मंगलवार, 15 जुलाई 2025

दशऋत होकर राम नाम जपें: कोटि यज्ञों के फल का रहस्य

 


राम नाम सब कोई कहे, दशऋत कहे न कोय, 

एक बार दशऋत कहे, कोटि यज्ञ फल होय।

प्रस्तावना: क्या राम नाम सबके लिए फलदायक है?

अधिकतर लोग राम नाम का जप करते हैं, परंतु वे उसके वास्तविक फल से वंचित रह जाते हैं। ऐसा क्यों? इसका उत्तर छिपा है “दशऋत” के सिद्धांत में। जब तक मन, वाणी और कर्म से हम शुद्ध नहीं होते और नाम जप में पूर्ण श्रद्धा व मर्यादा नहीं अपनाते, तब तक राम नाम का प्रभाव मात्र औपचारिक रहता है।

दशऋत का अर्थ क्या है?

‘ऋत’ का अर्थ है – दोष, अपवित्रता, कुवासनाएँ और अशुद्ध प्रवृत्तियाँ। दशऋत से तात्पर्य है वे दस दोष जिनसे बचकर यदि राम नाम लिया जाए, तो उसका प्रभाव कोटि यज्ञ के फल के बराबर हो जाता है।

दश नामापराध: जो राम नाम को निष्फल बनाते हैं

  1. सत्पुरुषों की निन्दा (सन्निन्दा)
    सत्य मार्ग पर चलने वालों की निन्दा करना, ईर्ष्या या स्वार्थ के कारण सच्चाई का विरोध करना।

  2. असत्य वैभव की स्तुति
    झूठ, पाखंड या अधर्म से प्राप्त वैभव की प्रशंसा करना।

  3. श्रीहरि और शिव में भेद बुद्धि
    विष्णु और शिव को अलग मानना, जबकि दोनों एक ही परम सत्ता के रूप हैं।

  4. गुरु वचनों में अश्रद्धा
    सद्गुरु के निर्देशों को महत्व न देना, संदेह करना।

  5. शास्त्रों में अविश्वास
    धर्मशास्त्रों के सत्य एवं उपयोगिता पर विश्वास न करना।

  6. वेद वचनों की उपेक्षा
    वेदों को झूठा या अप्रासंगिक मानना।

  7. नाम के अर्थ में भ्रम
    ईश्वर के विभिन्न नामों के भिन्न अर्थों से उनके अलग-अलग स्वरूप मान लेना।

  8. केवल नाम से मुक्ति की भूल
    यह मानना कि केवल राम नाम जपने से बिना व्यवहारिक सुधार के ही मोक्ष मिल जाएगा।

  9. कर्तव्य से पलायन
    जीवन के उत्तरदायित्वों से मुँह मोड़कर केवल साधना के नाम पर पलायन करना।

  10. अधर्म को धर्म के समान समझना
    सामाजिक कुरीतियों जैसे बलिप्रथा, जातीय भेद को धर्म मान लेना।

नाम जप के साथ संयम और शुद्धि क्यों जरूरी है?

राम नाम कोई साधारण शब्द नहीं है। यह ईश्वर का स्वयं का स्वरूप है। इसका जप तभी फलदायी होता है जब साधक:

  • अपनी इन्द्रियों को संयमित करता है।

  • सच्चरित्र जीवन अपनाता है।

  • दशऋतों से मुक्त होकर शुद्ध भाव से नाम जप करता है।

तोते भी “राम-राम” रटते हैं, पर उससे कोई आत्मिक लाभ नहीं होता। राम नाम तभी सार्थक है जब उसे श्रद्धा, नियम, संयम और समर्पण से जपा जाए।

उपसंहार: कोटि यज्ञों का फल कैसे प्राप्त हो?

जो व्यक्ति दश नामापराधों से बचकर, सच्चे मन से, सद्गुरु के बताए मार्ग पर चलकर, कर्तव्य का पालन करते हुए राम नाम जपता है—वही इस "दशऋत नामजप साधना" का कोटि यज्ञों के फल के समान लाभ प्राप्त करता है।

ऐसे साधकों का जीवन ही यज्ञ बन जाता है, और आत्मा पवित्र होकर प्रभु से जुड़ जाती है।

गुरुवार, 10 जुलाई 2025

गुरु पूर्णिमा: ज्ञान का प्रकाश और गुरु-शिष्य परंपरा का महापर्व

 


गुरु पूर्णिमा हमें यह स्मरण कराती है कि ज्ञान का स्रोत गुरु ही हैं – वे मार्गदर्शक, प्रेरणास्त्रोत और ब्रह्मतत्व के संवाहक हैं।

"गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः।

गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः॥"

यह पावन श्लोक गुरु की महिमा को अक्षुण्ण रूप से चित्रित करता है। गुरु पूर्णिमा—सनातन धर्म का वह दिव्य पर्व, जो ज्ञान के प्रकाश से आत्मा के अंधकार को मिटाता है और गुरु के प्रति श्रद्धा का संचार करता है। आइए, इसके गूढ़ अर्थ, ऐतिहासिक महत्व और आधुनिक प्रासंगिकता को जानें।

'गुरु' का अर्थ और महत्व

संस्कृत में 'गु' का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और 'रु' का अर्थ है उसे दूर करने वाला। इस प्रकार, गुरु वह है जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर आत्मज्ञान का प्रकाश फैलाता है। गुरु केवल एक शिक्षक नहीं, बल्कि वह दिव्य शक्ति है जो हमें सही मार्ग दिखाती है। 'गुरु' शब्द की व्युत्पत्ति पाणिनीय व्याकरण में 'गृ' धातु से मानी गई है, जो निम्नलिखित अर्थों में प्रकट होती है:

गुण

विवरण

गृणाति

ज्ञान उत्पन्न करता है, जैसे ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करते हैं।

सिंचति

ज्ञान से हृदय को सींचता है, जैसे विष्णु संसार का पालन करते हैं।

नाशयति अज्ञानम्

अज्ञान का नाश करता है, जैसे शिव संहार करते हैं।

बोधयति शास्त्रम्

शास्त्रों का गूढ़ ज्ञान कराता है, जिससे ब्रह्म का साक्षात्कार होता है।

सन्मार्ग दर्शक

जीवन के हर मोड़ पर सही राह दिखाता है।

इसीलिए गुरु को साक्षात् परब्रह्म कहा गया है, जो शिष्य को सत्कर्मों की ओर प्रेरित करता है।

सनातन परंपरा में गुरु की भूमिका

हमारी सनातन परंपरा में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। महर्षि यास्क ने अपने 'निरुक्त' ग्रंथ में कहा है:

"साक्षात्कृत धर्माण ऋषयो बभूवु:। तेऽवरेभ्योऽसाक्षात्कृत-धर्मभ्य: उपदेशेन मन्त्रान् संप्रादु:।"

अर्थात्, धर्म का साक्षात्कार करने वाले तपस्वी ऋषियों ने अपने से अवर कोटि के व्यक्तियों को, जो धर्म का साक्षात्कार नहीं कर सके, उन्हें मंत्रों का उपदेश दिया। यह गुरु-शिष्य परंपरा सनातन धर्म की नींव है, जो ज्ञान के आदान-प्रदान को अनादिकाल से जीवित रखती है।

गुरु पूर्णिमा: कब और क्यों?

गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो इस वर्ष 10 जुलाई 2025 को है। यह पर्व मुख्य रूप से महर्षि वेदव्यास को समर्पित है, जिन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित कर ज्ञान को संरचित किया। इसीलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। महर्षि वेदव्यास को आदि गुरु माना जाता है, जिन्होंने अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाया।

महर्षि वेदव्यास का अतुलनीय योगदान

महर्षि वेदव्यास, जिन्हें कृष्ण द्वैपायन व्यास के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म गुरु पूर्णिमा के दिन हुआ था। वे महाभारत, 18 पुराण, ब्रह्मसूत्र और श्रीमद्भागवत जैसे महान ग्रंथों के रचयिता हैं। उन्होंने वेदों को चार भागों—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद—में विभाजित किया और अपने चार प्रमुख शिष्यों—पैल, वैशंपायन, जैमिनी और सुमंतु—को वेदों की शिक्षा दी। यह भी माना जाता है कि उन्होंने दत्तात्रेय जैसे महागुरु को भी शिक्षा दी, जिन्हें "गुरुओं के गुरु" कहा जाता है।

बौद्ध परंपरा में महत्व

गुरु पूर्णिमा का महत्व केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है। बौद्ध परंपरा में यह दिन विशेष श्रद्धा से मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ (उत्तर प्रदेश) में अपना पहला उपदेश दिया था, जिससे धम्मचक्र प्रवर्तन का सूत्रपात हुआ। बौद्ध अनुयायी इस दिन अपने गुरु, भगवान बुद्ध के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

कृषि, प्रकृति और साधना से संबंध

गुरु पूर्णिमा से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो चार महीने की अवधि है जब वर्षा ऋतु के कारण तपस्वी और आध्यात्मिक गुरु एक स्थान पर रुककर शिष्यों को शिक्षा देते हैं और ध्यान-साधना में लीन रहते हैं। यह समय किसानों के लिए भी शुभ माना जाता है, क्योंकि वर्षा ऋतु की शुरुआत से भूमि को जीवन मिलता है और फसलें लहलहाती हैं। यह आध्यात्मिक कक्षाएं शुरू करने और साधना को गहन करने का भी उत्तम समय है।

गुरु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का दिन

इस दिन शिष्य अपने गुरु के चरणों में उपस्थित होकर आभार, सेवा और समर्पण व्यक्त करते हैं। यह आत्मनिरीक्षण, साधना और संकल्प का दिन है। भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में जहाँ-जहाँ गुरु-शिष्य परंपरा जीवित है, वहाँ यह पर्व श्रद्धा से मनाया जाता है।

स्वामी विश्वदेवानंद पुरी जी महाराज: एक प्रेरणादायी जीवन

इस पावन अवसर पर, मैं अपने परम पूज्य गुरुदेव श्री श्री 1008 स्वामी विश्वदेवानंद पुरी जी महाराज को सादर नमन करता हूँ। वे निर्वान पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर थे, जिन्होंने भक्ति, ज्ञान और सेवा के माध्यम से अनगिनत शिष्यों के जीवन को आलोकित किया।

  • प्रारंभिक जीवन: स्वामी विश्वदेवानंद पुरी जी का जन्म कैलाश नाथ शुक्ल के रूप में हुआ। बचपन से ही उनकी रुचि आध्यात्मिकता और धर्म में थी। वेदों और शास्त्रों के अध्ययन ने उन्हें सन्यासी जीवन अपनाने के लिए प्रेरित किया।

  • सन्यास और साधना: 16 वर्ष की आयु में उन्होंने घर त्याग दिया और नैमिषारण्य के पास दरियापुर गाँव में पुज्य स्वामी सदानंद परमहंस से मुलाकात की। वहाँ उन्होंने 5-6 वर्ष तक विभिन्न साधनाओं में महारत हासिल की और आत्मज्ञान प्राप्त किया।

  • सन्यास दीक्षा: 1962 में स्वामी अतुलानंद जी ने उन्हें सन्यास दीक्षा दी, जिसके बाद वे परमहंस परिव्राजक आचार्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज के नाम से जाने गए। यह दीक्षा हिंदू धर्म में उच्चतम आध्यात्मिक स्तर का प्रतीक है।

  • विश्व भ्रमण और सेवा: उन्होंने भारत और विश्व भर में तीर्थयात्राएँ कीं, लोगों की समस्याओं को समझा और उनके समाधान के लिए कार्य किया। उनकी शिक्षाएँ "वसुधैव कुटुंबकम्" (विश्व एक परिवार है) के सिद्धांत पर आधारित थीं।

  • विश्व कल्याण फाउंडेशन: हरिद्वार में स्थापित श्री यंत्र मंदिर उनकी आध्यात्मिक और सामाजिक सेवा का प्रतीक है। यह मंदिर आज भी उनकी शिक्षाओं और दिव्य उपस्थिति का केंद्र है।

  • विरासत: 7 मई 2013 को उनकी महासमाधि के बाद भी, उनकी शिक्षाएँ और श्री यंत्र मंदिर अनगिनत शिष्यों को प्रेरित करते हैं।

मैं, अनंतबोध चैतन्य, स्वामी विश्वदेवानंद पुरी जी महाराज का एक विनम्र शिष्य हूँ। उनकी दिव्य कृपा और शिक्षाओं ने मेरे जीवन को भक्ति, ज्ञान और सेवा के मार्ग पर प्रेरित किया है। उनके द्वारा स्थापित श्री यंत्र मंदिर और विश्व कल्याण फाउंडेशन के माध्यम से, मैं उनकी शिक्षाओं को विश्व भर में फैलाने और उनकी आध्यात्मिक विरासत को जीवित रखने के लिए समर्पित हूँ। उनकी शिक्षाओं ने मुझे प्रेम, एकता और आत्मजागृति का सच्चा अर्थ सिखाया है।

निष्कर्ष

गुरु पूर्णिमा हमें यह स्मरण कराती है कि गुरु ही ज्ञान का स्रोत हैं—वे मार्गदर्शक, प्रेरणास्त्रोत और ब्रह्मतत्व के संवाहक हैं। इस पावन दिन पर, आइए हम अपने सभी गुरुओं को स्मरण करें—चाहे वे आध्यात्मिक हों, शैक्षिक हों, या जीवन के अनुभवों से प्राप्त हों। उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लें।

श्री गुरु चरणों में साष्टांग प्रणाम। 

भवदीय,
अनंतबोध चैतन्य

मंगलवार, 8 जुलाई 2025

श्री यंत्र: यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं, आपकी समृद्धि का नक्शा है

 



क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है कि आप जीवन में मेहनत तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन कहीं न कहीं कुछ रुका हुआ है? आप अवसरों के दरवाज़े पर दस्तक देते हैं, पर वे खुलते नहीं। या शायद आपके पास सब कुछ है—एक अच्छा करियर, परिवार—लेकिन फिर भी एक खालीपन, एक असंतोष का भाव मन में रहता है।

अगर आप इन भावनाओं से जुड़ाव महसूस कर सकते हैं, तो मैं आपको बताना चाहता हूँ कि आप अकेले नहीं हैं। हम सब जीवन में सच्ची प्रचुरता और समृद्धि की तलाश में हैं। लेकिन क्या होगा अगर मैं आपसे कहूँ कि इस प्रचुरता को अनलॉक करने की एक प्राचीन कुंजी है, एक ऐसा रहस्य जो हज़ारों सालों से हमारे ऋषियों और ज्ञानियों को पता था?

आज हम एक ऐसे ही प्राचीन रहस्य—श्री यंत्र—की दुनिया में गहराई से उतरेंगे। इसे सिर्फ "यंत्रों की रानी" नहीं कहा जाता, बल्कि यह स्वयं में ब्रह्मांड का एक नक्शा है, जो आपको अपनी उच्चतम क्षमता तक पहुँचने का मार्ग दिखा सकता है।

तो, आखिर यह श्री यंत्र है क्या?

पहली नज़र में, श्री यंत्र आपस में गुंथे हुए त्रिभुजों और वृत्तों का एक जटिल ज्यामितीय डिज़ाइन लगता है। लेकिन यह केवल कला का एक टुकड़ा नहीं है। यह एक शक्तिशाली ऊर्जा उपकरण है।

  • 'श्री' का अर्थ केवल पैसा नहीं है, बल्कि हर तरह की समृद्धि है—स्वास्थ्य, सौंदर्य, खुशी, शांति, और सकारात्मक रिश्ते।

  • 'यंत्र' का अर्थ है एक "उपकरण" या "साधन"।

तो, श्री यंत्र का शाब्दिक अर्थ है "समृद्धि का उपकरण"। यह एक ऐसा पवित्र साधन है जिसे आपके जीवन में हर तरह की सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने, बनाए रखने और बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

समृद्धि का सच्चा मतलब क्या है? क्या यह सिर्फ पैसा है?

चलिए एक पल के लिए सोचते हैं। जब हम "समृद्धि" या "Abundance" कहते हैं, तो हमारे दिमाग में अक्सर पैसा और भौतिक चीज़ें आती हैं। लेकिन सच्ची समृद्धि इससे कहीं ज़्यादा गहरी है।

कल्पना कीजिए:

  • आपके पास बहुत पैसा है, लेकिन उसे एन्जॉय करने के लिए मन में शांति नहीं है।

  • आपके पास बहुत शक्ति है, पर आप हर समय असुरक्षित महसूस करते हैं।

  • आप दुनिया भर से प्यार करते हैं, लेकिन उसे खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते।

सच्ची समृद्धि का अर्थ है: "वह करने की पूरी आज़ादी जो आप वास्तव में करना चाहते हैं, जब आप उसे करना चाहते हैं, और अपने जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य के साथ।"

यह वह स्वतंत्रता है जहाँ पैसा, स्वास्थ्य, और रिश्ते आपके रास्ते की रुकावट नहीं, बल्कि आपके सहायक बन जाते हैं। और श्री यंत्र ठीक इसी समग्र समृद्धि को अनलॉक करने का काम करता है।

श्री यंत्र असल में काम कैसे करता है? (यहाँ जादू शुरू होता है)

श्री यंत्र दो स्तरों पर काम करता है, और यही इसे इतना शक्तिशाली बनाता है:

1. रुकावटों को हटाना (सफाई का काम): सोचिए कि आप एक सुंदर बगीचा बनाना चाहते हैं, लेकिन ज़मीन जंगली घास और पत्थरों से भरी है। क्या आप सीधे बीज बो देंगे? नहीं, पहले आप सफाई करेंगे। श्री यंत्र ठीक यही करता है। यह आपके जीवन की आंतरिक (डर, नकारात्मक सोच, आत्मविश्वास की कमी) और बाहरी (वित्तीय समस्याएँ, खराब रिश्ते) बाधाओं को धीरे-धीरे साफ़ करता है। यह आपकी ऊर्जा को शुद्ध करता है ताकि समृद्धि का प्रवाह शुरू हो सके।

2. चेतना का विस्तार (निर्माण का काम): एक बार जब ज़मीन साफ़ हो जाती है, तो आप बीज बोते हैं। श्री यंत्र आपकी चेतना को फिर से संरेखित (align) करता है। यह आपके दिमाग को अवसरों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित करता है, आपके भीतर की पुरुष (तार्किक) और स्त्री (रचनात्मक) ऊर्जा को संतुलित करता है, और आपको एक ऐसे "चुंबक" में बदल देता है जो स्वाभाविक रूप से अच्छी चीजों को आकर्षित करता है।

श्री यंत्र के डिज़ाइन का रहस्य: ब्रह्मांड का ब्लूप्रिंट

यह डिज़ाइन सिर्फ सुंदर नहीं, बल्कि गहरा अर्थ रखता है।

  • केंद्रीय बिंदु (बिंदु): यह आप हैं—आपकी आत्मा, आपकी चेतना का स्रोत, जहाँ से सब कुछ शुरू होता है।

  • 9 आपस में गुंथे हुए त्रिभुज:

    • 4 ऊपर की ओर त्रिभुज: ये शिव (पुरुष ऊर्जा) का प्रतीक हैं। ये स्थिरता, संकल्प, अनुशासन और स्पष्टता को दर्शाते हैं।

    • 5 नीचे की ओर त्रिभुज: ये शक्ति (स्त्री ऊर्जा) का प्रतीक हैं। ये रचनात्मकता, ऊर्जा, भावनाएँ, और भौतिक जगत में इच्छाओं को प्रकट करने की क्षमता को दर्शाते हैं।

  • 43 छोटे त्रिभुज: जहाँ शिव और शक्ति के ये त्रिभुज मिलते हैं, वे 43 ऊर्जा केंद्र बनाते हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करते हैं।

  • कमल की पंखुड़ियाँ और बाहरी घेरा: ये सुरक्षात्मक परतें हैं जो आपकी ऊर्जा को बाहरी नकारात्मकता से बचाती हैं और आपकी आध्यात्मिक यात्रा में मदद करती हैं।

यह चेतना का एक पूरा नक्शा है, जो आपको शून्य से अनंत तक ले जाता है।

अपने जीवन में श्री यंत्र को कैसे सक्रिय करें? (एक सरल गाइड)

एक श्री यंत्र को घर में रखना बहुत अच्छा है, लेकिन उसकी पूरी शक्ति को पाने के लिए उसे "जागृत" या प्राण प्रतिष्ठित करना ज़रूरी है। यह एक सरल प्रक्रिया है जिसे आप स्वयं कर सकते हैं:

  1. तैयारी:

