शनिवार, 14 मई 2022

ब्रह्मलीन स्वामी विश्वदेवानंद जी का दशम निर्वाणमहोत्सव


पूज्य पाद ब्रह्मलीन पूर्व निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विश्वदेवानंद जी का निर्वाण महोत्सव श्री यंत्र मंदिर में धूमधाम से मनाया गया वर्तमान आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाण पीठाधीश्वर राजगुरु बीकानेर स्वामी विशोकानंद भारती जी के सा सानिध्य में तथा अध्यक्षता में पूर्व आचार्य श्री का निर्वाण महोत्सव श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया इस अवसर पर 13 अखाड़ों के महामंडलेश्वर महंत श्री महंत एवं पंच परमेश्वर संत सम्मेलन में श्रद्धांजलि के लिए सम्मिलित हुए दिल्ली पंजाब कोलकाता आदि स्थानों से अनेका अनेक भक्तों ने श्रद्धा से महोत्सव में भाग लिया इस अवसर पर निर्वाण पीठाधीश्वर स्वामी विवेकानंद भारती जी महाराज ने कहा कि विश्व गुरु भारत की संस्कृति विश्व कल्याण की भावना से ओतप्रोत रही है। इसलिए हमारे पूज्य गुरुदेव ने संन्यास देते समय स्वामी जी का नाम विश्वदेवानंद रखा था । तदनुसार गुरु और गोविंद की भावना को ध्यान में रखकर  स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज ने अपने जीवन में विश्व भ्रमण विश्व कल्याण के लिए कार्य किया था साथ ही उन्होंने विश्व के कल्याण के लिए विश्व कल्याण संस्थान की स्थापना की । स्वामी जी महाराज की विश्व विश्व कल्याण की भावना से  प्रचार प्रसार से स्वामी विवेकानंद जी महाराज के उद्देश्य स्मरण हो आते हैं।  हमारे काशी के विश्वनाथ संपूर्ण विश्व के कल्याण करने वाले हैं हमारी मां विश्वेश्वरी है हमारे भगवान सूर्यनारायण विश्व के देवता है इसलिए श्री यंत्र मंदिर विश्वकल्याण साधनायतन से सदैव विश्व कल्याण  भावना के संदेश प्रचारित प्रसारित होते रहे हैं साथ ही विशोकानंद भारती जी महाराज ने कहा  कि पहले स्वामी विश्वदेवानंद जी शरीर में निवास करते थे अब वे संपूर्ण शांकरी परंपरा में ब्रह्म स्वरूप होकर के समष्टि के लिए उपयोगी हो रहे हैं।  इस अवसर पर स्वामी जी के वरिष्ठ शिष्य अनंतबोध चैतन्य जी ने लिथुआनिया यूरोप से ही महाराज जी की चरण पादुका का पूजन कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशो पर चलने का संकल्प किया। 
वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि उनका कर्तृत्व वक्तृत्व और नेतृत्व शंकरी परंपरा के अनुकूल था और उनके कार्यकाल में श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी साधु समाज में मुखर रहा है। इस अवसर पर श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा के आचार्य महंत श्री ज्ञानदेव सिंह जी ने कहा कि उनके कार्यों में योग माया का संयोग आशीर्वाद और आलोक अनुभव होता था मैं विशेष समय निकाल कर के उनके सानिध्य का आनंद लेता था वास्तव में वे राजराजेश्वरी के पुत्र  थे भगवती की उपासना का उन्होंने एक नया मार्ग प्रशस्त किया । इस अवसर पर महामंडलेश्वर गिरधर गिरी जी महाराज ने कहा कि हमारे हमारे आचार्य श्री हमें शांकरी परंपरा का एक नया आलोक प्रदान कर गए हैं उनका चलना बोलना व्यवहार करना और अपने अनुयायियों के साथ प्रेम रखना हम सबके लिए एक उदाहरण है इस अवसर पर उदासीन अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद जी महाराज ने कहा कि मैंने अपने जीवन में उनके आध्यात्मिक आलोक को अनुभव किया था उनकी वाणी में उनका अनुभव बोलता था उनकी वाणी में भाष्यकार शंकराचार्य जी का भाष्य बोलता था और उनकी वाणी में सरस्वती समन्वित हो करके वाणी का