सोमवार, 7 जुलाई 2025

गुरु पूर्णिमा: श्रद्धा, समर्पण और ज्ञान का पावन उत्सव



गुरु पूर्णिमा की पावन परंपरा की शुरुआत कैसे हुई?

गुरु पूर्णिमा—एक ऐसा पर्व जो केवल किसी विशेष धर्म का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के अध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसकी शुरुआत महर्षि वेदव्यास जी के पाँच शिष्यों ने की थी।

महर्षि वेदव्यास, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का साक्षात् रूप माना गया है, बचपन से ही ध्यान, साधना और ईश्वर-प्राप्ति की ओर उन्मुख थे। जब उन्होंने ईश्वर की आराधना हेतु वन जाने का संकल्प लिया, तो प्रारंभ में माता-पिता ने मना किया। परंतु बालक वेदव्यास की अध्यात्म के प्रति दृढ़ निष्ठा देखकर उन्होंने अनुमति दे दी। इसी समर्पण और तप से उन्होंने संस्कृत भाषा में अद्भुत निपुणता प्राप्त की और महाभारत, 18 पुराण, ब्रह्मसूत्र और वेदों के विभाजन जैसे अतुलनीय कार्य संपन्न किए।

आषाढ़ पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी ने अपने शिष्यों को श्रीमद्भागवत पुराण का उपदेश दिया। तब उनके पाँच प्रमुख शिष्यों ने इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाना प्रारंभ किया। तभी से इस दिन को ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।

 गुरु का महत्व शास्त्रों की दृष्टि में

गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊपर बताया गया है।

शिवजी स्वयं कहते हैं:

गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो, गुरौ निष्ठा परं तपः।

गुरोः परतरं नास्ति, त्रिवारं कथयामि ते॥

अर्थात् गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं और गुरु में अटूट निष्ठा ही परम तप है। गुरु के बिना न तो ज्ञान की प्राप्ति संभव है, न ही आत्मोन्नति।

लोकवाणी भी यही सिखाती है:

“हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर।”

भगवान रूठ जाएँ तो गुरु की शरण में शांति मिल जाती है, लेकिन यदि गुरु ही अप्रसन्न हो जाएँ, तो फिर कोई मार्ग नहीं बचता। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु की आराधना, पूजन और कृपा प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 गुरु पूर्णिमा पर क्या करें?

अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करें।

उन्हें स्मरण करें, यदि पास न हों तो ध्यान में बैठकर उनसे आशीर्वाद माँगें।

कोई छोटा सा सेवा कार्य करें—चाहे घर में हो, आश्रम में हो या समाज के लिए।

गुरु गीता, श्रीमद्भागवत, वेदव्यास स्तुति या गुरु स्तोत्र का पाठ करें।


गुरु की कृपा ही जीवन का सबसे बड़ा संबल है

गुरु न हों तो जीवन दिशाहीन हो जाता है। वे हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं, सांसारिक भ्रम से सत्य की ओर। इस गुरु पूर्णिमा पर हम सब मिलकर प्रण लें कि गुरु के मार्गदर्शन में चलकर अपने जीवन को सच्चे अर्थों में सार्थक बनाएँगे।

इस गुरु पूर्णिमा पर, आइए श्रद्धा और सेवा के भाव से अपने गुरु को नमन करें।

“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”

✍️ लेखक: श्री अनंतबोध चैतन्य

संस्थापक, सनातन धारा फाउंडेशन | आध्यात्मिक शिक्षक व लेखक

रविवार, 6 जुलाई 2025

देवशयनी एकादशी: एक आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ


देवशयनी एकादशी: जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं, और पृथ्वी को मिलती है आत्मचिंतन की प्रेरणा

देवशयनी एकादशी, जिसे हरिशयनी या आषाढ़ी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र व्रतों में से एक है। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है और इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जो आध्यात्मिक अनुशासन, संयम और तपस्या का समय होता है।

देवशयनी एकादशी का धार्मिक महत्व

देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व भगवान विष्णु के योगनिद्रा में प्रवेश से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं। इस दौरान सृष्टि के संचालन का दायित्व भगवान शिव और अन्य देवताओं पर आ जाता है। यह समय प्रकृति के चक्र के अनुसार भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मानसून का आगमन होता है, जिससे जीवन में नयी ऊर्जा का संचार होता है।