    • समय: इसे स्थापित करने के लिए शुक्रवार (शुक्र का दिन, जो समृद्धि का ग्रह है) सबसे अच्छा है। यदि संभव हो, तो इसे शुक्ल पक्ष (बढ़ते चाँद के दिन) में स्थापित करें।

    • शुद्धि: स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें और कुछ मिनट शांत बैठकर अपने इरादे (संकल्प) को स्पष्ट करें कि आप जीवन में क्या चाहते हैं।

  2. स्थापना:

    • दिशा: श्री यंत्र को अपने घर या कार्यस्थल के उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में रखें। यह दिशा दिव्य ऊर्जा के लिए सबसे शुभ मानी जाती है।

    • ऊँचाई: इसे इतनी ऊँचाई पर रखें कि जब आप ध्यान में बैठें तो यह आपकी आँखों के स्तर पर हो।

    • स्थान: सुनिश्चित करें कि वह स्थान साफ़-सुथरा और अव्यवस्था से मुक्त हो।

  3. सक्रियण:

    • त्राटक (टकटकी लगाकर देखना): आराम से बैठें और अपनी दृष्टि को यंत्र के केंद्र (बिंदु) पर केंद्रित करें। धीरे-धीरे अपनी जागरूकता को बाहर की ओर फैलने दें, जैसे आप पूरे यंत्र को अपनी आँखों से पी रहे हों।

क्या उम्मीद करें? (धैर्य ही कुंजी है)

श्री यंत्र कोई जादू की छड़ी नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अभ्यास है। इसके परिणाम समय के साथ दिखते हैं:

  • शुरुआती हफ्तों में: आप अधिक मानसिक शांति, स्पष्टता और बेहतर फोकस महसूस कर सकते हैं। चिंता कम हो सकती है।

  • 1-3 महीनों में: आप देखेंगे कि आपके रास्ते की छोटी-छोटी रुकावटें दूर हो रही हैं। रचनात्मक विचार आएंगे और आप अपने आसपास नए अवसरों को नोटिस करने लगेंगे।

  • एक साल के भीतर: यदि आप नियमित रूप से इसके साथ जुड़ते हैं, तो आप अपनी आय, स्वास्थ्य और रिश्तों में ठोस सकारात्मक बदलाव देख सकते हैं।

  • जीवन भर: यह आपको अभाव की मानसिकता से निकालकर हमेशा के लिए समृद्धि की मानसिकता में स्थापित कर देता है, जहाँ आप जीवन में सहजता से प्रवाह करते हैं।

अंतिम विचार

श्री यंत्र एक दर्पण है। यह आपको आपकी अपनी असीमित क्षमता दिखाता है। यह आपको याद दिलाता है कि आप भिखारी नहीं, बल्कि अपने भाग्य के निर्माता हैं। यह एक यात्रा है, एक अभ्यास है, और अपने भीतर छिपे ब्रह्मांड को खोजने का एक सुंदर तरीका है।

तो, क्या आप अपनी समृद्धि के नक्शे को खोलने के लिए तैयार हैं?

आपकी समृद्धि की यात्रा आज से शुरू होती है।

सोमवार, 7 जुलाई 2025

गुरु पूर्णिमा: श्रद्धा, समर्पण और ज्ञान का पावन उत्सव



गुरु पूर्णिमा की पावन परंपरा की शुरुआत कैसे हुई?

गुरु पूर्णिमा—एक ऐसा पर्व जो केवल किसी विशेष धर्म का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के अध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसकी शुरुआत महर्षि वेदव्यास जी के पाँच शिष्यों ने की थी।

महर्षि वेदव्यास, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का साक्षात् रूप माना गया है, बचपन से ही ध्यान, साधना और ईश्वर-प्राप्ति की ओर उन्मुख थे। जब उन्होंने ईश्वर की आराधना हेतु वन जाने का संकल्प लिया, तो प्रारंभ में माता-पिता ने मना किया। परंतु बालक वेदव्यास की अध्यात्म के प्रति दृढ़ निष्ठा देखकर उन्होंने अनुमति दे दी। इसी समर्पण और तप से उन्होंने संस्कृत भाषा में अद्भुत निपुणता प्राप्त की और महाभारत, 18 पुराण, ब्रह्मसूत्र और वेदों के विभाजन जैसे अतुलनीय कार्य संपन्न किए।

आषाढ़ पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी ने अपने शिष्यों को श्रीमद्भागवत पुराण का उपदेश दिया। तब उनके पाँच प्रमुख शिष्यों ने इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाना प्रारंभ किया। तभी से इस दिन को ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।

 गुरु का महत्व शास्त्रों की दृष्टि में

गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊपर बताया गया है।

शिवजी स्वयं कहते हैं:

गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो, गुरौ निष्ठा परं तपः।

गुरोः परतरं नास्ति, त्रिवारं कथयामि ते॥

अर्थात् गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं और गुरु में अटूट निष्ठा ही परम तप है। गुरु के बिना न तो ज्ञान की प्राप्ति संभव है, न ही आत्मोन्नति।

लोकवाणी भी यही सिखाती है:

“हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर।”

भगवान रूठ जाएँ तो गुरु की शरण में शांति मिल जाती है, लेकिन यदि गुरु ही अप्रसन्न हो जाएँ, तो फिर कोई मार्ग नहीं बचता। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु की आराधना, पूजन और कृपा प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 गुरु पूर्णिमा पर क्या करें?

अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करें।

उन्हें स्मरण करें, यदि पास न हों तो ध्यान में बैठकर उनसे आशीर्वाद माँगें।

कोई छोटा सा सेवा कार्य करें—चाहे घर में हो, आश्रम में हो या समाज के लिए।

गुरु गीता, श्रीमद्भागवत, वेदव्यास स्तुति या गुरु स्तोत्र का पाठ करें।


गुरु की कृपा ही जीवन का सबसे बड़ा संबल है

गुरु न हों तो जीवन दिशाहीन हो जाता है। वे हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं, सांसारिक भ्रम से सत्य की ओर। इस गुरु पूर्णिमा पर हम सब मिलकर प्रण लें कि गुरु के मार्गदर्शन में चलकर अपने जीवन को सच्चे अर्थों में सार्थक बनाएँगे।

इस गुरु पूर्णिमा पर, आइए श्रद्धा और सेवा के भाव से अपने गुरु को नमन करें।

“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”

✍️ लेखक: श्री अनंतबोध चैतन्य

संस्थापक, सनातन धारा फाउंडेशन | आध्यात्मिक शिक्षक व लेखक

रविवार, 6 जुलाई 2025

देवशयनी एकादशी: एक आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ


देवशयनी एकादशी: जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं, और पृथ्वी को मिलती है आत्मचिंतन की प्रेरणा

देवशयनी एकादशी, जिसे हरिशयनी या आषाढ़ी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र व्रतों में से एक है। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है और इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जो आध्यात्मिक अनुशासन, संयम और तपस्या का समय होता है।

देवशयनी एकादशी का धार्मिक महत्व

देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व भगवान विष्णु के योगनिद्रा में प्रवेश से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं। इस दौरान सृष्टि के संचालन का दायित्व भगवान शिव और अन्य देवताओं पर आ जाता है। यह समय प्रकृति के चक्र के अनुसार भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मानसून का आगमन होता है, जिससे जीवन में नयी ऊर्जा का संचार होता है।

देव शयनी एकादशी की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार राजा मांधाता ने भगवान विष्णु से पूछा कि वह ऐसा कौन सा व्रत करें जिससे उन्हें और उनकी प्रजा को सुख-समृद्धि मिले। भगवान विष्णु ने उन्हें देव शयनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी।

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस दिन से चार महीने तक विश्राम करने का निर्णय लिया ताकि भक्त उनकी भक्ति में अधिक समय बिताएं और प्रकृति को भी संतुलन में लाने का अवसर मिले। इस दौरान भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि सही समय पर सही उपाय करने से संकट का समाधान संभव है। देवशयनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

देवशयनी एकादशी का व्रत और पूजा विधि

1. स्नान और शुद्धता: ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्वच्छ जल से स्नान करें। शुद्ध वस्त्र पहनें, विशेषकर पीला रंग शुभ माना जाता है।

2. पूजा सामग्री: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र, पीले फूल, अक्षत (चावल), चंदन, धूप-दीप, नैवेद्य (फल, मिठाई), तुलसी पत्र।

3. पूजा विधि:

भगवान विष्णु की आरती करें।

विष्णु सहस्रनाम या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।

तुलसी के पौधे की पूजा करें और उसे जल अर्पित करें।

व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन उपवास रखें।

4. व्रत का पारण: अगले दिन प्रातः शुभ मुहूर्त में फलाहार करें।

चातुर्मास का आरंभ

देवशयनी एकादशी से शुरू होने वाला चातुर्मास चार माह तक चलता है। इस अवधि में भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं। इस समय धार्मिक अनुशासन का विशेष महत्व होता है। विवाह, गृह प्रवेश, नए कार्य आदि वर्जित माने जाते हैं। यह काल साधना, व्रत, दान और आध्यात्मिक चिंतन का होता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

मानसून के आगमन के साथ वातावरण में नमी बढ़ती है, जिससे कई रोग फैलने का खतरा रहता है। इस समय उपवास और संयम से शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त रखने में मदद मिलती है। साथ ही, मानसिक शांति और ध्यान के लिए यह समय उपयुक्त होता है।

देवशयनी एकादशी के लाभ

पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति।

मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति।

शरीर की सफाई और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि।

जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आगमन।

निष्कर्ष

देवशयनी एकादशी न केवल एक धार्मिक व्रत है, बल्कि यह जीवन में अनुशासन, संयम और आध्यात्मिक जागरूकता का संदेश देती है। इस दिन भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और श्रद्धा से किया गया व्रत जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है। आइए, इस देवशयनी एकादशी पर व्रत करके अपने जीवन को शुद्ध करें और ईश्वर की अनुकंपा प्राप्त करें।

शुक्रवार, 27 जून 2025

Sanatan Dharma in the Netherlands: A Journey of Eternal Wisdom


Discover Sanatan Dharma in the Netherlands! Learn about the ancient spiritual traditions, growing community, temples, and cultural celebrations of Hinduism in the Netherlands in 2025.

Sanatan Dharma—also known as Hinduism—continues to flourish remarkably. Sanatan Dharma, rooted in the ancient Vedic scriptures of India, encompasses a rich blend of spirituality, philosophy, and cultural practices. In the Netherlands, where Hindus primarily descend from migrants from Suriname, India, and other regions, this tradition thrives through temples, festivals, and community activities. This article explores the meaning of Sanatan Dharma, its journey to the Netherlands, and how it remains a vibrant spiritual force in Dutch society in 2025.

What is Sanatan Dharma?

Sanatan Dharma, literally "eternal order" or "eternal way," is not an organized religion in the Western sense but a way of life emphasizing universal truths of existence. It includes the Vedas, Upanishads, Bhagavad Gita, and many
deities such as Vishnu, Shiva, and Devi. The belief in karma (action and reaction), dharma (duty), and moksha (liberation) forms its core. In the Netherlands, this philosophy is a spiritual practice and a cultural identity for the Hindu community, predominantly consisting of Surinamese-Hindustani and Indian families.

History and Arrival in the Netherlands

The presence of Sanatan Dharma in the Netherlands began with the migration of Hindustanis from Suriname in the 1970s, following Suriname's independence. Originally from Uttar Pradesh and Bihar in India, this community brought their traditions, including temple worship and festivals like Diwali and Holi. Since then, the Hindu population has grown due to immigration from India and other countries. According to recent estimates, by 2025, the Netherlands is estimated to have around 215,000 Hindus, approximately 1.2% of the total population. This diversity has given Sanatan Dharma a unique place in the Dutch multicultural landscape.

Temples and Spiritual Centers

The Netherlands is home to several temples that serve as the spiritual heart of Sanatan Dharma. The Shri Vishnu Mandir in The Hague and the Sri Kamala Hindu Mandir in Amsterdam are popular centers where daily pujas (worship) are conducted. In 2025, the opening of a new temple in Rotterdam is anticipated, blending modern architecture with traditional elements. These temples are not just places of prayer but also cultural hubs hosting yoga, Vedic lessons, and community gatherings. They play a crucial role in preserving Sanatan Dharma amidst a Western lifestyle.

Cultural Celebrations and Festivals

Sanatan Dharma comes alive through festivals that add vibrancy to the Netherlands. Diwali, the festival of lights, is celebrated with lanterns, sweets, and fireworks, especially in cities like Amersfoort and Almere with large Hindu communities. Holi, the festival of colors, attracts non-Hindus who join in throwing colored powder. In 2025, Guru Purnima on July 10 will feature special celebrations, with Hindus honoring their spiritual and secular teachers through prayers and offerings. These festivals strengthen community bonds and promote intercultural exchange.

Sanatan Dharma in Modern Netherlands

In modern Netherlands, Sanatan Dharma adapts to contemporary needs. Many Hindus blend their spiritual practices with a Western lifestyle, with yoga and meditation gaining popularity among non-Hindus. Organizations like the Hindu Council of the Netherlands promote dialogue and integration, while younger generations reinterpret Sanatan Dharma through social media and online satsangs. In 2025, a national Hindu youth festival is planned to engage the younger generation with their heritage, highlighting the tradition's ongoing relevance.

Philosophical and Spiritual Values

Sanatan Dharma teaches universal values such as ahimsa (non-violence), satya (truth), and seva (service), which resonate with the Netherlands' emphasis on sustainability and social justice. The philosophy of karma encourages personal responsibility, while the four stages of life (ashrama)—student, householder, retirement, and renunciation—offer a blueprint for a balanced life, even in a fast-paced society.

Conclusion

Sanatan Dharma in the Netherlands is a living testament to the power of ancient wisdom in a modern context. From temples in The Hague to colorful festivals in Almere, this tradition connects generations and cultures. As we move into 2025, let us embrace the spiritual lessons of Sanatan Dharma and express gratitude to those who guide us—our gurus, parents, and teachers. Take a moment today to honor their wisdom and continue this eternal path!