श्रृंगार करती थी स्वामी जी महाराज हमारे बीच नहीं रहे परंतु उन्होंने मानव कल्याण और विश्व कल्याण के अनेक प्रकल्प हमारे कल्याण के लिए छोड़ गए हैं अब सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके उद्देश्यों को कार्यान्वित करते हुए संस्कारित और शृंगारित किया जाए मैं उनकी पावन स्मृति में श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं । श्रद्धेय महामंडलेश्वर स्वामी विशेश्वरानंद जी महाराज रोहतक वालों  ने कहा कि मैं जो कुछ भी आज हूं गोविंद मठ से लेकर के उनकी कृपा से हूं अध्ययन काल से लेकर मध्य साधना काल में और अंत में उनकी कृपा से वर्तमान आचार्य जी की कृपा प्राप्त कराने में महाराज श्री का संकल्प ही मेरा सहयोगी रहा है। विलक्षण महापुरुष ने लोगों को अध्यात्म से अपनी और आकर्षित करते हुए सेवा शिक्षा संस्कार साधना और सुरक्षा के संस्कार देते हुए उन्होंने सबको अपने जैसे बनाने का मानस रखा था आज श्रेय और प्रेय के रूप में प्रसाद प्रदान करने वाले आचार्य श्री के पावन चरणों में मेरी श्रद्धांजलि भावांजलि। इस अवसर पर सर्दी महामंडलेश्वर स्वामी जय देव आनंद जी महाराज ने योगीराज जी ने कहा कि कुंभ मेला में सभाओं में और अन्य कार्यों में हम अपने महामंडलेश्वर आचार्य श्री से गौरवान्वित होते थे और उनके प्रवचनों से लाभान्वित होते हुए प्रेरणा प्राप्त करते थे मेरी भी उनके पावन चरणों में श्रद्धांजलि भावांजलि समर्पित हैं।  इस अवसर पर स्वामी देवानंद ने कहा कि बरसों से जुड़े रहने के कारण मैंने महाराज श्री का स्वभाव अनुभव किया कि महाराज श्री फौंडेशन के साथ किसी भी व्यक्ति के कल्याण की बात सोचते थे और एक गुरु और पिता के समान संसार से ऊपर उठने का सहयोग करते थे उनकी उदारता उनकी साधुता और उनका पुरुषार्थ सदैव मनुष्य के लिए प्रेरणा का उदाहरण होता था हमने भी उनसे कर्तृत्व वक्तृत्व और नेतृत्व का संस्कार प्राप्त करते हुए अनुकरण किया था आज इस निर्वाण  महोत्सव पर हम उनकी विभूतियों का स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि भावांजलि अर्पित करते हैं पठानकोट से पधारे हुए महंत श्री शिवात्म चैतन्य जी महाराज ने कहा कि गुरुदेव की निजी उपासना और साधना का मैंने शिष्य होकर अनुभव किया उनमें एक गुरु के सच्चे लक्षण प्राप्त होते थे अपनी उदारता से उन्होंने आज हमें भी कुछ बोलने लायक कुछ करने लायक और कुछ समझने लायक बनाया उनका ऋण हम चुका नहीं सकते पर उनकी चरण चिन्हों पर चलने का अनुकरण करने का प्रयास करते हैं उनकी कृपा ही हमें अध्यात्म में समाज सेवा में और समाज सुधार में सफल करेगी इन्हीं शब्दों के साथ महाराज के पावन अस्तित्व में श्रद्धांजलि और भावांजलि इस अवसर पर कोलकाता से पधारे हुए श्रीमान लक्ष्मीकांत तिवारी जी ने महाराज की समाधि पर सभी के साथ पूजन अर्चन और आरती की संतों का दर्शन पूजन आदि के द्वारा सम्मान किया दिल्ली से पधारे हुए श्रीमान नरेश चड्ढा जी और श्रीमान रघुवीर शर्मा जी ने भाव पूर्वक संतों का सम्मान किया इस अवसर पर कोलकाता से पधारे हुए दीपक मिश्रा जी मुकेश शर्मा जी और अशोक तिवारी जी आदि ने महाराज की प्रतिमा का पूजन किया संतों का सम्मान किया सभी भक्तों ने भाव से महाराज श्री को याद किया संत सम्मेलन के बाद संतों का आरती पूजा भेंट आदि के द्वारा इसमें पूजन किया।। अंत में सभी का आभार प्रकट करते हुए आचार्य श्री ने पधारे हुए महामंडलेश्वरों का  महंत पंच परमेश्वर और भक्तों का इस सभा की शोभा को बढ़ाने के लिए और सहयोग के लिए धन्यवाद प्रदान किया।।