देव शयनी एकादशी की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार राजा मांधाता ने भगवान विष्णु से पूछा कि वह ऐसा कौन सा व्रत करें जिससे उन्हें और उनकी प्रजा को सुख-समृद्धि मिले। भगवान विष्णु ने उन्हें देव शयनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी।

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस दिन से चार महीने तक विश्राम करने का निर्णय लिया ताकि भक्त उनकी भक्ति में अधिक समय बिताएं और प्रकृति को भी संतुलन में लाने का अवसर मिले। इस दौरान भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि सही समय पर सही उपाय करने से संकट का समाधान संभव है। देवशयनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

देवशयनी एकादशी का व्रत और पूजा विधि

1. स्नान और शुद्धता: ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्वच्छ जल से स्नान करें। शुद्ध वस्त्र पहनें, विशेषकर पीला रंग शुभ माना जाता है।

2. पूजा सामग्री: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र, पीले फूल, अक्षत (चावल), चंदन, धूप-दीप, नैवेद्य (फल, मिठाई), तुलसी पत्र।

3. पूजा विधि:

भगवान विष्णु की आरती करें।

विष्णु सहस्रनाम या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।

तुलसी के पौधे की पूजा करें और उसे जल अर्पित करें।

व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन उपवास रखें।

4. व्रत का पारण: अगले दिन प्रातः शुभ मुहूर्त में फलाहार करें।

चातुर्मास का आरंभ

देवशयनी एकादशी से शुरू होने वाला चातुर्मास चार माह तक चलता है। इस अवधि में भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं। इस समय धार्मिक अनुशासन का विशेष महत्व होता है। विवाह, गृह प्रवेश, नए कार्य आदि वर्जित माने जाते हैं। यह काल साधना, व्रत, दान और आध्यात्मिक चिंतन का होता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

मानसून के आगमन के साथ वातावरण में नमी बढ़ती है, जिससे कई रोग फैलने का खतरा रहता है। इस समय उपवास और संयम से शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त रखने में मदद मिलती है। साथ ही, मानसिक शांति और ध्यान के लिए यह समय उपयुक्त होता है।

देवशयनी एकादशी के लाभ

पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति।

मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति।

शरीर की सफाई और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि।

जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आगमन।

निष्कर्ष

देवशयनी एकादशी न केवल एक धार्मिक व्रत है, बल्कि यह जीवन में अनुशासन, संयम और आध्यात्मिक जागरूकता का संदेश देती है। इस दिन भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और श्रद्धा से किया गया व्रत जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है। आइए, इस देवशयनी एकादशी पर व्रत करके अपने जीवन को शुद्ध करें और ईश्वर की अनुकंपा प्राप्त करें।

शुक्रवार, 27 जून 2025

Sanatan Dharma in the Netherlands: A Journey of Eternal Wisdom


Discover Sanatan Dharma in the Netherlands! Learn about the ancient spiritual traditions, growing community, temples, and cultural celebrations of Hinduism in the Netherlands in 2025.

Sanatan Dharma—also known as Hinduism—continues to flourish remarkably. Sanatan Dharma, rooted in the ancient Vedic scriptures of India, encompasses a rich blend of spirituality, philosophy, and cultural practices. In the Netherlands, where Hindus primarily descend from migrants from Suriname, India, and other regions, this tradition thrives through temples, festivals, and community activities. This article explores the meaning of Sanatan Dharma, its journey to the Netherlands, and how it remains a vibrant spiritual force in Dutch society in 2025.

What is Sanatan Dharma?

Sanatan Dharma, literally "eternal order" or "eternal way," is not an organized religion in the Western sense but a way of life emphasizing universal truths of existence. It includes the Vedas, Upanishads, Bhagavad Gita, and many
deities such as Vishnu, Shiva, and Devi. The belief in karma (action and reaction), dharma (duty), and moksha (liberation) forms its core. In the Netherlands, this philosophy is a spiritual practice and a cultural identity for the Hindu community, predominantly consisting of Surinamese-Hindustani and Indian families.

History and Arrival in the Netherlands

The presence of Sanatan Dharma in the Netherlands began with the migration of Hindustanis from Suriname in the 1970s, following Suriname's independence. Originally from Uttar Pradesh and Bihar in India, this community brought their traditions, including temple worship and festivals like Diwali and Holi. Since then, the Hindu population has grown due to immigration from India and other countries. According to recent estimates, by 2025, the Netherlands is estimated to have around 215,000 Hindus, approximately 1.2% of the total population. This diversity has given Sanatan Dharma a unique place in the Dutch multicultural landscape.

