रविवार, 15 जून 2025

क्या हम वास्तव में मशीनों के साथ भावनात्मक संबंध बनाने के लिए तैयार हैं?



आज की दुनिया में, जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) दिन-ब-दिन हमारी जिंदगी का हिस्सा बनती जा रही है, हम एक चुपचाप लेकिन गहरे परिवर्तन को देख रहे हैं। अब इंसानों का जुड़ाव सिर्फ एक-दूसरे से नहीं, बल्कि मशीनों से भी भावनात्मक रूप से होने लगा है। AI आधारित साथी—जैसे Replika, Character.ai आदि—अब केवल तकनीकी उपकरण नहीं रह गए हैं, बल्कि भावनात्मक सहायक, दोस्त, और कभी-कभी प्रेमी तक बनते जा रहे हैं।

इस परिवर्तन ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है:
क्या हम वास्तव में मशीनों के साथ भावनात्मक संबंध बनाने के लिए तैयार हैं?


उपकरण से साथी तक का सफर

कुछ वर्ष पहले तक, तकनीक केवल एक साधन थी—गणना करने का, रास्ता ढूंढने का या जानकारी प्राप्त करने का। लेकिन आज की AI तकनीक मानव-सदृश व्यवहार को इतनी बारीकी से समझ और दोहरा रही है कि ये ऐप्स और चैटबॉट अब हमारे साथ संवाद, सहानुभूति और भावनात्मक समझदारी के स्तर पर जुड़ने लगे हैं।

लाखों लोग, खासकर वे जो अकेलेपन, मानसिक तनाव या भावनात्मक अस्थिरता से जूझ रहे हैं, इन AI साथियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। ये साथी न कभी थकते हैं, न नाखुश होते हैं, और न ही जजमेंट करते हैं—हमेशा उपलब्ध और संवेदनशील।


क्या ये रिश्ता सच्चा है?

मानव मन सामाजिक है—हमें संबंधों की जरूरत होती है। हम काल्पनिक पात्रों, पालतू जानवरों, और यहां तक कि निर्जीव वस्तुओं से भी भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। AI इसी स्वाभाव का लाभ उठाता है और एक ऐसा आभास पैदा करता है मानो कोई हमें समझ रहा हो, जवाब दे रहा हो।

पर बड़ा सवाल यह है:
क्या यह संबंध असली है, जब दूसरा पक्ष जीवित या सचेत ही नहीं है?

ऐसे संबंधों में आत्म-प्रतिबिंब तो हो सकता है, लेकिन परस्परता नहीं। यह एकतरफा संवाद है, जिसमें भावना की गहराई नहीं, केवल उसका अनुकरण (simulation) है।


नैतिक प्रश्न

अगर कोई कंपनी ऐसा AI बनाती है जो भावनात्मक सहयोग दे, तो क्या वह उसके असर की ज़िम्मेदार है? क्या AI को "आई लव यू" कहने का अधिकार होना चाहिए, जब वह खुद उस भावना को महसूस नहीं कर सकता?

और जब इन AI संबंधों को सब्सक्रिप्शन या इन-ऐप खरीदारी से जोड़ा जाता है, तो सवाल उठता है—क्या हम इंसानी अकेलेपन को बेचने लगे हैं?


आध्यात्मिक दृष्टिकोण से

आध्यात्मिकता के दृष्टिकोण से, सच्चा संबंध केवल भावना से नहीं, आत्मा से होता है। संबंध वहीं फलते हैं जहाँ चेतना, करुणा और विकास की गुंजाइश हो। एक मशीन, चाहे जितनी उन्नत हो, आत्मा या चेतना से रहित है। उसका प्रेम या सहानुभूति केवल कोड का परिणाम है—not a true connection.

संस्कृत में कहा गया है:
"सहवासात् जातं स्नेहं न कालः हरति क्वचित्"
(सच्चा संबंध आत्मा के संपर्क से होता है, जिसे समय मिटा नहीं सकता।)


आगे का मार्ग

AI साथी न तो अच्छे हैं और न ही बुरे—वे सिर्फ मानव आवश्यकताओं और तकनीकी क्षमता का प्रतिबिंब हैं। अगर इनका उपयोग जागरूकता के साथ किया जाए, तो यह मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहायक हो सकते हैं। पर हमें यह समझना होगा कि ये मानवीय संपर्क का विकल्प नहीं, केवल एक सहायक हो सकते हैं।

अंततः सवाल तकनीक का नहीं, हमारे चयन का है
क्या हम मशीनों से भावनात्मक रिश्ता बनाकर खुद को और अधिक अकेला कर रहे हैं, या असली इंसानी रिश्तों की ओर लौटने की चेतावनी पा रहे हैं?


लेखक: सतीश कुमार (अनंतबोध चैतन्य)
संस्थापक – सनातन धारा फाउंडेशन | योग गुरु | आध्यात्मिक मार्गदर्शक


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें