीरसागर बना।
सिद्धान्तशिरोमणी के अनुसार देवाधिदेव महादेव को अपने पांचों मुखों पर पांच प्रकार की भस्म लगाने का भाव आया तब उनके पञ्चवक्त्रों से पांच गावों का तथा पांच गावों से ही पांच प्रकार की विभूति का उदय हुआ जो इस प्रकार है
१ सद्योजात - नन्दा - विभूति
२ वामदेव - भद्रा - भसित
३ अघोर - सुरभि - भस्म
४ तत्पुरुष - सुशीला - क्षार
५ ईशान -सुमना - रक्षा
नन्दा भद्रा च सुरभीः सुशीला सुमनास्तथा ।
पञ्चगावो विभोर्जाताः सद्योजातादि वक्‌त्रतः॥
विराट पुरुष से गौ उत्पन्न हुई {गावो ह जज्ञिरे } पुरुषसूक्त यजूर्वे
गोपदार्थ -गौ - पृथ्वी -स्वर्ण -सुर्यकिरणें- इन्द्रियां -वेदवाणी -आदि विभिन्न अर्थ संस्कृत साहित्य में प्राप्त हैं। गच्छति इति गौ गमेर्ड इस धातु से गौ शब्द की निष्पति होती है। अर्थात् जो चल रही है जा रही है तात्पर्य जो कुछ भी दुनियां मे चल रहा है जा रहा है सब कुछ गौ ही है संपूर्ण प्रपञ्च गौ ही है।विश्व की लगभग सभी भाषा ओं मेंगाय को कू कौ का ऊ बोला जाता है। अंग्रेजी में तो परमात्मा तक को गोद कहा जाता है जो स्पैलिङ्ग गौड की होगी वही गोद की होगी अर्थात् गां ददाति इति गोद -जिसने विश्व कल्याणार्थ गौ दी या दान की वही गौ दाता भगवान ही अंग्रेजी का गौड हो गया।गोमति गोमती और गोदावरी नदियों का जीवन तो गौ ही है।गोरक्षपुर गोरखपुर गोरक्षक गोरखाजाति मारवाडियों में एक गौत्र विशेष गो इनका गोयनका गोल्याण हिंसकों से जो गायों को बचाकर लाये।
संस्कृतभाषा में एक गवेषणा शब्द है इसका अर्थ है -गो की इच्छा ।जैसे वित्तेषणा पुत्रेष्णा ठीक वैसे ही गवेष्णा भी ग्राह्य है।गौ हमारी जीवन धायक शक्ति हमारी रग रग में बसी रोम रोम में रमी है।गौ धूलि वेला का मुहूर्त अत्युत्तम है।
गौ पद से जैसी कैसी जर्सी विदेशी दोगली वर्णसाङ्कर्योत्पन्न गौ वाच्य नहीं है।इसकी उपेक्षा तो व्यक्ति भैंस पाल ले तो ठीक हैब्रह्मचारी अनन्तबोध चैतन्य ,हरिद्वार

Introduction about Acharya Satish (Anantbodh Chaitanya)


 
                                                 
 Tradition

Shri Anantbodh Chaitanya an ascetic Brahmchari in Shri Govind Math convention represents the luminary lineage of the great-enlightened saints and yogis that renounce their homes at an early age in the search of supreme truth giving up all worldly ties and aspirations.Shri Anantodh Chaitanya took naishtik  Bramcharya (नैष्ठिक ब्रह्मचर्य) Diksha from Nirvana Pithadhishwara Acharya Mahamandleshwara Shri Shri 108 Swami Shri Vishwadevananda ji Maharaj in April 2005.

Early years

Ø  The spiritual journey began with spending eight long years in achieving spiritual excellence through intensive spiritual training in the company of the great saints and sadhus at the Himalayan foothills.
Ø  Belonging to the sect of Adi Shankaracharya, he chooses to devote his life to the service of Vedic scriptures and to the spiritual values of Indian heritage and culture.
   