Temples and Spiritual Centers

The Netherlands is home to several temples that serve as the spiritual heart of Sanatan Dharma. The Shri Vishnu Mandir in The Hague and the Sri Kamala Hindu Mandir in Amsterdam are popular centers where daily pujas (worship) are conducted. In 2025, the opening of a new temple in Rotterdam is anticipated, blending modern architecture with traditional elements. These temples are not just places of prayer but also cultural hubs hosting yoga, Vedic lessons, and community gatherings. They play a crucial role in preserving Sanatan Dharma amidst a Western lifestyle.

Cultural Celebrations and Festivals

Sanatan Dharma comes alive through festivals that add vibrancy to the Netherlands. Diwali, the festival of lights, is celebrated with lanterns, sweets, and fireworks, especially in cities like Amersfoort and Almere with large Hindu communities. Holi, the festival of colors, attracts non-Hindus who join in throwing colored powder. In 2025, Guru Purnima on July 10 will feature special celebrations, with Hindus honoring their spiritual and secular teachers through prayers and offerings. These festivals strengthen community bonds and promote intercultural exchange.

Sanatan Dharma in Modern Netherlands

In modern Netherlands, Sanatan Dharma adapts to contemporary needs. Many Hindus blend their spiritual practices with a Western lifestyle, with yoga and meditation gaining popularity among non-Hindus. Organizations like the Hindu Council of the Netherlands promote dialogue and integration, while younger generations reinterpret Sanatan Dharma through social media and online satsangs. In 2025, a national Hindu youth festival is planned to engage the younger generation with their heritage, highlighting the tradition's ongoing relevance.

Philosophical and Spiritual Values

Sanatan Dharma teaches universal values such as ahimsa (non-violence), satya (truth), and seva (service), which resonate with the Netherlands' emphasis on sustainability and social justice. The philosophy of karma encourages personal responsibility, while the four stages of life (ashrama)—student, householder, retirement, and renunciation—offer a blueprint for a balanced life, even in a fast-paced society.

Conclusion

Sanatan Dharma in the Netherlands is a living testament to the power of ancient wisdom in a modern context. From temples in The Hague to colorful festivals in Almere, this tradition connects generations and cultures. As we move into 2025, let us embrace the spiritual lessons of Sanatan Dharma and express gratitude to those who guide us—our gurus, parents, and teachers. Take a moment today to honor their wisdom and continue this eternal path!

बुधवार, 25 जून 2025

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला: 2025 में भारत का अंतरिक्ष नायक नई ऊंचाइयों पर!




ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की प्रेरणादायक यात्रा जानें, जो 2025 में एक्सिओम-4 मिशन के जरिए आईएसएस पर जाने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने। उनके पृष्ठभूमि, करियर उपलब्धियों, और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में योगदान के बारे में जानें, साथ ही नवीनतम अपडेट भी शामिल!

परिचय

25 जून 2025, बुधवार को शाम 03:57 बजे ईईएसटी के समय, भारत एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बन रहा है, जब ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक्सिओम-4 मिशन के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर जाने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने। यह मिशन नासा के केनेडी अंतरिक्ष केंद्र, फ्लोरिडा से प्रक्षेपित हुआ और विंग कमांडर राकेश शर्मा की 1984 की ऐतिहासिक उड़ान के बाद भारत का मानव अंतरिक्ष मिशन में 41 साल बाद पुनरागमन है। शुभांशु, एक सम्मानित भारतीय वायु सेना पायलट, न केवल एक अग्रणी हैं, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की बढ़ती शक्ति के प्रतीक भी हैं। इस लेख में, हम उनके प्रेरणादायक पृष्ठभूमि, शानदार करियर उपलब्धियों, और भारत के अंतरिक्ष अभियान में उनके महत्वपूर्ण योगदान को विस्तार से जानेंगे।

पृष्ठभूमि: लखनऊ से अंतरिक्ष तक का सफर

10 अक्टूबर 1985 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जन्मे शुभांशु शुक्ला एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता शंभू दयाल शुक्ला एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी हैं, और माता आशा शुक्ला गृहिणी हैं। उनकी बड़ी बहन निधि (एमबीए धारक) और सुचि मिश्रा (स्कूल शिक्षिका) के साथ शुभांशु का बचपन बीता। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (सीएमएस), अलीगंज कैंपस से प्राप्त की। 1999 के कारगिल युद्ध ने उन्हें राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित किया, और उन्होंने परिवार को बिना बताए यूपीएससी नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) परीक्षा पास की। उनकी शैक्षणिक यात्रा भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु से एम.टेक (एयरोस्पेस इंजीनियरिंग) के साथ चरम पर पहुंची, जो उनके शानदार करियर की नींव रखी।

