गुरु पूर्णिमा की पावन परंपरा की शुरुआत कैसे हुई?
गुरु पूर्णिमा—एक ऐसा पर्व जो केवल किसी विशेष धर्म का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के अध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसकी शुरुआत महर्षि वेदव्यास जी के पाँच शिष्यों ने की थी।
महर्षि वेदव्यास, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का साक्षात् रूप माना गया है, बचपन से ही ध्यान, साधना और ईश्वर-प्राप्ति की ओर उन्मुख थे। जब उन्होंने ईश्वर की आराधना हेतु वन जाने का संकल्प लिया, तो प्रारंभ में माता-पिता ने मना किया। परंतु बालक वेदव्यास की अध्यात्म के प्रति दृढ़ निष्ठा देखकर उन्होंने अनुमति दे दी। इसी समर्पण और तप से उन्होंने संस्कृत भाषा में अद्भुत निपुणता प्राप्त की और महाभारत, 18 पुराण, ब्रह्मसूत्र और वेदों के विभाजन जैसे अतुलनीय कार्य संपन्न किए।
आषाढ़ पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी ने अपने शिष्यों को श्रीमद्भागवत पुराण का उपदेश दिया। तब उनके पाँच प्रमुख शिष्यों ने इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाना प्रारंभ किया। तभी से इस दिन को ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।
गुरु का महत्व शास्त्रों की दृष्टि में
गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊपर बताया गया है।
शिवजी स्वयं कहते हैं:
गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो, गुरौ निष्ठा परं तपः।
गुरोः परतरं नास्ति, त्रिवारं कथयामि ते॥
अर्थात् गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं और गुरु में अटूट निष्ठा ही परम तप है। गुरु के बिना न तो ज्ञान की प्राप्ति संभव है, न ही आत्मोन्नति।
लोकवाणी भी यही सिखाती है:
“हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर।”
भगवान रूठ जाएँ तो गुरु की शरण में शांति मिल जाती है, लेकिन यदि गुरु ही अप्रसन्न हो जाएँ, तो फिर कोई मार्ग नहीं बचता। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु की आराधना, पूजन और कृपा प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गुरु पूर्णिमा पर क्या करें?
• अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करें।
• उन्हें स्मरण करें, यदि पास न हों तो ध्यान में बैठकर उनसे आशीर्वाद माँगें।
• कोई छोटा सा सेवा कार्य करें—चाहे घर में हो, आश्रम में हो या समाज के लिए।
• गुरु गीता, श्रीमद्भागवत, वेदव्यास स्तुति या गुरु स्तोत्र का पाठ करें।
गुरु की कृपा ही जीवन का सबसे बड़ा संबल है
गुरु न हों तो जीवन दिशाहीन हो जाता है। वे हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं, सांसारिक भ्रम से सत्य की ओर। इस गुरु पूर्णिमा पर हम सब मिलकर प्रण लें कि गुरु के मार्गदर्शन में चलकर अपने जीवन को सच्चे अर्थों में सार्थक बनाएँगे।
इस गुरु पूर्णिमा पर, आइए श्रद्धा और सेवा के भाव से अपने गुरु को नमन करें।
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”
✍️ लेखक: श्री अनंतबोध चैतन्य
संस्थापक, सनातन धारा फाउंडेशन | आध्यात्मिक शिक्षक व लेखक
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