शनिवार, 24 जुलाई 2021

What do you mean by guru Purnima



Guru Purnima 2021
Guru Purnima is a Hindu festival which is dedicated to spiritual and academic teachers. This is celebrated traditionally by Hindus and Buddhists for thanking their teachers. This is marked as the ritual concerning the guru, guru Puja. The principle of guru is remembered a thousand times more active on the day of Guru Purnima. The term guru is taken from two words ‘GU’ and ‘RU’. The Sanskrit meaning of the word ‘GU’ means darkness or ignorance. The word RU means remover of the darkness. The one who removes darkness is known as the guru. People believed that Gurus needed to be the most necessary part of their lives. The disciples give Puja to pay respect to their guru.

It falls on the day of the full moon, Purnima which is in the month of Ashadh, June-July. As per the Indian national calendar and Hindu calendar, it falls in July. This year 2021 Guru Purnima is on 24th July. The festival is having more importance for Indian academics and scholars. They are celebrating this day by thanking their teachers as well as remembering their past gurus and scholars. Mainly this festival is celebrated by Buddhists for honoring the lord Buddha who gave his first sermon on this day at Sarnath, U.P. 


The Hindu people celebrate in the honor of the great Vyasa who is one of the greatest gurus in ancient Hinduism. He is a symbol of the guru- shishya tradition. Some people believe that Vyasa was not born on this day, but he started writing Brahma sutras on Ashaddha Sudha Padyami which ends on this day. Recitations are maintained and dedicated on this day. It is also known as Vyasa Purnima. Especially the festival is more common in all spiritual traditions in Hinduism, where it is a gratitude towards their teacher by his or her disciple. Hindu ascetics and monks give Puja to the guru during chetrum which is four months during the rainy season. When they are secluded they stay in one place. Some people give discourses to the public people. The students in Indian classical music follow the guru Shishya Parampara and they celebrate this festival around the world.
Hindu mythology
Krishna Dwaipayana Vyasa who is the author of Mahabharata was born on this day to Parashara and the fisherman’s daughter Satyavati. This day is treated as Vyasa Purnima. Veda Vyasa did the yeoman service for the cause of Vedic studies by taking all the Vedic hymns during their times, which divides them into four parts based on their sacrificial rites. He taught his four disciples named Palla, Vaisampayana, Jaimini, and Sumantu. By dividing and editing that he earned the honorific Vyasa. Mainly he divided the Veda into four: Rig, Yajur, Sama, and Atharva. The Puranas and their histories are to be of the 5th Veda. 
The full moon day in the month of Hindu named Ashad is observed as the auspicious day of Guru Purnima which is celebrated in the memory of great Vyasa. All the Hindu people are indebted to the ancient saint who divided into four Vedas and wrote the 18 Puranas, the Mahabharata, and Srimad Bhagavata. Vyasa also taught Dattatreya who is mentioned as the Guru of gurus.
Significance
On this day all the spiritual people and devotees worship Vyasa mainly in the honor of divine personage and all the disciples give a Puja for their respective Preceptor or the guru Devs. For farmers, this day is having more significance. The setting of much-needed rain as the advent of cool showers gives good fresh life in paddy fields. Also, many believe this day is good for starting their spiritual classes. The spiritual seekers intensify their spiritual Sadhana on this day. 

The period Chaturmas which is of four months begins from this day. In the early past wandering spiritual gurus and their disciples used to settle at a place for studying and discourse in Brahma sutras which is composed by Vyasa and engage them in the Vedantic lessons.