करियर उपलब्धियां: पायलट से अंतरिक्ष यात्री तक

शुभांशु शुक्ला ने जून 2006 में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) में फाइटर पायलट के रूप में शामिल होकर 2,000 से अधिक उड़ान घंटे दर्ज किए, जिसमें सु-30 एमकेआई, मिग-21, मिग-29, जगुआर, हॉक, डोर्नियर, और एएन-32 जैसे विमान शामिल हैं। उनकी असाधारण क्षमताओं ने उन्हें मार्च 2024 में ग्रुप कैप्टन के पद पर प्रमोट किया। 2019 में इसरो के गगनयान मिशन के लिए चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक के रूप में चयनित, शुभांशु ने रूस के यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर (2019-2021), जर्मनी और जापान में प्रशिक्षण प्राप्त किया। 2024 में उन्हें नासा, स्पेसएक्स और इसरो के सहयोग से एक्सिओम मिशन 4 (एक्स-4) का पायलट चुना गया। 25 जून 2025 को स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान से प्रक्षेपित होकर वह अंतरिक्ष में दूसरे भारतीय और आईएसएस पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बने, जिसका डॉकिंग 26 जून 2025 को निर्धारित है।

उल्लेखनीय योगदान: विज्ञान और प्रेरणा

शुभांशु की 14 दिवसीय आईएसएस यात्रा एक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक उपलब्धि है। वे इसरो और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के साथ विकसित सात भारतीय प्रयोगों—खाद्य, पोषण और जैव प्रौद्योगिकी पर—का नेतृत्व करेंगे, जो अंतरिक्ष अनुसंधान और गगनयान जैसे भविष्य के मिशनों के लिए डेटा प्रदान करेंगे। उनका सहयोग भारत-अमेरिका अंतरिक्ष संबंधों को मजबूत करता है और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, उन्होंने भारतीय मिठाइयाँ जैसे आम नectar और राकेश शर्मा के लिए एक गुप्त स्मृति चिन्ह साथ ले जाया, जो राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। उनकी प्री-लॉन्च अपील, जिसमें युवाओं को बड़े सपने देखने की सलाह दी गई, ने भारत में प्रेरणा की लहर पैदा की है।

हाल की घटनाएं और समाचार

25 जून 2025 को शुभांशु के एक्स-4 मिशन का प्रक्षेपण राष्ट्रीय गर्व का विषय रहा। तकनीकी समस्याओं के कारण 10 जून से विलंबित इस मिशन ने आज सुबह 12:01 बजे IST पर 90% अनुकूल मौसम में प्रक्षेपण किया। वे पेगी व्हिटसन (अमेरिका), स्लावोज उज्नांस्की-विश्निव्स्की (पोलैंड), और टिबोर कापु (हंगरी) के साथ बहुराष्ट्रीय चालक दल का हिस्सा हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उनकी उपलब्धि की सराहना की, जबकि लखनऊ में उनकी पत्नी कमना और छह वर्षीय बेटे के साथ उत्सव हुआ। उनकी पहली अंतरिक्ष संदेश, “नमस्कार, मेरे प्यारे देशवासियों! क्या राइड है! 41 साल बाद हम अंतरिक्ष में वापस हैं,” वायरल हो गया, जो भारत के अंतरिक्ष इतिहास में नया अध्याय है।

भविष्य की संभावनाएं

शुभांशु की आईएसएस यात्रा, जो 9 जुलाई 2025 तक चलेगी, गगनयान (2027) और 2040 तक चंद्र अभियान के लिए रास्ता तैयार करेगी। उनका अनुभव इसरो की मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमताओं को निखारेगा, जो भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में प्रमुख खिलाड़ी बनाएगा। यह मिशन निजी सफलता से अधिक 1.4 अरब भारतीयों की सामूहिक जीत है।

निष्कर्ष

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का सफर लखनऊ के एक स्कूली छात्र से आईएसएस अंतरिक्ष यात्री तक समर्पण, कौशल, और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। 25 जून 2025 को एक्सिओम-4 मिशन उनकी उपलब्धि का प्रमाण है, जो भारत के अंतरिक्ष पुनर्जनन को दर्शाता है। जैसा कि वे प्रयोग करते हैं और युवाओं को प्रेरित करते हैं, शुभांशु की विरासत ब्रह्मांड में चमकेगी, आने वाली पीढ़ियों को तारों तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

आषाढ़ अमावस्या 2025: पितरों की शांति और धन-समृद्धि का चमत्कारी पर्व!