बुधवार, 25 जून 2025

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला: 2025 में भारत का अंतरिक्ष नायक नई ऊंचाइयों पर!




ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की प्रेरणादायक यात्रा जानें, जो 2025 में एक्सिओम-4 मिशन के जरिए आईएसएस पर जाने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने। उनके पृष्ठभूमि, करियर उपलब्धियों, और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में योगदान के बारे में जानें, साथ ही नवीनतम अपडेट भी शामिल!

परिचय

25 जून 2025, बुधवार को शाम 03:57 बजे ईईएसटी के समय, भारत एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बन रहा है, जब ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक्सिओम-4 मिशन के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर जाने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने। यह मिशन नासा के केनेडी अंतरिक्ष केंद्र, फ्लोरिडा से प्रक्षेपित हुआ और विंग कमांडर राकेश शर्मा की 1984 की ऐतिहासिक उड़ान के बाद भारत का मानव अंतरिक्ष मिशन में 41 साल बाद पुनरागमन है। शुभांशु, एक सम्मानित भारतीय वायु सेना पायलट, न केवल एक अग्रणी हैं, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की बढ़ती शक्ति के प्रतीक भी हैं। इस लेख में, हम उनके प्रेरणादायक पृष्ठभूमि, शानदार करियर उपलब्धियों, और भारत के अंतरिक्ष अभियान में उनके महत्वपूर्ण योगदान को विस्तार से जानेंगे।

पृष्ठभूमि: लखनऊ से अंतरिक्ष तक का सफर

10 अक्टूबर 1985 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जन्मे शुभांशु शुक्ला एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता शंभू दयाल शुक्ला एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी हैं, और माता आशा शुक्ला गृहिणी हैं। उनकी बड़ी बहन निधि (एमबीए धारक) और सुचि मिश्रा (स्कूल शिक्षिका) के साथ शुभांशु का बचपन बीता। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (सीएमएस), अलीगंज कैंपस से प्राप्त की। 1999 के कारगिल युद्ध ने उन्हें राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित किया, और उन्होंने परिवार को बिना बताए यूपीएससी नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) परीक्षा पास की। उनकी शैक्षणिक यात्रा भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु से एम.टेक (एयरोस्पेस इंजीनियरिंग) के साथ चरम पर पहुंची, जो उनके शानदार करियर की नींव रखी।

करियर उपलब्धियां: पायलट से अंतरिक्ष यात्री तक

शुभांशु शुक्ला ने जून 2006 में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) में फाइटर पायलट के रूप में शामिल होकर 2,000 से अधिक उड़ान घंटे दर्ज किए, जिसमें सु-30 एमकेआई, मिग-21, मिग-29, जगुआर, हॉक, डोर्नियर, और एएन-32 जैसे विमान शामिल हैं। उनकी असाधारण क्षमताओं ने उन्हें मार्च 2024 में ग्रुप कैप्टन के पद पर प्रमोट किया। 2019 में इसरो के गगनयान मिशन के लिए चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक के रूप में चयनित, शुभांशु ने रूस के यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर (2019-2021), जर्मनी और जापान में प्रशिक्षण प्राप्त किया। 2024 में उन्हें नासा, स्पेसएक्स और इसरो के सहयोग से एक्सिओम मिशन 4 (एक्स-4) का पायलट चुना गया। 25 जून 2025 को स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान से प्रक्षेपित होकर वह अंतरिक्ष में दूसरे भारतीय और आईएसएस पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बने, जिसका डॉकिंग 26 जून 2025 को निर्धारित है।

उल्लेखनीय योगदान: विज्ञान और प्रेरणा

शुभांशु की 14 दिवसीय आईएसएस यात्रा एक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक उपलब्धि है। वे इसरो और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के साथ विकसित सात भारतीय प्रयोगों—खाद्य, पोषण और जैव प्रौद्योगिकी पर—का नेतृत्व करेंगे, जो अंतरिक्ष अनुसंधान और गगनयान जैसे भविष्य के मिशनों के लिए डेटा प्रदान करेंगे। उनका सहयोग भारत-अमेरिका अंतरिक्ष संबंधों को मजबूत करता है और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, उन्होंने भारतीय मिठाइयाँ जैसे आम नectar और राकेश शर्मा के लिए एक गुप्त स्मृति चिन्ह साथ ले जाया, जो राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। उनकी प्री-लॉन्च अपील, जिसमें युवाओं को बड़े सपने देखने की सलाह दी गई, ने भारत में प्रेरणा की लहर पैदा की है।

हाल की घटनाएं और समाचार

25 जून 2025 को शुभांशु के एक्स-4 मिशन का प्रक्षेपण राष्ट्रीय गर्व का विषय रहा। तकनीकी समस्याओं के कारण 10 जून से विलंबित इस मिशन ने आज सुबह 12:01 बजे IST पर 90% अनुकूल मौसम में प्रक्षेपण किया। वे पेगी व्हिटसन (अमेरिका), स्लावोज उज्नांस्की-विश्निव्स्की (पोलैंड), और टिबोर कापु (हंगरी) के साथ बहुराष्ट्रीय चालक दल का हिस्सा हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उनकी उपलब्धि की सराहना की, जबकि लखनऊ में उनकी पत्नी कमना और छह वर्षीय बेटे के साथ उत्सव हुआ। उनकी पहली अंतरिक्ष संदेश, “नमस्कार, मेरे प्यारे देशवासियों! क्या राइड है! 41 साल बाद हम अंतरिक्ष में वापस हैं,” वायरल हो गया, जो भारत के अंतरिक्ष इतिहास में नया अध्याय है।

भविष्य की संभावनाएं

शुभांशु की आईएसएस यात्रा, जो 9 जुलाई 2025 तक चलेगी, गगनयान (2027) और 2040 तक चंद्र अभियान के लिए रास्ता तैयार करेगी। उनका अनुभव इसरो की मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमताओं को निखारेगा, जो भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में प्रमुख खिलाड़ी बनाएगा। यह मिशन निजी सफलता से अधिक 1.4 अरब भारतीयों की सामूहिक जीत है।

निष्कर्ष

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का सफर लखनऊ के एक स्कूली छात्र से आईएसएस अंतरिक्ष यात्री तक समर्पण, कौशल, और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। 25 जून 2025 को एक्सिओम-4 मिशन उनकी उपलब्धि का प्रमाण है, जो भारत के अंतरिक्ष पुनर्जनन को दर्शाता है। जैसा कि वे प्रयोग करते हैं और युवाओं को प्रेरित करते हैं, शुभांशु की विरासत ब्रह्मांड में चमकेगी, आने वाली पीढ़ियों को तारों तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

आषाढ़ अमावस्या 2025: पितरों की शांति और धन-समृद्धि का चमत्कारी पर्व!