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

स्वामी श्रीशारदानन्दगिरीजी को भावभीनी श्रद्धांजलि



|| दिवङ्गतेभ्यश्श्रीशारदानन्दगिरिस्वामिभ्यश्श्रद्धाञ्जलि:||

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भावैर्यं हृदयं स्मरेन्मधुमयं सौख्यस्मृतिं स्वामिनं

चित्तं नैव जहाति यस्य महिमाप्लावप्रसन्नं रतिं

दिव्यप्रीतियुजामिवाच्युतहरेर्भक्तौ च यो मज्जितो

ब्रह्मत्त्वं स गतोऽद्य मद्गुरुवरश्श्रीशारदानन्दन:||१||


जिन मधुमय, सुखसम्पन्न स्मृति वाले, स्वामी जी को हमारा दिल भावुक होकर स्मरण करता है, जिनकी महिमा में डूबकर प्रसन्न मन जिनकी मोहब्बत को छोड़ना ना चाहे, जिनका प्रेम ही दिव्य होता है ऐसे लोगों की तरह , कभी नष्ट ना होने वाले हरि की भक्ति में ही जो डूब चुके हैं, ऐसे हमारे गुरुवर श्री शारदानंद गिरि जी आज ब्रह्मलीन हो गए।


यच्चैवाद्य महात्मनां बहुविधं सङ्घात्मकं ख्याप्यते

तेष्वेकं च 'निरञ्जनी'ति भवताद्वैराग्यभाजां सुखं

तस्मिन् श्रीलनरोत्तमाद्गुरुवराद्दीक्षां प्रलभ्याप्यसौ

धर्मप्राणमयप्रयाग-परमानन्दाश्रमी राजते||२||


जो आज संन्यस्त महात्माओं के संघ स्वरूप बहुत से अखाड़े हैं उनमें से एक निरंजनी अखाड़ा भी है इसी अखाड़े के अंतर्गत श्रीमान् नरोत्तमानंद गिरि जी महाराज से दीक्षा लेकर, स्वामी शारदानंद गिरी जी ने धर्म के प्राण स्वरूप नगर प्रयागराज में परमानंद आश्रम की स्थापना की।


अध्यात्मैकरुचिश्शुचिर्वररुचिग्रन्थे मुदा संरत:

काशीपण्डितसङ्घलब्धबहुसम्मानश्च सद्भिर्वृतो

देवीवाचमथापि विश्वपटले य: ख्यापयेत्संयमी

त्यक्त्वा संसृतिमद्य विष्णुजगति व्यापद्यतेति श्रुतम्||३||


एकमात्र अध्यात्म में रूचि वाले , अत्यंत पवित्र , वररुचि के ग्रंथ का अध्ययन करने वाले,काशी पंडित परिषद् से बहुत सम्मान प्राप्त करने वाले , सज्जनों से घिरे रहने वाले, संयमी तथा संस्कृत को पूरे संसार में फैलाने वाले, आज इस अलौकिक संसार को छोड़कर भगवान विष्णु के लोक को पधार गए!


हे स्वामिंस्तव धर्मपूर्णपदवी अक्ष्णोर्ममास्ते सदा

हे स्वामिंस्तव कर्मभूमिरिव मे नेत्राग्रगा वर्तते

हे स्वामिंस्तव मर्मजातगुणसद्भावाश्च वित्तानि नो

हे स्वामिंस्तव सत्कथा हि जगता प्रेम्णा हृदा स्मर्यते||४||


हे स्वामी जी आपकी धर्म पूर्ण पदवी सदा मेरी आंखों में बसी है । हे स्वामी जी आपकी समस्त कर्म भूमि मेरी आंखों के आगे नाच रही है। हे स्वामी जी! आपके हृदय में बसने वाले सद्भाव, जिनको हमने ग्रहण किया, वही हमारी जमा-पूंजी हैं। हे स्वामी जी आपके जीवन की सच्चरित्र रूपी कथा इस संपूर्ण संसार के द्वारा हार्दिक भावों से सदा ही स्मरण करी जाएगी।


के धर्माय कतीह जीवनमहो जीवन्ति हात्त्वा गृहं

के वेदाय समर्पिता भुवि जनाश्शास्त्राय गोभ्यस्तथा

हैषामेकमिदं समुत्तरमहं तुभ्यं ददामीति रे

सन्तस्सन्ति यथा दिवङ्गतगुरुश्श्रीशारदानन्दन:||५||


ऐसे कितने हैं, और कौन हैं, जो अपने घर-बार को छोड़कर सिर्फ धर्म के लिए ही जीवन जीते हैं?? ऐसे कितने लोग हैं, और कौन हैं , जो वेद-शास्त्र पढ़ने के लिए जीवन जीते हैं तथा गौ-सेवा के लिए समर्पित हैं??अरे भाई! इन सब बातों का एक ही उत्तर मैं तुम्हें आज देता हूं - वह हमारे संत समाज के लोग हैं! (या इस प्रकार के जो लोग हैं वह भी संत ही हैं) और इन्हीं संतो में एक हैं - श्रीशारदानंद गिरी जी महाराज।