आज बुधवार, 25 जून 2025 को हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की अमावस्या मनाई जा रही है। यह तिथि पितरों की शांति, तर्पण, और दान-पुण्य के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। पवित्र नदियों में स्नान कर श्राद्ध, तर्पण, और पिंडदान की परंपरा इस दिन विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि इससे पितर प्रसन्न होकर वंशजों को सुख, समृद्धि, और मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं। इस लेख में, हम आषाढ़ अमावस्या के धार्मिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक पहलुओं को विस्तार से जानेंगे, साथ ही इस पर्व को मनाने के सटीक तरीके और लाभ भी समझेंगे।

आषाढ़ अमावस्या का महत्व

आषाढ़ मास की अमावस्या को "हलहारिणी अमावस्या" और "दर्श अमावस्या" के नाम से भी जाना जाता है। यह तिथि कृषि कार्यों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि किसान इस दिन हल और कृषि उपकरणों की पूजा कर अच्छी फसल की कामना करते हैं। धार्मिक दृष्टि से, यह पितृ कर्मों से गहराई से जुड़ी है। शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ अमावस्या पर किए गए श्राद्ध से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है, जिससे वे जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं। साथ ही, इस दिन किए गए दान का कई गुना पुण्य मिलता है। गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करना इस पर्व की विशेषता है, जो समृद्धि और शांति को बढ़ाता है।

स्नान और पूजन विधि

आषाढ़ अमावस्या को शुभता के साथ मनाने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:

  • स्नान: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) में उठकर पवित्र नदी, सरोवर, या कुंड में स्नान करें। घर पर स्नान के लिए गंगाजल मिलाएँ।
  • अर्घ्य: स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्घ्य दें और "ॐ सूर्याय नमः" का जप करें।
  • तर्पण और पिंडदान: पितरों की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करें। इसके लिए कुशा, जल, और तिल का उपयोग करें।
  • पीपल पूजा: पीपल के वृक्ष में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का वास माना जाता है। स्नान के बाद पीपल को जल अर्पित करें, दीपक जलाएँ, और 7 परिक्रमा करें।
  • शिव-पार्वती पूजा: भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

आषाढ़ अमावस्या से जुड़ी ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएँ

आषाढ़ अमावस्या का संबंध कई पौराणिक कथाओं से है। एक मान्यता के अनुसार, इस दिन से वर्षा ऋतु का आगमन होता है, जो कृषि के लिए जीवनदायिनी मानी जाती है। किसान इंद्र देव से अच्छी वर्षा और फसल की प्रार्थना करते हैं। पितृ तर्पण के संदर्भ में, यह माना जाता है कि इस दिन पितर अपने वंशजों के पास आते हैं और श्राद्ध की अपेक्षा रखते हैं। जो व्यक्ति इस दिन पूरी श्रद्धा से पूर्वजों का तर्पण करता है, उसके जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं और उसे पितरों का आशीर्वाद मिलता है।

इस दिन क्या करें और क्या न करें

क्या करें:

  • पवित्र नदियों में स्नान करें और गाय, कुत्ते, कौए को भोजन का अंश दें।
  • ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, और दान दें।
  • पीपल की पूजा और मंत्र जप करें।

क्या न करें:

  • तामसिक भोजन (मांस, शराब) का सेवन न करें।
  • वाद-विवाद या नकारात्मकता से बचें।
  • मांगलिक कार्य शुरू न करें।

आषाढ़ अमावस्या के लाभ

आषाढ़ अमावस्या न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और प्रकृति के साथ सामंजस्य सिखाती है। इस दिन किए गए कार्यों से पितरों को शांति मिलती है, जिससे वंशजों के जीवन में सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है। साथ ही, यह पितृ दोष निवारण का भी उत्तम अवसर है।

निष्कर्ष

आषाढ़ अमावस्या 2025 एक ऐसा पवित्र पर्व है जो हमें अपने रिश्तों, परंपराओं, और प्रकृति के प्रति जागरूक करता है। 25 जून 2025 को इस चमत्कारी दिन को श्रद्धापूर्वक मनाएँ और पितरों की कृपा से अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भर दें। इस पर्व की तैयारी आज से शुरू करें और अपने परिवार के साथ इस शुभ अवसर का लाभ उठाएँ!