     Education-

Ø  Graduation (Shastri) with Sanskrit language, Indian Philosophies
Ø  Masters' (Acharya) degrees in Darshan.
Ø  PhD. In Gyan Mimansa about to submit from Sampurnanda Vishwavidyalya, Varanasi
Ø  Special comprehensive training into the depths of the spiritual and moral scriptures and classical treatises with outstanding masters and accomplished saint- philosophers like his spiritual mentors of enormous intellectual caliber Acharya Mahamandelshwar Nirvana Pithadhishwar Swami Shri Vishwadevanada Ji Maharaj has enabled Brahmchari ji present the essence of the Indian spiritual wisdom in pristine as well as most practical form.

Teaching and Experience

Brahmchari Ji has always been interested in disseminating his vast knowledge of    scriptures, Sanskrit language, Indian philosophy and culture. He has taught these subjects to hundreds of students during last 10 years.
He has always helped people both Indian and foreigners in their advanced researches and studies.

Publications
  
Ø   Besides writing articles for several journals and magazines already published.     
Ø  His work on Upanishads is not only in Sanskrit language but English and Hindi language also in press.
Ø  Spiritual and universal significance of the Sanatan Dhara and Secrets of the Upanishads are being translated into English.
Ø  A special course in Sanskrit language will soon be made available to the students.
     
     Social Service & Activities:

Ø  He founded Veer Seva Samiti in 200o for the children welfare, health-care etc.
Ø  Founded Sanatan Dhara Foundation with global mission in 2006.
Ø  Established English Sanskrit Academy in 2009 for the students of both the languages.
Ø  His selfless services to philanthropic and academic purposes pursued by other people and ashrams, has made him very popular among all ascetics and monks irrespective of differences in sects and conventions
Ø  As member of several institutions and as an able administrator he has given his valuable guide-lines for their development.



Param Guru Mahima by Anantbodh Chaitanya


                  

 

           श्री कृष्णानन्दस्तुतिः
सर्वशास्त्रार्थनिष्णातं निगमागमबोधकम्  
श्री कृष्णाख्यं यतिश्रेष्ठं प्रणमामि पुनः पुनः ॥1 
कृष्णानन्दं जगद्वन्द्यं कारुण्यामृतसागरम्  
स्वात्मानन्दनिमग्नञ्च शिवसायुज्यसाधकम् 2 
जीवितं यस्य लोकायऽऽलोकायैव च जीवनम् । 
महादेव समं मान्यममान्यानपि मानदम् 3 
हार्दं लोकहितार्थाय मनोहारि च यद्वचः  
राकेन्दुरिव दिव्याय भव्याय नमो नमः 4 
काषायवस्त्रभूषाय मालारुद्राक्षधारिणे  
श्री कृष्णानन्दसंज्ञाय गुरुणां गुरवे नमः। 5
यतिमण्डलमार्तण्डमानन्दान्बुधिसन्निभम् 
 नमामि शिरसा देवं कृष्णानन्दं यतिं वरम् ॥6 
अज्ञानतिमिरध्वान्तं विप्रकुलसमुद्भवम् ।
नमामि मनसा देवं कृष्णानन्दं यतिं वरम् 7 
नमः परमहंसाय सुधीभिर्वन्दिताय च  
श्री कृष्णानन्दसंज्ञाय गुरुणां गुरवे नमः 8 
अष्टश्लोकी स्तुतिरेषा पुण्यानन्दविवर्धिनी । 
विरचिता ह्यनन्तेन गुरुदेव प्रसादतः

शनिवार, 21 मई 2011

Guru Mahima by Anantbodh Chaitanya



   

     श्री गुरुमहिमा
कालिकाराधको नित्यं ज्ञानदीक्षा प्रदायकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥१
रहः पूजनसन्तुष्ठो महादेवी प्रपूजकः ।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥२
गीतारहस्यवक्ता यः महानिर्वाणदायकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥३
वेदाद्वैतमताचार्यो सर्वलोकैकदेशिकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥४
ऊर्ध्वरेता महाज्ञानी शिष्यानुग्रहकारकः ।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥५
जगद्वन्द्यो मुनिश्रेष्ठस्तत्त्वज्ञानप्रदायकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥
करुणामुदितासिन्धुर्भक्तितत्त्वप्रबोधकः
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥७ 
आचार्योऽधिगतस्तत्त्वमुक्तिज्ञानप्रदायकः। 
विश्वदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥८
     अनन्तबोध चैतन्य विरचिता गुरुमहिमा