श्रीशारदानन्दगिरिर्महात्मा 

सदैव पूज्यश्चरितव्यरूप:

अनन्तबोधैरवबुध्य सन्तं

हिमांशुगौडैर्व्यरचीह भावै:||


श्रीशारदानंद गिरि जी महाराज, सदैव पूज्य और आचरण करने योग्य है धर्मरूप जिनका, इस प्रकार के महात्मा थे! स्वामीश्रीअनंतबोध चैतन्य जी द्वारा उन संत के विषय में जानकार तथा प्रेरणा पाकर,   हिमांशु गौड़ ने अपने भावों द्वारा यह श्रद्धांजलि स्वामी जी के लिए समर्पित की है।


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हिमांशुर्गौड:

०८:४५ रात्रौ,

३०/०६/२०२१

शुक्रवार, 7 मई 2021

Nirvana Tithi of Pujya Gurudev Brahmalin Swami Vishwadevananda Puri ji




आज हमारे प्रिय गुरुदेव ब्रह्मलीन स्वामी विश्वदेवानंद पुरी जी की पुण्यतिथि (पुण्यतिथि) है, जिन्होंने 7 मई 2013 को शरीर त्याग दिया था।
आप सबसे अच्छे गुरु थे, और मुझे आपके शिष्य होने पर बहुत गर्व है। मुझे विश्वास है कि आपका मार्गदर्शक हाथ हमेशा मेरे कंधे पर रहेगा। मनुष्य नश्वर है लेकिन उनके लिए प्रेम अमर है। हालाँकि आप हम सबके बीच नहीं हैं लेकिन आपकी याद हमारे मन में बसी हुई है।
एक बार आपने कहा था कि हमें साधु का जन्मदिन नहीं मनाना चाहिए, हमें उनकी पुण्यतिथि मनानी चाहिए। जो अपनी समकालीन व्यवस्था के साथ भावी पीढ़ियों के लिए अपने कर्तव्य बोध और प्रयोग के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण उद्देश्यों और मूल्यों की विरासत प्रस्तुत करता है। साधु मर कर भी कुछ देता है। इसलिए साधुओं की पुण्यतिथि को प्रेरणा देने और जीवन को उत्सव की तरह जीने के पर्व के रूप में देखा जाता है। आपके श्री चरणों में मेरा विनम्र प्रणाम।

सर्वतन्त्रस्वतन्त्राय धर्मशास्त्रप्रचारिणे

निर्वाणपीठराजाय वेदान्तगुरवे नमः ।। 1

जो सभी प्रकार के तन्त्रों (नियमादि विधि-निषेधों) से स्वतन्त्र हैं, धर्म और शास्त्र का प्रचार करने वाले, निर्वाण-पीठाधीश्वर, वेदान्त दर्शन का ज्ञान देने वाले गुरु के लिए नमस्कार है।

कर्मनिष्ठं प्रसन्नं तं निजानन्दस्वरुपिणम्

अज्ञानतिमिरध्वंसं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 2

उन कर्मनिष्ठ, सदा प्रसन्न रहने वाले, आत्मानंदी संदर्भ वाले, अज्ञान रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाले, श्रीगुरुदेव महाराज को मैं बार-बार प्रणाम करता हूं।

ज्ञाननिष्ठं धर्मनिष्ठं द्वन्द्वातीतं यतेन्द्रियम्।

प्रणमामि गुरुं शैवं ह्यज्ञताध्वान्तनाशकम्॥3

ज्ञान और धर्म में धारण करने वाले, सभी द्वन्द्वों से परे, इंद्रियों का संयम धारण करने वाले, अज्ञता रूपी तिमिर(अन्धकार) को नष्ट करने वाले, शैव (कल्याणमय) गुरुदेव भगवान को मैं बारंबार प्रणाम करता हूं।

शरण्यं सर्वभक्तानां ब्रह्मानन्दस्वरूपकम् ।

प्रणमामि गुरुं दिव्यं मूढतातिमिरापहम्॥4

सभी भक्तों को शरण देने वाले, ब्रह्मानंद-स्वरूप, मूढ़ता रूपी अंधकार को झाड़ देने वाले, दिव्य गुरुदेव को प्रणाम करता हूं।