आज बुधवार, 25 जून 2025 को हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की अमावस्या मनाई जा रही है। यह तिथि पितरों की शांति, तर्पण, और दान-पुण्य के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। पवित्र नदियों में स्नान कर श्राद्ध, तर्पण, और पिंडदान की परंपरा इस दिन विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि इससे पितर प्रसन्न होकर वंशजों को सुख, समृद्धि, और मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं। इस लेख में, हम आषाढ़ अमावस्या के धार्मिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक पहलुओं को विस्तार से जानेंगे, साथ ही इस पर्व को मनाने के सटीक तरीके और लाभ भी समझेंगे।

आषाढ़ अमावस्या का महत्व

आषाढ़ मास की अमावस्या को "हलहारिणी अमावस्या" और "दर्श अमावस्या" के नाम से भी जाना जाता है। यह तिथि कृषि कार्यों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि किसान इस दिन हल और कृषि उपकरणों की पूजा कर अच्छी फसल की कामना करते हैं। धार्मिक दृष्टि से, यह पितृ कर्मों से गहराई से जुड़ी है। शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ अमावस्या पर किए गए श्राद्ध से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है, जिससे वे जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं। साथ ही, इस दिन किए गए दान का कई गुना पुण्य मिलता है। गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करना इस पर्व की विशेषता है, जो समृद्धि और शांति को बढ़ाता है।

स्नान और पूजन विधि

आषाढ़ अमावस्या को शुभता के साथ मनाने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:

  • स्नान: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) में उठकर पवित्र नदी, सरोवर, या कुंड में स्नान करें। घर पर स्नान के लिए गंगाजल मिलाएँ।
  • अर्घ्य: स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्घ्य दें और "ॐ सूर्याय नमः" का जप करें।
  • तर्पण और पिंडदान: पितरों की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करें। इसके लिए कुशा, जल, और तिल का उपयोग करें।
  • पीपल पूजा: पीपल के वृक्ष में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का वास माना जाता है। स्नान के बाद पीपल को जल अर्पित करें, दीपक जलाएँ, और 7 परिक्रमा करें।
  • शिव-पार्वती पूजा: भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

आषाढ़ अमावस्या से जुड़ी ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएँ

आषाढ़ अमावस्या का संबंध कई पौराणिक कथाओं से है। एक मान्यता के अनुसार, इस दिन से वर्षा ऋतु का आगमन होता है, जो कृषि के लिए जीवनदायिनी मानी जाती है। किसान इंद्र देव से अच्छी वर्षा और फसल की प्रार्थना करते हैं। पितृ तर्पण के संदर्भ में, यह माना जाता है कि इस दिन पितर अपने वंशजों के पास आते हैं और श्राद्ध की अपेक्षा रखते हैं। जो व्यक्ति इस दिन पूरी श्रद्धा से पूर्वजों का तर्पण करता है, उसके जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं और उसे पितरों का आशीर्वाद मिलता है।

इस दिन क्या करें और क्या न करें

क्या करें:

  • पवित्र नदियों में स्नान करें और गाय, कुत्ते, कौए को भोजन का अंश दें।
  • ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, और दान दें।
  • पीपल की पूजा और मंत्र जप करें।

क्या न करें:

  • तामसिक भोजन (मांस, शराब) का सेवन न करें।
  • वाद-विवाद या नकारात्मकता से बचें।
  • मांगलिक कार्य शुरू न करें।

आषाढ़ अमावस्या के लाभ

आषाढ़ अमावस्या न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और प्रकृति के साथ सामंजस्य सिखाती है। इस दिन किए गए कार्यों से पितरों को शांति मिलती है, जिससे वंशजों के जीवन में सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है। साथ ही, यह पितृ दोष निवारण का भी उत्तम अवसर है।

निष्कर्ष

आषाढ़ अमावस्या 2025 एक ऐसा पवित्र पर्व है जो हमें अपने रिश्तों, परंपराओं, और प्रकृति के प्रति जागरूक करता है। 25 जून 2025 को इस चमत्कारी दिन को श्रद्धापूर्वक मनाएँ और पितरों की कृपा से अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भर दें। इस पर्व की तैयारी आज से शुरू करें और अपने परिवार के साथ इस शुभ अवसर का लाभ उठाएँ!

मंगलवार, 24 जून 2025

ज्योतिष के 5 चमत्कारी राज़ जो आपको बना सकते हैं करोड़पति: पैसा कमाने का अचूक मंत्र!

 




क्या आपकी कुंडली में छिपा है धनवान बनने का राज़? जानें ज्योतिष के अनुसार पैसा कैसे आकर्षित करें, कौन से ग्रह बनाते हैं अमीर और कैसे करें धन योगों को सक्रिय। 

ज्योतिष कैसे आपकी आर्थिक स्थिति बदल सकता है?

ज्योतिष शास्त्र सिर्फ भविष्य बताने का नहीं, बल्कि आपकी कमाई की क्षमता को बढ़ाने का भी विज्ञान है। आपकी कुंडली में मौजूद धन योग, दशाएँ और ग्रहों की स्थिति आपके वित्तीय भाग्य का निर्धारण करती है।

 इस ब्लॉग में आप जानेंगे:

कुंडली के 5 शक्तिशाली धन योग
कौन से ग्रह बनाते हैं अमीर या गरीब?
रत्न, मंत्र और उपाय जो धन को आकर्षित करते हैं
ज्योतिष के अनुसार करियर चुनने का सही तरीका

कुंडली के 5 शक्तिशाली धन योग (जो बनाते हैं करोड़पति)

1. लक्ष्मी योग (धन की बरसात)

  • कैसे बनता है? जब द्वितीय (धन भाव), पंचम (निवेश), नवम (भाग्य) और एकादश (आय) भाव के स्वामी शुभ स्थान में हों।

  • उदाहरण: अम्बानी की कुंडली में शुक्र+बृहस्पति का योग।

2. गजकेसरी योग (महाराजाओं वाला भाग्य)

  • कैसे बनता है? चंद्रमा और बृहस्पति एक साथ केंद्र (1,4,7,10) भाव में हों।

  • प्रभाव: अचानक धन लाभ, समाज में मान-सम्मान।

3. पंचमहापुरुष योग (विशेष ऊर्जा)

  • रुचक योग (मंगल): सेना, स्पोर्ट्स या तकनीक से पैसा।

  • भद्र योग (बृहस्पति): शिक्षा, बैंकिंग या गुरु से लाभ।

4. धन त्रिकोण योग (2-6-10 भाव का संबंध)

  • कैसे काम करता है? द्वितीय (बचत), षष्ठ (ऋण), दशम (करियर) भाव के स्वामियों का शुभ संबंध।

5. सूर्य-शनि योग (कड़ी मेहनत से कमाई)

  • किसके लिए अच्छा? राजनीति, प्रॉपर्टी, ऑयल-गैस सेक्टर में सफलता।

कौन से ग्रह बनाते हैं अमीर या गरीब?