श्रेयस्कामं महाभागं मानातीतं यतीश्वरम् ।

वन्देऽहं श्रीगुरुं देवं मोहशोकविनाशकम्॥ 5

(सभी का) श्रेयसी (कल्याण) चाहने वाले, महत्वपूर्ण पद को भजने वाले, मान-अपमान से परे, महात्माओं में श्रेष्ठ, मोह, शोक आदि का विनाश करने वाले, देवस्वरूप गुरु जी को बारंबार प्रणाम है।

जपध्याने रतं नित्यं भयक्रोधादिवर्जितम् ।

मायाजालविनिर्मुक्तं प्रणमामि मुहुर्मुहु:॥ 6

जप और ध्यान में रहने वाले, भय,क्रोध आदि से वर्जित,माया के जाल से मुक्त, गुरुदेव को मैं प्रणाम करता हूं।

लोभमोहपरित्यक्तमाशापाशविवर्जितम् ।

अज्ञानध्वंसने दक्षं प्रणमामि महागुरुम्॥ 7

लोभ व मोह को त्याग दिया है, ऐसे, आशा के पाश (बन्धन) से मुक्त, अज्ञान को नष्ट करने में गंभीर दक्ष, महागुरु जी को मैं प्रणाम करता हूं।

विश्वदेवं गुरुं वीरं साक्षाच्छङ्कररूपिणम् ।

अज्ञाननाशकं चैवं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 8

विश्वदेव संदर्भ, वरण करने योग्य, साक्षात् शङ्कर संदर्भ, अज्ञान के निवारक, गुरु जी को मैं बारंबार प्रणाम करता हूं।

गुरुस्तोत्रमिदं पुण्यं ज्ञानविज्ञानदायकम् ।

मया विर्च्यते ह्येतदन्तब्रह्मचारिणा ॥

यह गुरुदेव महाराज का पुण्य स्तोत्र, ज्ञान और विज्ञान को देने वाला है यह मेरे (अनन्त) के द्वारा विरचित है।

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

The Nava-Durga Upasna (नव दुर्गा उपासना )





Shailaputri


Goddess Durga‘s first form in the Nava-Durga series of divine forms, amongst the nine, is Shailaputri. She was nomenclature as Shailaputri after being born in the house of the king of the mountains, Himalaya. In this mould, the mother is seen holding a trident in her right hand and a lotus in her left and she is mounted on an ox. In the past life, she was the daughter of Daksha, the son of Lord Brahma. She was known as Sati then. As the daughter of Daksha, she was married to the God of Gods, Mahadeva. Daksha once arranged for a ceremony of the holy fire (Yagna), and chose not to invite his daughter and son-in-law. Sati was restless to join the ceremony at her father‘s place and even defied her husband‘s advice of not attending the Yagna without an invitation. Ongoing uninvited to the ceremony, she felt that everyone was giving her a cold shoulder except her mother who greeted her with a hug. Her siblings too were no exception and were sarcastic in their remarks. The guests too present at the function were uttering disrespectful comments about her husband. To her surprise, her father too was harsh and rude in his approach. She was dejected and so heartbroken that she burnt herself to ash in the holy fire. Shiva, on hearing this incident was enraged and ordered his followers to immediately demolish the Daksha Yagna. After burning herself to death, Sati was reborn as the daughter of the king of the mountains, Himalaya and became known as Shailaputri. Thus amongst all the nine forms of Devi Durga, Shailaputri is the most powerful and glorified of all. She is worshipped on the first day of the Navratri celebrations. According to the Upanishads, this form of Durga broke the pride of the Gods by assuming the mould of Haimabati.
Brahmacharini -
Durga‘s second appearance is in the form of Brahmacharini. Here "Brahma" means meditation. That is, the Goddess is the meditator or a practitioner of penance. She is seen here holding a string of rosary beads in her right hand and a Kamandalu (an urn containing holy water) in her left hand. In her previous life, when she was reborn as the daughter of Himalaya, she performed severe penance to have Mahadeva as her husband. The sage God Narada advised her to take up meditation to win Shiva. For undergoing strict meditation she was known as Brahmacharini or Tapasyacharini. Ignoring the beating sun and thundershowers, she began a three-hundred-year meditation living only leaves that fell on the forest floor. She furthered her penance making it even stricter by relinquishing food and water for another few hundred years. As she gave up eating leaves she is also referred to as "Aparna". Practising this painstaking contemplation she became weak and skinny. Unable to withstand the plight of her daughter her mother, Manoka requested her to give up her resolution. Shocked at the sight of Durga she exclaimed "u" and "ma". In Sanskrit u is a word of address, and ma means don't or not wanted). That is why Durga is also called "Uma". On the other hand, overwhelmed by Durga‘s devotion and perseverance, all the Gods and sages in heaven were placated. At last, grandfather Brahma, pleased with Devi‘s austerities made an oracle, "O maiden! No one could achieve or endure the penance you have performed to date. I am captivated by your meditation and devotion. Your wish will be fulfilled and you will certainly have Shiva as your husband. You may now return home and rest. Your father will come soon to take you". This form of Durga gives the devotees everlasting success. Worship of this appearance enriches the faculties of sacrifice, honesty and self-discipline. In times of utter distress, the worship of this form gives success and the willpower to come out victorious. This form of Durga is worshipped on the second day of the Durga puja.
Chandraghanta -
Mother Durga‘s third form is known as Chandraghanta. This name finds its justification in the half-moon seen on the temple of the Goddess that resembles a bell. The deity has ten arms. The ten hands of the Goddess brandish ten different weapons. Mounted on a lion this form of the mother is worshipped on the third day of the Navratri celebration. It is believed that a devotee who manages to earn Devi's blessings can set himself free from his sins and hazards that he has committed or may face in his life. The devotee gains the power to sense the supernatural, to see it and even smell the eternal fragrance. He is also able to distinguish the otherwise inaudible celestial sounds. This is the time when the devotee should be alert. Although the deity is always envisaged in the fearsome mood of demolishing evil, her appearance always spreads a calm and eternal peace all around. Mother Chandraghanta‘s devotees spread peace and happiness wherever they go. We should all wholeheartedly worship the mother with a devoted soul. Worship of the deity helps one eliminate the sorrow, hazards and dangers in one's life.

Kushmanda -

The fourth appearance of the Devi is in the form of Kushmanda. The mother gets the name as she created the universe with a smile. When there was darkness everywhere and there was no existence of the universe she created the universe with a smile. She is believed to be the source of eternal power. The Goddess has eight arms and that is why she is also known as "Ashtabhuja". The deity‘s seven hands hold the holy urn (Kamandul), a bow, an arrow, a lotus, a pot containing wine, a disc and a club. The eighth hand holds a string of rosary beads that is believed to provide success and prudence. Pumpkin is termed "Kushmandam" in Sanskrit. Amongst the sacrificial vegetables that are offered in the worship of the Goddess (Naivadhya), pumpkin is the most important vegetable with which Devi Kushmanda is most placated. That is why she is named "Kushmanda". She is worshipped on the fourth day of the Navratri celebration abiding by the rituals that are described in the Sashtra and the Purans. Worship of this form of the Devi exterminates sorrow and diseases and augments life, fame and strength. Mother Goddess is appeased with the slightest of devotion and if anyone whole-heartedly worships the deity he will certainly gain her favour.

Skandamata -

The fifth form of the mother is known as Skandamata. Kumar Kartik‘s other name is Skanda. As Devi Durga is the mother of Kartik, she is referred to as "Skandamata". This form of the deity has four arms. The mother is seen holding her son Skanda in the top right hand and she is holding a lotus in her lower hand. The top left hand is positioned in a blessing gesture and the other hand holds a lotus. The goddess is fair and sits on a lotus. That is why the Devi is also known as "Padmasana". Here she is seen mounted on a lion. If anyone worships her wholeheartedly, she fulfils the wish of the devotee.