ग्रहप्रभावधन आकर्षित करने का उपाय
बृहस्पतिधन, विद्या, भाग्यपीले फूल, हल्दी, "ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः" मंत्र
शुक्रलक्जरी, कम्फर्टसफेद फूल, चाँदी, "ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः"
राहुअचानक लाभनीलम, दान, "ॐ रां राहवे नमः"
शनिदेरी से लेकिन स्थायी धनलोहा, तिल, "ॐ शं शनैश्चराय नमः"

धन आकर्षित करने के 3 ज्योतिषीय उपाय

1. मंत्र सिद्धि

  • लक्ष्मी मंत्र: "ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः" (प्रतिदिन 108 बार)

  • कुबेर मंत्र: "ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा"

2. रत्न धारण

  • बृहस्पति: पुखराज (धन और समृद्धि)

  • शुक्र: हीरा (लक्जरी लाइफस्टाइल)

  • सूर्य: माणिक्य (सरकारी लाभ)

3. घर में धन का आकर्षण

  • तुलसी के पास दीपक: रोज शाम जलाएँ।

  • दक्षिणावर्ती शंख: पूजा घर में रखें।


ज्योतिष के अनुसार करियर चुनें (धन के लिए)

  • मेष राशि: सेना, स्पोर्ट्स, मैकेनिकल इंजीनियरिंग

  • सिंह राशि: पॉलिटिक्स, एक्टिंग, गोल्ड बिजनेस

  • वृश्चिक राशि: सर्जन, रिसर्च, ऑक्कल्ट साइंस

  • कुंभ राशि: एस्ट्रोलॉजी, टेक्नोलॉजी, सोशल वर्क


 क्या Google और NASA मानते हैं ज्योतिष?

हाल के शोधों में पाया गया कि:
ग्रहों की चाल मानवीय व्यवहार को प्रभावित करती है (NASA के पूर्व वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत)।
बृहस्पति का प्रभाव सबसे ज्यादा आर्थिक निर्णयों पर होता है।


निष्कर्ष: ज्योतिष से पैसा कैसे बढ़ाएँ?

  1. अपनी कुंडली में धन योग पहचानें।

  2. ग्रहों को शांत करने के लिए मंत्र/रत्न का प्रयोग करें।

  3. करियर चुनाव में ज्योतिष की सलाह लें।

  4. दान और पूजा से धन का आशीर्वाद पाएँ।

"ज्योतिष नहीं बताता कि क्या होगा, बताता है कि क्या करने से अच्छा होगा।"

#JyotishSePaisa #KundliMeDhanYog #AstrologyAndMoney


रविवार, 22 जून 2025

Joninės Jonavoje 2025: A Midsummer Celebration of Tradition, Music, and Magic


Experience Joninės Jonavoje 2025—Lithuania’s enchanting Midsummer celebration in Jonava, with bonfires, folklore, fern flowers, and riverbank rituals.

As the longest day of the year gives way to the shortest night, Lithuania prepares to celebrate Joninės, also known as Rasos Festival or Midsummer's Day. And when it comes to Joninės, the city of Jonava truly earns its affectionate title as the "capital of the Midsummer holiday." On June 23, 2025, Jonava will once again transform into a vibrant hub of ancient traditions, modern entertainment, and an unforgettable magical atmosphere for its annual Joninės Jonavoje celebration.

What is Joninės?

Joninės, or Saint John’s Day, is Lithuania’s vibrant midsummer festival celebrated during the summer solstice. Held on June 23–24, it’s a fusion of ancient pagan rituals and Christian traditions. The festival marks the longest day and shortest night of the year—a mystical window filled with magic, fire, and nature.

Why Jonava is the Heart of Joninės 2025

Jonava has become the unofficial Midsummer capital of Lithuania, famously known as the "Republic of Johns." Each year, the town honors everyone named Jonas or Janina with symbolic citizenship and transforms into a glowing celebration of Lithuanian culture, music, and community joy.

A Day of Festivities and Fun:

The festivities officially kick off at 12:00 PM in Joninės Valley with a bustling traders' fair. This year promises an even larger array of vendors, offering everything from local handicrafts and delicious treats to festive gifts and unique accessories, ensuring something for every visitor.

As the afternoon progresses, from 6:00 PM, the Jonas Homestead (Jonų kiemas) will open its gates. This specially curated area is the heart of traditional Joninės activities. Visitors will be greeted by the hosts, Jonelis and Jonienė, who will invite everyone to participate in educational workshops, ancient crafts, games, and competitions. A highlight will be the "Saint Jonas – Lord of Milk" cheesemakers' championship, promising a delicious and entertaining spectacle. The Jonas Homestead will also feature its unique currency, "jongrašiai," which guests can earn by participating in activities, adding an interactive twist to the experience.

For all the Jonas, Janina, Janius, and Džonas out there, the Jonas Chancellery will be open from 6:00 PM. This is where name-day celebrants can register, send postcards, and receive special surprises and prizes. A new feature this year is the opportunity to receive a renewed or new Jonas Republic certificate by placing a hand on the "Jonas Book" and taking an oath to serve the Jonas Republic, adhering to its newly prepared constitution.

Music and Magic Under the Midsummer Sky:

From 7:00 PM, the main stage in Joninės Valley will come alive with an impressive lineup of well-known Lithuanian artists and groups. This year's musical program boasts:

  • The youthful and energetic Rokas Kašėta
  • The legendary band Hiperbolė
  • The ethno-modern duo Kamanių šilelis
  • The popular artist and stage star Vaidas Baumila

The grand finale of the evening, at 11:30 PM, will be a breathtaking Baltic Mystery titled "Kalnas, Kalnas". This spectacular performance will feature an enchanting display of fire, light, and pyrotechnic installations, culminating in a dazzling fireworks show that will illuminate the shortest night of the year.

Traditional Charms and New Experiences:

Jonava's organisers have also introduced some novelties for 2025 to enhance the celebration. The event spaces have been reconfigured to provide more room for concert-goers, with the main stage now positioned closer to the ski centre's lifts. The fair will extend across three areas, reaching towards Žemaitė Street, and the Jonas Homestead will be situated near the Jonava swimming pool, creating more spacious and comfortable zones for all activities. Visitors are encouraged to bring blankets or folding chairs to settle in and enjoy the performances.

Beyond the main program, Joninės Jonavoje embraces the ancient pagan roots of the holiday. Expect traditional elements such as wreath weaving workshops, foam parties for children, and various sporting contests throughout the day. The mythical search for the fern flower, a symbol of good fortune, will also be a part of the festivities, with unique fern flower creations crafted by Jonava residents adorning various locations around the city.

Joninės Jonavoje 2025 promises to be a truly immersive and unforgettable celebration of Midsummer, blending cherished Lithuanian traditions with modern entertainment and a vibrant community spirit. Whether you're seeking cultural enlightenment, musical enjoyment, or sim

ply a magical night out, Jonava welcomes you to experience the essence of Joninės.

Final Thoughts

Joninės Jonavoje isn’t just a festival—it’s a magical cultural immersion into Lithuania’s oldest solstice traditions. Whether you're leaping over flames, chasing legends, or soaking in the beauty of twilight along the river, Jonava offers an unforgettable midsummer escape.