Katyayani

Katyayani is the sixth form of Devi Durga. Sage Katyaayan was the son of the great sage Kat. Sage Kattayan was born in the "Katya" clan. He was engaged in rigorous penance and worship of "Bhagavati Paramba". His prayer was all about requesting the mother to appear in his household as his daughter. Mother Bhagavati obliged him. After some time, when, the world was terrorized by Mahishasura, Lord Brahma, Lord Vishnu and Lord Shiva with their divine powers gave form to a Goddess to combat asura and destroy him. Katyaayan was the first to worship her and that is why she is known as "Devi Katyayani". It is mentioned in the Shastra that Katyaayani was born as the daughter of the sage Kattayan. Taking birth on the fourteenth day of the new moon in "Ashwin" (September-October), she accepted the worship of the sage Kattayan on Saptami, Ashtami and Navami and ultimately slew Mahishasura on Dashami. The deity‘s complexion is as bright as gold. She has four hands. The top right hand is positioned in a gesture of providing courage and the other hand is positioned in a gesture of rendering a boon. The top left hand is holding a sword and the other holding a lotus. The Goddess is mounted on a lion and she is worshipped on the sixth day of the Durga puja. If one worships the deity with a pure soul he attains success in religion, wealth, passion and salvation. Disease, sorrow and fear are eliminated. Worship of this deity helps one to emancipate himself from the sin he may have committed over the cycle of his births and rebirths. We should all devote our prayers to the mother to lead a better life.

Kaalratri -

Mother Goddess's seventh form is "Kaalratri". Her complexion is as dark as the night. Her cascading hair is let loose and she is seen wearing a garland that radiates light as bright as lightning. She is fearsome with her menacing three eyes, radiating fire. She is mounted on an ass. She has four hands, of which, the top right hand is in a gesture of rendering boon to all. The other hand on her right is rendering fearlessness. The top left hand is holding an iron dagger and the other hand is holding a sickle. Although she has a menacing appearance, she always delivers favourable results and her devotees need not fear her manifestations are holding an iron dagger and the other hand is holding a sickle. Although she has a menacing appearance, she always delivers favourable results and her devotees need not fear her manifestations. She is worshipped on the seventh day of the Durga puja. Devi Kaalratri destroys evil. If anyone whole-heartedly pleads of saving him from any impending danger, she protects him. As and when the Goddess is called, the evils instantaneously disappear from the place. By the Goddess's grace, the devotees overcome their fear of fire, water, animals and foes.

Mahagouri -

The Mother's eighth form is known as "Maha Gauri". Her complexion is totally white. Her garments are also white. She is mounted on an ox and has four hands. Her top right hand is rendering fearlessness and the hand below holds a trident. The top left hand holds a "Damru" and the hand below is in a gesture of giving a boon. To have Shiva as her husband she went through rigorous penance in the form of "Parvati". As a result of this arduous meditation, her complexion turned dark. Lord Shiva, pleased with the devotion of Parvati, bathed her in the holy water of the Ganges. As she bathed in the holy water she turned fair. From then onwards she became known as "Mahagouri". She is worshipped on the eighth day of the Durga puja. The devotee is benefits on all fronts as he worships the deity. Due to the Goddess's grace, the devotee attains supernatural salvation, he is relieved from all his pains and fatigue and can set himself free from his previous sins. He is never faced with sorrow and poverty and never commits any sin. The devotee wins pure and endless virtue.



Siddhidatri -

Durga's ninth mould is the form of "Siddhidatri". She delivers success. according to "Markendeo Puran" there are eight types of success, such as "Anima", "Laghima", "Prapti", "Prakashya", "Mahima", "Ishhattya", "Bashittya", "Sarvakaam Bashayita" and "Sarvagyata". But in the "Sri Krishna Janmakhanda" of the "Brahmavaivarta Puran", there are another ten types of success such as "Doorsravan", "Parakayaprabeshan", "Baksiddhi", "Kalpavrikshattwa", "Srishti", "Samharkaransamartha", "Amarattwa", "Sarvanaykattwa", "Bhavna" and "Siddhi". Thus there are eighteen types of successes. Mother Siddhidatri is capable of rendering all these forms of success to her devotees. According to the Purans, Lord Shiva achieved salvation by the grace of this deity. The deity is seen sometimes sitting on a lotus and sometimes mounted on a lion. She is four-armed. The lower right hand of the Goddess holds a disc and the upper right hand holds a club. The lower left hand holds a conch shell and the upper hand holds a lotus. She is worshipped on the ninth day of the Durga puja. She is the ultimate form of the Goddess among the Navadurga. After having performed the worship of the other forms of the Goddess according to the rituals mentioned in the Sashtra, the devotee can then start the worship of this deity. Those who worship the Goddess with full devotion are bestowed with all the success. She has been unified with the forces of sustenance and salvation of the great Lord Vishnu.